Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
िासहसययक सिमिक: लघुकथा
ग न ु हगार
- अचकना गौतम 'मीरा'
उसमदन झ ल
सा देनेवाली ध प ू थी और मैं बेटी के साथ
उसके कॉलेज से मनकल कर काफ़ी द र ू चल कर आई
थी ऑटो पकड़ने . छतरी के बावज द ू हमारे कंठ स ख
रहे थे . न जाने क्या हुआ मक ऑटो चलते ही मैं बेस ध ु
- सी होने लगी. लगा मेरा दम अभी घ ट ु जाएगा. म
कुछ बोल तक नहीं पा रही थी. बेटी सकते की हालत
में धीमे स्वर में – “अम्मा ... आर यू ओके ...क्या
हुआ अम्मा ...” मकए जा रही थी. इतने में ऑटोवाल
ने ऑटो मकनारे कर रोका और दौड़कर पास की ग म ु टी
से ठंढे पानी की बोतल और कुछ टॉमफ़याँ ले आया.
मैंने पानी पीया और एक टॉफ़ी खाई. कुछ ममनटों म
मैं संयत होने लगी. तब जाकर म झ ु े महस स ू हुआ मक
मपछले मदन मेरा उपवास था और आज इतनी देर तक
कुछ न खाने से मेरा शरीर कहीं जवाब दे गया था.
ISSN: 2454-2725
साँसें धौंकनी - सी चल रही थीं. मारे घबराहट क
ज़ ब ु ान तालू से सट गई थी ... धीरे - धीरे कुछ और
लोग भी उधर आ गए. कुछ अपनी ग म ु मटयों और
द क
ानों से हुलक रहे थे ... तभी पेरोमलंग जीप आ गई
और उसे दो लोगों ने मजप्सी के भीतर दबोच मलया. य
प म ु लसवाले थे सादी वदी में जो बहुत मदनों से इस
भगोड़े हत्यारे की तलाश में थे “... अरे बाप रे छह
मडार मकया है !???” मकसी ने प छ
ा है मकसी से ...
और मेरी आँखों में उसकी वह म द्र ु ा घ म ू रही है ...
हाथ जोड़कर उसका कहना ...
“इ स ं ामनयत भी तो कोई चीज़ होती है मैडमजी !”
- अचाना गौतम 'मीरा'
पता- जे- 160,पी. िी. कॉलोनी,
कंकड़बाग,पिना- 20
ि प ं कक - 8051348669
ऑटोवाला सज्जन था उसने म झ ु े स्टैंड पर न उतार कर
घर तक छोड़ा ... मैं जब उसे अमतररक्त पैसे देने लगी
तो उसने हाथ जोड़ मदए – “इ स ं ामनयत भी तो कोई
चीज़ होती है मैडमजी !”
वो मदन सचम च ु म झ ु पर भारी था. उसी रात झमाझम
बाररश हुई और अगले मदन मौसम का ममज़ाज शांत
हो गया ... बेटी मज़द करने लगी – “आप अपना
मबलकुल ध्यान नहीं रखतीं . आज ध प ू भी नरम है चेक
अप के मलए ...” वह म झ ु े ज़बरदस्ती ले चली.
ऑटो स्टैंड पर चार - छह लोग जमा थे ... मैंने देखा
कल मजस ऑटो पर आई थी उस व्यमक्त के दोनों हाथ
ऊपर थे और एक ने उसपर ररवॉल्वर तान रखी थी ...
मैंने बेटी का हाथ पकड़ा और उसे पास की द क
ान की
द छ ु त्ती के नीचे खींच मलया. मेरे पैर थरथरा रहे थे ...
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017