Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 257

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
हमारा यही वैमशसे्य हमें अन्य देशों और समाजों से मवलग करता है । महंदी के प्रमसद्ध कमव रामधारी मसंह मदनकर जी मलखते हैं – “ संस्कृ मत मजंदगी का एक तरीका है और यह तरीका समदयों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है , मजसमें हम जन्म लेते हैं इसमलए मजस समाज में हम पैदा हुए हैं , अथवा मजस समाज से ममलकर हम जी रहे हैं उसकी संस्कृ मत हमारी संस्कृ मत है , यद्यमप अपने जीवन में हम जो संस्कार जमा करते हैं वह भी हमारी संस्कृ मत का अंग बन जाता है और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओंके साथ अपनी संस्कृ मत की मवरासत भी अपनी संतानों के मलए छोड़ जाते हैं । इसमलए संस्कृ मत वह चीज मानी जाती है जो हमारे सारे जीवन को व्यापे हुए है तथा मजसकी रचना और मवकास में अनेक समदयों के अनुभवों का हाथ है ।” 1 संस्कृ मत राष्ट्र और समाज का जीवनतत्व होती है । जब तक संस्कृ मत सुरमक्षत रहती है समाज जीमवत रहता है , संस्कृ मत का पतन होते ही समाज का मवनाश अवश्यंभावी है । प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृ मत मवश्व भर में अपना मवमशसे स्थान रखती है । हमारी इस महान संस्कृ मत का मूल स्रोत आज भी हमारे समाज में जीमवत है । भारतीय संस्कृ मत के मूल में स्वाथा मसमद्ध की अपेक्षा परसेवा , समाज- सेवा और परमाथा पर अमधक जोर मदया है और यही कारि है मक ‘ यूनान , ममश्र , रोमाँ सब ममट गए जहां से , कु छ बात है मक हस्ती ममटती नहीं हमारी ’।
सामहमत्यक रचनाओंके द्वारा कोई भी रचनाकार अपने समाज को ही नहीं , बमल्क अपने समाज के इमतहास , अपनी परंपरा , संस्कृ मत इत्यामद को भी मबंमबत करता है और इस जगत में स्वंय की साथाकता स्थामपत करता है । हमें बेनीपुरी जी की रचनाओंमें यत्र-तत्र हमारे देश की सांस्कृ मतक वैमशसे्य की झलक स्पसे मदखाई देती है । बेनीपुरी जी की रचनाएं इस बात की गवाह है मक वे भारतीय संस्कृ मत के अनन्य उपासक थे ।
भारतीय संस्कृ मत में पवों और त्यौहारों का मवशेर्ष महत्त्व है , शायद इसमलए ही भारत को त्यौहारों का देश भी कहा जाता है । मवमवध धाममाक , सांप्रदामयक और जामतगत वैमवध्य वाले इस देश में त्यौहार ही ऐसा मवशेर्ष अवसर है मजसने सामामजक मवमवधता को एकता के सूत्र में मपरो रखा है । अन्य सामहत्यकारों की भांमत बेनीपुरी जी ने भी अपने सामहत्य में मवमवध अवसरों पर होने वाले मवमभन्न त्यौहारों का विान मकया है । होली का त्यौहार हमारे देश बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है चाहे गाँव हो या शहर , भले ही मनाने के तरीके में असमानता हो सकती है । ‘ तोरी फु लाइल : होरी आइल ’ में गाँव में मनाई जा रही होली का जीवंत विान मकया है बेनीपुरी जी ने – “ वह देमखए , होलैयों की जमात चन्दर के दरवाजे पर भी आ गयी । सारा गाँव उमड़ पड़ा है । दरी-जामजम पर अटांव होगा , टाट-चटाई सब जोड़ मदये गये । लोग जमके बैठे । डफ घहरे , ढोलक घुटके , झाल झनझनाए , मंजीरे मकन् मकन् मकन् मकन् कर उठे । प्रथम पर शुरू , सप्तम पर समाप्त । ये गाने हैं , ये बाजे हैं ? नसों को झकझोर देते हैं , हड्मडयों को झकझोर देते हैं । साल भर का अवसाद एक ही मदन में मनकल जाता है । खून नया हो जाता है , शरीर नया हो जाता है । ‘ जो जीये से खेले फाग , जो मरे से लेखा लाग ’।“ 2 इसी तरह ‘ दीप दान ’ में दीवाली का विान मकया है – “ बाहर चकमक-झकमक , भीतर अंजनोपम अंधकार । दरवाजे पर के ले के खंभों की हरीमतमा , आँगन में सड़ी हुई मोररयों की गंध । कहीं ममठाइयों की लूट , कहीं टुकड़ों पर क्षुमधत ्टमसे । कहीं चोसर की बाजी , कहीं जीवन का दीवाला । हम आज उसे ही दीवाली कहते हैं न ?” 3
भारतीय समाज में मवमभन्न अवसरों पर लगने वाला मेला भी सांस्कृ मतक प्रथा है । यहाँ हर जामत संप्रदाय के लोग अपनी आमथाक मस्थमत और अभाव को भूलकर मेलों का आयोजन करते हैं । इसके पीछे सांस्कृ मतक भावना ही प्रमुख रहती है । ये मेले , धाममाक ्टमसेकोि से महत्त्व के मदन में या मकसी
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017