Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
“ कु छ भी तो रूमानी नहीं’ कहानी िंग्रह में स्त्री पािों के जीिन का उभरता िच”
कु लदीप
शोधाथी-महंदी मवभाग महमर्षा दयानद सरस्वती मवद्यालय, अजमेर gmail-yadukul123 @ gmail. com
मनीर्षा कु लश्रेष्ठ ने अपनी कहामनयों के माध्यम से स्त्री की वास्तमवक मस्थमतयों को सामने लेकर आई है । इन कहामनयों में समाज में स्त्री की मस्थमत, उसके साथ घमटत होने वाली घटनाओं का बारीकी से मचत्रि मकया गया है । उनकी कहामनयों में यौन शोर्षि, मानमसक शोर्षि, औरत की घुटन, छटपटाहट, आरोप-लांछन, घर व बाहर मपसते रहने का ददा, मयाादाओं को ललकारने की कसमसाहट आमद का विान मकया हैं । स्त्री जीवन के यथाथा का कोई भी पहलु उनसे नजरअंदाज नहीं हुआ है । चहारदीवाररयों का सच लेमखका सामने लेकर आयी है । औरत की लड़ाई उसके अपने ही घर से शुरू होती है । उसके सगे-संबंधी उसे दबाकर रखने की कोमशश करते है, उसका मानमसक व शारीररक शोर्षि करते हैं । उनकी स्त्री मवर्षयक कहामनयाँ मपतृसत्तात्मक समाज से टकराती मदखाई देती है ।
‘ मास्टरनी’ कहानी में स्त्री समस्याओं को सामने लाया गया हैं । घर व बाहर दोनों जगह उसके सामने आने वाली समस्याओं को इस कहानी में समेटा गया हैं । कहानी की पात्र सुर्षमा आमथाक ्टमसे से सम्पन्न है मफर भी उसका पमत उसे बराबरी का दज ा नहीं देता है । घर का काम व बच्चों की देखभाल उसकी मजम्मेदारी है । क्या बच्चे मसफा उसके ही हैं? पमत-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, दोनों ही एक-एक बच्चे को अपने साथ रखते हैं । पमत पत्नी पर धौंस
जमाता है । अपने तबादले के मलए सुर्षमा पमत से कहती है पमत आलस्य के मारे जाना नहीं चाहता और वह स्वयं जाये तो लोगों की गंदी नजरों का मशकार बनेगी ।“ छु रट्टयों में आई है महारानी यू ँ नहीं मक ठीक से खाना-वाना बना कर के मखलाये, साल भर तो खुद ही ठेपते हैं अपनी और तेरे लाड़ले की रोटी । अभी आई है, आते ही साली रांसफर के चक्कर में पड़ गयी ।” 18 सुर्षमा अपने पररवार में ही अपनी खुमशयाँ और दुमनया ढूँढ़ती है । स्वयं जहाँ रहती है सु: खी है परंतु पमत व बच्चे की परवाह करती है । स्वयं पर मनभार होने के बावजूद सास व पमत के ताने सुनती है । अपने स्वामभमान को भूल गयी है । ररश्तों में अपने आप को घोल कर उसने अपना अमस्तत्व खो मदया । मजस पररवार के मलए वह मरती है उसी पररवार के सदस्य उसकी परवाह नहीं करते हैं । वतामान समय में भी औरत घर व नौकरी दोनों चीजों के बीच फं स गयी है । आमथाक ्टमसे से मजबूती भी उसे मानमसक रूप से मजबूत नहीं बना पाती । पमत का प्यार भी नहीं बचा, बस शारीररक जरूरतें बची हैं । उसे स्वतंत्रता तो आमथाक ्टमसे से संपन्न होने पर भी नहीं ममली । सुर्षमा प्यार, इज्जत और सम्मान चाहती है पर उसे ममल नहीं पाता । परंपरागत ढरे पर उसे चलने के मलए क्यों मजबूर मकया जाता हैं? पुरुर्ष की मानमसकता क्यों नहीं बदल पाती हैं?“ यन्त्रवत-सा ममलन उसे भाता नहीं है । प्रेम, नखरे, छेड़छाड़ तो कभी थे नहीं उनके ररश्ते में पर एक नयापन सा था स्पशों में... लहरें थीं मजस्म में । ख़ुद पर कोफ्त हो रही थी मकसमलए कर मलये पैदा ये बच्चे झटाझट? दाम्पत्य क्या है, यह समझ पाती तब तक तो ये अनचाहे मेहमान चले आए ।” 19 शादी से पहले उसके सपनों को कॉलेज में, घर में मकतना तवज्जो मदया जाता था पर शादी के बाद उसके सपने टूट जाते हैं । ससुराल वालों को नौकरी
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017