Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
अमधकतम अखबारमचयों की कलम उनकी अपनी है पूरी कोमशश में है अजगर मक उन कलमों में मवर्षघुली स्याही भर दी जाय अखबारमचयों के अक्षर और शब्द उनके अपने है अजगर प्रयास में है मक उसके ही इरादों के अथा वे शब्द धारि करें
एक मायावी पररवेश में ढल रहा है पूरा उपमहाद्वीप पूरी जमीन पर आमधपत्य जमाना चाहता है अजगर पूरे पानी को अपने कब्जे में लेना चाहता है अजगर पूरी हवा को अपने मनष्ठुर अमधकार में लेना चाहता है अजगर
यही समय है मक संस्कृ मत के समर में पहले दो-दो हाथ करने के मलये अजगर को ललकारें मेरे भाई कमवता में गुस्से के बांस इकिा करें और आप तो जानते ही हैं मक अजगर को रह-रहकर जम्हाई लेने की आदत है पहले सांस्कृ मतक एका कायम हो और जैसे ही अजगर मु ंह खोले बस एक साथ बांसों को घुसेड़ देना है
अभी तो आदमी का वेश धारि कर अजगर बीन बजा रहा है ।
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पररतोष कु मार ' पीयूष ' की कसिताएँ
बदलती रही सस्त्रयाँ ! ------------------------------------- मेरे जीवन में आती-जाती रही हैं ना जाने मकतनी ही मस्त्रयाँ०
असंभव था मेरे मलए अके ले रख पाना उन सारी मस्त्रयों का लेखा-जोखा तैयार कर पाना उन तमाम मस्त्रयों के मेरे जीवन में आगमन-प्रस्थान की सूची०
मुझसे उन तमाम मस्त्रयों ने प्रेम मकया हाँ भले ही मभन्न रही हों मस्त्रयाँ मभन्न रहे हों उनके संस्कार मभन्न रही हों उनकी सभ्यताएँ और ऐउनकी परंपराएँ०
गाँव की रही हों या शहर की देश की रही हों या मवदेश की कस्बाई रही हों या शाही उतना ही प्रेम मकया उतनी ही सहजता से मकया उतनी ही व्याकु लता से मकया उतनी ही उत्तेजनाओं के साथ मकया उतनी ही गहराईयों में उतरकर मकया०
पर यह क्या हक्काबक्का भौचक्का हुआ जाता हूँ मैं बतला नहीं सकता आमखर उन मस्त्रयों के मलए प्रेम के क्या मायने रहें होंगे०
वे आती जाती रही ठीक वैसे ही जैसे लोकतंत्र में बदलती है सरकारें धरती पर बदलते हैं मौसम
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017