िासहसययक सिमिक : पुस्तक िमीक्षा
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
िासहसययक सिमिक : पुस्तक िमीक्षा
सिक्षा की बैंसकं ग व्यिस्था बनाम ‘ उयपीसड़तों का सिक्षािास्त्र ’
-डॉ . दीना नाथ मौयक
“ मेरी मााँ ने मुझे सिखाया था की ईश्वर बहुत अच्छा है , इिसलए मैंने यह सनष्ट्कर्ष सनकला की िमाज में जो वगषभेद है , उिके सलए न ईश्वर को सजम्मेदार ठहराया जा िकता है न सनयसत को .... मुझे इि कथन पर कभी सवश्वाि नहीं हुआ की ‘ मैंनेअपना सनमाषण स्वयं सकया है ’ दुसनया में कोई व्यसि अपना सनमाषण स्वयं नहीं करता . शहर के सजन कोनों में ‘ स्वसनसमषत ’ लोग रहते हैं , वहीं आि-पाि बहुत िे अनाम लोग भी सछपे रहते हैं .....” ---- पाओलो फ्रे रे
‘ उयपीसड़तों का सिक्षािास्त्र ’ पुस्तक लैमटन अमरीका के िाजीलवासी पाओलो फ्रे रे ने मलखी है . पाओलो फ्रे रे को हम ऐसे मशक्षाशास्त्री के रूप में जानते हैं मजन्होंने मशक्षा के क्षेत्र में न मसफा मवश्वमवद्यालयी मशक्षा ग्रहि की बमल्क वे लंबे समय तक अपने देश में चलाये जा रहे साक्षरता अमभयान से भी जुड़े रहे . उन्होंने रेमसफे मवश्वमवद्यालय में एक प्रोफे सर के रूप में मशक्षा के दशान और इमतहास का अध्यापन भी मकया . अपने लंबे अनुभव और अध्ययन से वे इस मनष्ट्कर्षा पर पहुचें मक - “ शिक्षा भी एक राजनीशि है और शजस प्रकार राजनीशि वर्गीय होिी है , उसी िरह शिक्षा भी वर्गीय होिी है .” ‘ उयपीसड़तों का सिक्षािास्त्र ’ पुस्तक भी उनके इस
मनष्ट्कर्षा को पुसे करती है . मशक्षा पर उन्होंने अनेक पुस्तकें मलखी है- ‘ कल्चर एक्शन फॉर फ्रीडम ’,
‘ एजुके शन फॉर मक्रमटकल कांशसनेस ’, ‘ एजुके शन : दी प्रैमक्टस ऑफ़ फ्रीडम ’, ‘ दी पामलमटक्स ऑफ़ एजुके शन ’, और ‘ पेडोगागी ऑफ़ होप ’ प्रमुख हैं .
“ यह पुस्तक उि परम्परागत अथष में सशक्षाशास्त्र का सववेचन नहीं है , सजि अथष में बी . एड . और एम . एड . की पाठ्यपुस्तकों में हमें देखने को समलता है . इिमें सववेसचत सशक्षाशास्त्र का आधार काफी व्यापक है . सपछले ढाई दशकों के दौरान ज्ञान की सबभ्नन्द्न शाखाओं के सचंतन को प्रभासवत करने वाली सवश्व की यह एक अनोखी पुस्तक है . सशक्षाशास्त्र और सशक्षाकसमषयों की िोच को प्रभासवतकरने के िाथ ही , िमकालीनदशषन , िमाजशास्त्र , सवज्ञान , िासह त्य , अनुिंधान की सबसभन्द्न शाखाओं और आलोचना आसद क्षेिों में कायषरत लोगों की िोच में भी इिका प्रभाव देखा जा िकता है . सजि िमाज में प्रभुत्वशाली असभजनों का अल्पतंि बहुिंख्यक जनता पर शािन करता है . वह अन्द्यायपूणष और उत्पीड़नकारी िमाज होता है . ऐिी िमाजव्यवस्था मनुष्ट्यों को वस्तुओं में बदलकर उनको आमानुसर्क बनाती है . जबसक मनुष्ट्य का असस्तत्वमूलक और ऐसतहासिक कतषव्य पूणषतर मनुष्ट्य बनना है .” ( पुस्िक के प्लैप कवर से उदृि )
‘ ग्रंथ मशल्पी ’ प्रकाशन से मशक्षाशास्त्र के नये मक्षमतज श्रृखंला के अंतगात प्रकामशत इस पुस्तक को अंग्रेजी से महंदी भार्षा में रमेश उपाध्याय ने अनुमदत मकया है . मजसमें कु छ शब्दों पर मटप्पिी मलखने का काया पत्रकार रामशरि जोशी ने मकया है . पुस्तक की प्रस्तावना NCERT के पूवा मनदेशक मशक्षामवद कृ ष्ट्ि कु मार ने मलखी है . प्रस्तावना में कृ ष्ट्ि कु मार जी ने फ्रे रे के शैमक्षक दशान और इस पुस्तक की मजन तीन महत्वपूिा बातों की ओर इशारा मकया है उनमें-
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017