Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 36

िासहसययक सिमिक: पुस्तक िमीक्षा
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725

िासहसययक सिमिक: पुस्तक िमीक्षा

सिक्षा की बैंसकं ग व्यिस्था बनाम‘ उयपीसड़तों का सिक्षािास्त्र’
-डॉ. दीना नाथ मौयक
“ मेरी मााँ ने मुझे सिखाया था की ईश्वर बहुत अच्छा है, इिसलए मैंने यह सनष्ट्कर्ष सनकला की िमाज में जो वगषभेद है, उिके सलए न ईश्वर को सजम्मेदार ठहराया जा िकता है न सनयसत को.... मुझे इि कथन पर कभी सवश्वाि नहीं हुआ की‘ मैंनेअपना सनमाषण स्वयं सकया है’ दुसनया में कोई व्यसि अपना सनमाषण स्वयं नहीं करता. शहर के सजन कोनों में‘ स्वसनसमषत’ लोग रहते हैं, वहीं आि-पाि बहुत िे अनाम लोग भी सछपे रहते हैं.....”---- पाओलो फ्रे रे
‘ उयपीसड़तों का सिक्षािास्त्र’ पुस्तक लैमटन अमरीका के िाजीलवासी पाओलो फ्रे रे ने मलखी है. पाओलो फ्रे रे को हम ऐसे मशक्षाशास्त्री के रूप में जानते हैं मजन्होंने मशक्षा के क्षेत्र में न मसफा मवश्वमवद्यालयी मशक्षा ग्रहि की बमल्क वे लंबे समय तक अपने देश में चलाये जा रहे साक्षरता अमभयान से भी जुड़े रहे. उन्होंने रेमसफे मवश्वमवद्यालय में एक प्रोफे सर के रूप में मशक्षा के दशान और इमतहास का अध्यापन भी मकया. अपने लंबे अनुभव और अध्ययन से वे इस मनष्ट्कर्षा पर पहुचें मक-“ शिक्षा भी एक राजनीशि है और शजस प्रकार राजनीशि वर्गीय होिी है, उसी िरह शिक्षा भी वर्गीय होिी है.”‘ उयपीसड़तों का सिक्षािास्त्र’ पुस्तक भी उनके इस
मनष्ट्कर्षा को पुसे करती है. मशक्षा पर उन्होंने अनेक पुस्तकें मलखी है-‘ कल्चर एक्शन फॉर फ्रीडम’,
‘ एजुके शन फॉर मक्रमटकल कांशसनेस’,‘ एजुके शन: दी प्रैमक्टस ऑफ़ फ्रीडम’,‘ दी पामलमटक्स ऑफ़ एजुके शन’, और‘ पेडोगागी ऑफ़ होप’ प्रमुख हैं.
“ यह पुस्तक उि परम्परागत अथष में सशक्षाशास्त्र का सववेचन नहीं है, सजि अथष में बी. एड. और एम. एड. की पाठ्यपुस्तकों में हमें देखने को समलता है. इिमें सववेसचत सशक्षाशास्त्र का आधार काफी व्यापक है. सपछले ढाई दशकों के दौरान ज्ञान की सबभ्नन्द्न शाखाओं के सचंतन को प्रभासवत करने वाली सवश्व की यह एक अनोखी पुस्तक है. सशक्षाशास्त्र और सशक्षाकसमषयों की िोच को प्रभासवतकरने के िाथ ही, िमकालीनदशषन, िमाजशास्त्र, सवज्ञान, िासह त्य, अनुिंधान की सबसभन्द्न शाखाओं और आलोचना आसद क्षेिों में कायषरत लोगों की िोच में भी इिका प्रभाव देखा जा िकता है. सजि िमाज में प्रभुत्वशाली असभजनों का अल्पतंि बहुिंख्यक जनता पर शािन करता है. वह अन्द्यायपूणष और उत्पीड़नकारी िमाज होता है. ऐिी िमाजव्यवस्था मनुष्ट्यों को वस्तुओं में बदलकर उनको आमानुसर्क बनाती है. जबसक मनुष्ट्य का असस्तत्वमूलक और ऐसतहासिक कतषव्य पूणषतर मनुष्ट्य बनना है.”( पुस्िक के प्लैप कवर से उदृि)
‘ ग्रंथ मशल्पी’ प्रकाशन से मशक्षाशास्त्र के नये मक्षमतज श्रृखंला के अंतगात प्रकामशत इस पुस्तक को अंग्रेजी से महंदी भार्षा में रमेश उपाध्याय ने अनुमदत मकया है. मजसमें कु छ शब्दों पर मटप्पिी मलखने का काया पत्रकार रामशरि जोशी ने मकया है. पुस्तक की प्रस्तावना NCERT के पूवा मनदेशक मशक्षामवद कृ ष्ट्ि कु मार ने मलखी है. प्रस्तावना में कृ ष्ट्ि कु मार जी ने फ्रे रे के शैमक्षक दशान और इस पुस्तक की मजन तीन महत्वपूिा बातों की ओर इशारा मकया है उनमें-
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017