Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 260

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
भावना का लोप हो गया । वतामान समाज को पुनः स्वस्थ और सु्टढ़ करने हेतु बेनीपुरी जी हमें सचेत करते हैं - “ चलो , पीछे मुड़ो , गेहूँ और गुलाब में हम मफर एक बार संतुलन स्थामपत करें ” । 10
समाज का मदन-प्रमतमदन जो नैमतक ह्रास होता जा रहा है , उसका सुधार सांस्कृ मतक पुनमनामााि के द्वारा ही संभव हो सकता है और यह सांस्कृ मतक पुनमनामााि हम पुरानी संस्कृ मत की जमीं पर ही कर सकते हैं । पुरानी संस्कृ मत को बेनीपुरी जी प्रेरिा ग्रहि करने वाली मवरासत के रूप में स्थामपत करते हैं- “ पुराने समाज के खंडहर पर ही नए समाज की अट्टामलका खड़ी होती है , पुरानी संस्कृ मत के सूखे तने से ही नई संस्कृ मत की नई कोपलें फू टेंगी ”। 11 बेनीपुरी जी सामहत्यकारों को भारतीय संस्कृ मत का संरक्षक मानते थे और इसीमलए उनसे अपेक्षा रखते थे मक वे सांस्कृ मतक पुनमनामााि में अपना-अपना योगदान देंगे , अन्यथा हमारी संस्कृ मत एक मदन नसे हो जाएगी- " आमखर यह क्षेत्र भी तो हमारा ही है । गुलाब की खेती के माली तो हमीं हैं । हमारी यह गुलाब की दुमनया - फू लों की दुमनया - रंगों की दुमनया - सुगंधों की दुमनया - इतनी सुकु मार , इतनी नाजुक दुमनया है मक कहीं अथाशामस्त्रयों के हथौड़े और राजनीमतज्ञों के कु ल्हाड़े उसका सवानाश न कर दें या प्रेमचंद के शब्दों में ' रक्षा में हत्या ' न हो जाए ।" 12 मनष्ट्कर्षातः यह कह सकते हैं मक रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपनी रचनाओं में भारतीय संस्कृ मत के तत्व को न के वल शाममल मकया है बमल्क संस्कृ मत के संबंध में अपनी नूतन अवधारिाएँ व्यक्त करके तथा संस्कृ मत को संक्रममत करने वाले तत्वों पर प्रहार करके समाज सुधार का स्तुत्य प्रयास भी मकया है । अपनी रचनाओं में भारतीय संस्कृ मत को शाममल करना तथा उन पर गहन मचंतन करना भर ही उनका उद्देश्य नहीं है बमल्क , वे इसे अपने आचरि में शाममल भी करते हैं । यही कारि है मक वे सामहमत्यक क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं ।
िंदभक
1 .
संस्कृ मत के चार अध्याय - रामधारी मसंह
मदनकर , पृष्ठ-653
2 .
तोरी फु लाइल : होरी आइल - रामवृक्ष
बेनीपुरी रचना संचयन , सं . -मस्तराम कपूर , पृ . -175
3 .
दीप दान - लाल तारा ( रामवृक्ष बेनीपुरी )
4 .
आधुमनक महंदी उपन्यास और वगा संघर्षा- डॉ
के शव देव शम , पृ . -243
5 .
रूपा की आजी , रामवृक्ष बेनीपुरी रचना
संचयन , सं . -मस्तराम कपूर , पृ . -507
6 .
मासानां मागाशीर्षोंहम , रामवृक्ष बेनीपुरी
रचना संचयन , सं . -मस्तराम कपूर , पृ . -507
7 .
रोपनी
- गेहूँ
और गुलाब ( रामवृक्ष
बेनीपुरी )
8 .
मेरी माँ - रामवृक्ष बेनीपुरी रचना संचयन ,
सं . -मस्तराम कपूर , पृ . -78
9 .
मेरी माँ - रामवृक्ष बेनीपुरी रचना संचयन ,
सं . -मस्तराम कपूर , पृ . -78
10 .
गेहूँ बनाम गुलाब , रामवृक्ष बेनीपुरी रचना
संचयन , सं . -मस्तराम कपूर , पृ . -211
11 .
नई संस्कृ मत की ओर - लाल तारा ( रामवृक्ष
बेनीपुरी )
12 .
नई संस्कृ मत की ओर - लाल तारा ( रामवृक्ष
बेनीपुरी )
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017