Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
राजनीमत, प्रशासन का सीधा सम्बन्ध समाज के साथ होता है । सामामजक जीवन में उभरने वाली समस्याएँ ही राजनीमतक प्रश्न बनते हैं । परन्तु यहाँ पररमस्थमतयाँ मवपरीत हैं ।
राजनीमतक जीवन से उत्पन्न समस्याएँ ही सामामजक प्रश्न बने हैं ।‘ राग दरबारी’ राजनीमतक जीवन का मचत्र ही नहीं प्रस्तुत करता, बमल्क स्वातंत्र्योत्तर समाज में पररवमतात होते जीवन- मूल्यों, संबंधों के मवघटन आमद की गाथा को अत्यंत यथाथा रूप में प्रभावशाली ढंग से व्यंमजत करता है । डॉ. नंदलाल कल्ला के शब्दों में“ गाँवों की समूची संवेदनात्मक अनुभूमत और वैचाररक मानमसकता, सामामजक सम्बन्ध और मूल्यबोध की संक्रमानात्मक अनुभूमत की पररवमतात और गमतशील अमभव्यमक्त इस कृ मत में सम्पूिा रूप से उपलब्ध है । ग्रामीि जीवन की समस्त मवसंगमतयों, प्राचीन-नवीन मूल्यों का तनाव, मवर्षमता के बेमेल स्वर की स्वीकारोमक्त की गू ंज‘ राग दरबारी’ में कदम- कदम प्रमतध्वमनत होती है ।” 13
समाज के स्थामयत्व के मलए व्यमक्तयों का उमचत और ठीक रूप से काया करना आवश्यक है । यमद प्रत्येक व्यमक्त अपनी आवश्यकताएँ सवोपरर माने और अपनी इच्छानुसार काया करने लगे तो सामामजक संरचना के भनन होने की संभावना हो जाती है । इस प्रकार की धारिा को डॉ. गुरचरि मसंह ने
अपने उपन्यास‘ नागपवा’ द्वारा स्पसे मकया है-“ जब घर में ही आग लगी हो, अपने ही लोग घर को लूट रहे हों, चारों ओर आगजनी, लूट- हत्या- बलात्कार का बाज़ार का गमा हो, चारों ओर आतंक के तले असुरमक्षत जीवन ज़ी रहे हों- तब हमारा क्या कताव्य है?” 14 एक अन्य स्थल पर‘ नागपवा’ उपन्यास के प्रधान पात्र ममस्टर वम ा का कथन उल्लेखनीय हैं-‘ व्यमक्त का मवरोध तथा मवद्रोह करना होगा । जब तक वह चुपचाप सहता रहेगा या तटस्थ भाव से घमटत होते हो देखता रहेगा, मूल्यों का मवघटन जारी रहेगा । मूल्यों के मलए, समाज को आधार देने के मलए, जनता को एक जुट होना होगा ।’ 15
उपन्यासकार का सामथ्या सामामजक पररवेश को उसकी अच्छाइयों-बुराइयों के साथ समग्रता में यथाथा रूप से मचमत्रत करना है । श्रीलाल शुक्ल जी की यही खूबी है मक वे पात्रों को पररमस्थमत, युग, समाज के पररप्रेक्ष्य के बीच प्रस्तुत करते हैं । समाज को अनुशामसत रखने के मलए सामामजक नैमतकता परम अपेमक्षत है ।
नैमतकता व्यमक्तगत है और सामामजक भी । समाज की व्यवस्था के मलए दोनों आवश्यक हैं ।‘ राग दरबारी’ उपन्यास में सामामजक नैमतकता सहायक होने के बजाय उपहास का मवर्षय बन गई है ।
मालवीय जी छंगामल कॉलेज के मप्रंसीपल तथा प्रबंधक वैद्यजी द्वारा मकए जा रहे कायों
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017