Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
5 ) आिपाि आइि-पाइि / छु पन-छु पाई
बहुत बचपन में एक खेल खेला था आई स्पाइ यू ..... मेरी अंग्रेज़ी तब भी कमज़ोर थी मैंने उस खेल को हमेशा आसपास हूँ ही समझा ....!
मुझे था अटूट मवश्वास की मेरे खेल के साथी हमेशा रहेंगे मेरे * आसपास * मैदानों के उस खेल में जबमक जगह नही थी छु पने की और भय भी था हमेशा छु पे रह जाने का मैं आँखों पर हाथ रख के भी छु प लेती थी .... और खेल के वो साथी देखकर मुझे मचल्लाते ... आईस-पाइस ...!! तो मैंने हमेशा आसपास हूँ यही सुना ...!! उस मवश्वास में ... उन मदनों भयभीत नही रहती थी मैं ! तब अच्छा लगता था पकड़े जाना ...!
माँ भी अक्सर मेरे साथ खेलती थी ..... आई स्पाइ यू ! छु पने छु पाने के उस क्रम में सदा ढूँढ लेती थी मुझे और एक मदन उसने मुझे नही ढूँढा मैं आज भी मछपी हूँ इस आशा के साथ
मक माँ मकसी रोज़ ज़ोर से लगाएगी आवाज़ आसपास हूँ
पता : - नहर िाली माता रोड , नाका चंद्रिदनी लश्कर , ग्िासलयर , मध्यप्रदेि मोबाइल : - 09926649026 इमेल : - karunasaxena @ rediffmail . com ................................................................. प्रभात िरसिज की कसिताएँ
1 अनुरागी राष्ट्र-ऋसष
चतुष्ट्पद प्रामियों के प्रमत खास तरह से अनुरक्त हैं हमारे राष्ट्र-ऋमर्ष
राष्ट्र-ऋमर्ष अभी वानप्रस्थ जीवन मबता रहे हैं दोपायों के मलये शरशय्या का सरंजाम कर रहे हैं
हे मनस्वीगि अभी अपने श्रापों को कमंडलु में ही स्थान दीमजये कमव-मनीर्षी से प्राथाना है मक अभी रीमतकालीन दोहे रचकर इन वमनता के प्रेम-पाश से मवरक्त एवं गृहत्यागी ऋमर्ष को संवेमदत करते रहें मजनसे वे चरमानमन्दत होते रहें
महमालय से भले ही दूर आज तख़्त पर हैं लेमकन वहां से उनके व्यंजन के मनममत्त मंगाये जाते रहते हैं मवशेर्ष मकस्म के कु कु रमुत्ते इस आहार को ग्रहि करने से उन्हें स्फू मत्ता और शीतलता प्राप्त होती है
कु छ दोपाये अनुचरों को छोड़ शेर्ष दोपायों पर ऋमर्ष की मवजयेच्छा प्रबल है अब उनके समक्ष हाथ में तृि-जल लेकर
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017