िुनयना
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
िुनयना
नीरज िमाक
अपने अपने क्षेत्र में अच्छा काम करने वालों को अवाडा मदए जा रहे थे , टी वी पर सीधा प्रसारि मदखाया जा रहा था । तभी मवकलांग कोटे के तहत उत्कृ से काया करने के मलए सुनयना के नाम की घोर्षिा होते ही उनके कान चौकन्ने हो गए ।
वो मन ही मन बुदबुदाए ‘ अरे ! यह तो अपनी सुनयना है !’
और कसैली यादों ने उन्हें आ घेरा । कै से उन्होंने व पररवार के सदस्यों ने मीना को बेटा न जन पाने पर प्रतामड़त मकया था , एक बेटी सुनयना हुई , उसकी भी बचपन में ही पटाखे चलाते हुए आंख में मचनगारी जाने से आंखें चली गई। ं अब तो घर के लोगों के ताने और भी बढ़ गए थे । दुखी होकर मीना ने ्टढ़्ता से अपनी बेटी के साथ अलग होने का फै सला ले मलया ।
मीना ने उसे एक बेटे की तरह परवररश दी । उसे ब्लाइंड स्कू ल में दामखला मदलवाया । अच्छे संस्कार मदए । आज सुनयना अपने ही जैसे आंखों से लाचार लोगों के मलए संस्था चलाती है , खुद भी स्वामभमान से जीती है व उन्हें भी स्वामभमान से जीना मसखाती है ।
टी वी में यह सब देखकर , खुश तो बहुत थे मन ही मन वो , अपनी स्वामभमानी बेटी के मलए पर--
जो सर अमभमान से ऊं चा होना चामहए था , वह अपराध बोध से झुक गया ।
अकसर वह लोगों से लड़्ती- " खबरदार मकसी ने मेरी बेटी को अंधी कहा तो , ऐसी दुघाटना तो मकसी के साथ भी हो सकती है , मैं इसे ऐसी परवररश दू ंगी मक एक मदन सही सलामत आंखों वालों को भी गवा होगा मेरी बेटी पर , मैं इसे स्वामभमान से जीना मसखाऊं गी । "
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017