Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सभी अनुचर भी बदलते रहते हैं कं धे तुम्हारे प्रीमतकर पात्रों को भी कं धे बदलते देर नहीं लगेगी
यह मदवस नहीं है तारों से गजगज भरी रात है यह तुम्हारे मलये नीमतपरक वचन कहने से महचक रहे हैं कमव ' -मनीर्षी जबमक वचन ग्रहि करने की श्रेष्ठ-पात्रता तुममें घट रही है नया सबेरा नहीं देता आश्रय प्रकाशमान नक्षत्रों से भरी रात को
कपट के मबसात पर राष्ट्र के सत्व को नहीं बना सकता कोई लोकमसमद्ध का पासा
बार-बार दे रहे हैं तुम्हें संके त मनस्वीगि मक वे कभी तुम्हारे प्यादे नहीं हो सकते कपट-आचार के कारि ही तुम्हारे अवयवों और मचत्त में तेजी से आ रहे हैं मवकार ऐसे ही गुि बना देते हैं राजत्त्व को पैतृक समझने वालों को शत्रु
बाश्शा ! तुम्हारी इच्छा अवनमत के रास्ते पर है ।
4 बीन बजा रहा है अजगर
आदमी की शक्ल धारि कर यह मायावी अजगर बीन बजा रहा है
अच्छी तादात में ग्राम-नगर के भोले-भाले नागररकों को इकिा कर चाय मपलाते हुए बीन बजाना शुरू कर देता है यह इच्छाधारी अजगर वह अपनी तजानी जैसे ही हवा में लहराता है मक बीन की मपंमपयाती आवाज पर कमर डुलाने लगते हैं युवक-युवमतयां आबाल-वृद्ध
कमर डुला रहे हैं श्रममक - खेमतहर-भूममहीन मकसान आगे-आगे और जोर से कमर महलाते चल रहे हैं नहाये खाये अघाये ढंकरते चौड़े कं धे वाले लोग
सबसे पीछे चल रहे हैं सहमते थरथराते भूखे अधनंगे भूममहीन मजदूर और बेरोजगार नौजवान सबसे आगे चल रहा है मानव-वेश में यह इच्छा-शरीरधारी अजगर
आमखर सरसठ वर्षा में हमारे रहनुमाओं से कौन सा रास्ता छू ट गया था मक उनपर ऐंठते मथरकते मानव-वेश में बीन बजाता चला आया है यह अजगर
अजगर के पैर मथरक रहे हैं डगर-डगर पर उसके पदाघात से उड़ रहे हैं ममथ्याचरि के गदोगुबार वह स्वयं को दीनबन्धु का अवतार बता रहा है भीड़ के बहुत से लोग उसे सत्यनारायि देवता समझ शंख फू ं क रहे हैं उससे सटकर चल रहे हैं इलाके के बमनये-सटोररये सशस्त्र प्यादे कु छ दल्लाल भी हैं जो जो अजगर के पाद-पद्मों पर लोट-पोट कर रहे हैं
भीड़ को सम्बोमधत करता हुआ वह कहता है मक म्लेच्छ वंश के नाश के मलये ही अवतररत हुआ है कहता है मक वह सूयावंमशयों और चंद्रवंमशयों के उत्थान के मलये ही पद्म-पुष्ट्प पर आसीन हुआ है
समदयों के भ्रातृत्व को तहस-नहस कर सकल समाज में आग की लपटें औरतों-बच्चों की चीखें और मबखरे खून के कतरे देख तृप्त होना चाहता है अजगर
वह तजानी उठा कर बतलाता है मक म्लेच्छवंमशयों के नाश से ही धरती पर समृमद्ध आयगी और रामराज्य आयगा
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017