Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सभी को नतमस्तक हो जाना चामहये अभी नगर-श्रेमष्ठयों की अचाना के अमभलार्षी हैं ऋमर्ष
मवद्यानुरामगयों से अपेक्षा है मक वे अपने ग्रन्थों के बस्ते को ताक पर रख दें जबतक मक उनका वानप्रस्थ-काल समाप्त न हो जाय सभी रचनाकार-रंगकमी-मशल्पी अपने सृजन को त्यागकर राष्ट्र-ऋमर्ष की बन्दना में अनुरक्त हो जायं साथ ही वह सब उपक्रम करें मजससे मक उनकी आत्मरक्षा हो
अभी ऋमर्ष-मुखसे ही मन : सृत हो रही हैं राजाज्ञा अपने मवनय का मपटारा खोलकर घुटने के बल बैठे रहें सभी सज्जन क्योंमक सुयोधन के सभी शस्त्र और कवच राष्ट्र-ऋमर्ष के अधीन हैं
उपमहाद्वीप पर यह महती कृ पा है मक चतुष्ट्पद प्रामियों पर खास तरह से अनुरक्त हैं हमारे राष्ट्र-ऋमर्ष ।
2 लसतयल
महाशत्रुओं के वंशज हैं बाश्शा
बाश्शा भयभीत रहते हैं शस्त्र-समज्जत प्यादों के घेरे में चलते हैं बाश्शा
कमव बाश्शा के मनमाम हो जाने की मुनादी करते हुए शब्दों का ढोल पीटते हैं ढोल की थाप सुन बाश्शा कं मपत होते रहते हैं
कमवयों के पास अजेय संकल्प है संवेदनाओं के पु ंज ने संकल्प का मनधाारि मकया है संकल्प ही हैं उनके शस्त्र संकल्प में कल्पना की महस्सेदारी है कल्पनाओं में अद्भुत् आशा का अहमनाश संचार है
इन्हीं आशाओं के बीज से प्रस्फु मटत होती है कमवता
सहस्त्र मदवस से अमधक बीत गये कमवता के लात-मुक्के खाते हुए जहांपनाह लमतयल हो चुके हैं
अक्सर शत्रु हो गये बाश्शा को कमवता के अखाड़े में घेरकर गदान का मदान करते रहते हैं कमव
मनलाज्ज हैं बाश्शा बाश्शा भयभीत रहते हुए भी तख़्त से मचपके रहते हैं
महाशत्रुओं के अंमतम वंशज हैं बाश्शा ।
3 गत्क में ले जा रहे हैं तुम्हारे िुखानुभि
बाश्शा ! तुम्हारी इच्छा अवनमत के रास्ते पर है
अथा से संयुक्त तुम्हारा जीवन पर-पीड़ा को इसे बना रहा है लक्ष्मी के समान अमस्थर तुम्हारी अथा-युक्त वृमत्त न्याय की पटरी छोड़ रही है करोड़ों मानव मात्र पर तुम्हारी मवजयेच्छा तुम्हे मनलाज्ज बना रही है बाश्शा ! ये सारे सुखानुभव तुम्हे गत्ता में ले जा रहे हैं
बाश्शा ! सोनपुर के कोनहारा घाट में डुबकी लगाओ यहीं मदमस्त गजराज को ग्राह के ग्रसने के बाद अन्ततः सारी हमथमनयां छोड़कर चली गयी थीं तुम्हारी हमथमनयां भी दे रही हैं संके त सारे लश्कर तुम्हारी शासकीयता से असंतुसे हो रहे हैं इमतहास की लहरों में तुम्हारे मनशान ममट जायंगे
पालकी ढोने वाले ढाल नहीं उठाते पालकी ढोने वालों के मलये सदैव कोई मामलक नहीं होता
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017