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वह कु वारी बनी रही । शादी की इच्छा होते हुए भी
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शादी कर नहीं पाई । उसका कारि , माता-मपता की |
इस उपन्यास की नामयका के जीवन की त्रासदी अपार |
मृत्यु के बाद मपता की वसीहत के अनुसार सारी |
है । शादी करने के इच्छा होने के बावजूद वह अपने |
सम्पती उसके सभी सन्तानो को ममलनी थी । मपता ने |
भाइयों से बोल नहीं पाती , और एकाकीपन का दंश |
दोनों पुत्रों के अलावा अपनी पुत्री ( नामयका ) को भी |
चुपचाप झेलती रहती है । इस बात को नामयका इस |
संपमत्त का महस्सेदार बनाया था । नेपाली समाज की |
तरह व्यक्त करती है- “ पहले मजतने ररश्ते आए , उनमें |
परंपरा के अनुसार नामयका से शादी का प्रस्ताव लेकर |
दो-तीन मुझे पसंद नहीं आए , ऐसी बात नहीं थी । पर |
आने वाले सभी लड़के वालों को नामयका के भाई द्वारा |
स्वयं मैं कै से कहती मक मुझे यह लड़का पसंद है और |
अस्वीकृ त कर देते थे । कहते थे मक योनय वर नहीं है । |
मै इससे शादी करूँ गी ।’' ( पृ . -69) यह एक ऐसा समाज |
दोनों भाइयों पर संपमत्त का लोभ छाया रहता था , |
है , जहाँ कोई लड़की अपनी इच्छा जामहर नहीं कर |
मकन्तुमदखावा करते थे मक वे अपनी बहन को |
सकती । मकसी लड़की के इच्छा जामहर कर देने से |
अत्यमधक प्रेम करते हैं । बहन की नजरों से उस |
पररवार की इज्जत ममट्टी में ममल जाती है । |
मदखावटी प्रेम मछपी नहीं थी । इसी बात को उपन्यास
में नामयका के सम्भार्षि से स्पसे मकया गया है- “ दोनों
भाई मुझे पहले से अमधक प्यार करने लगे । भाभी तो
उन दोनों से अमधक ।’’ ( पृ . -67) इस कारि नामयका
के मन में भाइयों के प्रमत मवतृष्ट्िा उत्पन्न हो गई । एक
मदन भाइयों के मदखावटी प्रेम से तंग आकर घर-द्वार
छोड़कर नामयका अके ले रहने चली गई ।
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नारी जीवन की मूल के मूल संवेदनाओं पर पहले भी
नेपाली भार्षा के रचनाकारों ने अपनी कलम चलाई
है । लेमकन पाररजात के उपन्यासों की रचना के बाद
वानीरा मगरर ने अपने पहले ही उपन्यास ‘ कारार्गार ’ में
पाठको एवं समालोचको से अपने गद्य का लोहा
मनवा मलया । नारी संवेदना के अनछु ए पहलुओं पर
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Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . |
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |