मनष्ट्कर्षातः राजनीमत व्यमक्त और समाज के |
3 संपा. डॉ. अनुपम माथुर, गुरचरि मसंह: स्मृमत, |
मलए वतामान पररप्रेक्ष्य में मनत्य का भोजन जैसी ही हो |
आख्यान और मवमशा, पृ. 83 |
गई है । पररवार में, स्कू ल, कॉलेज, मवमभन्न
कायाालयों, मंमदर, ममस्जद सभी में राजनीमत का
मशकं जा इतना जकड़ा हुआ है मक उससे मुमक्त की बात
सोंची ही नहीं जा सकती । इस ्टमसे से श्रीलाल शुक्ल
और डॉ. मसंह ने अपने उपन्यासों‘ रागदरबारी’ और
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4 मानचंद खंडेला, भारतीय राजनीमत मसद्धांत और
व्यवहार, पृ. 26
5 राग दरबारी, पृ. 145
6 वही, पृ. 38
7 सुधीर प्रसाद पांडेय, उपन्यासों में महानगरीय
अवबोध, पृ. 207
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‘ नागपवा’ में वतामान राजनीमत की मवद्रूपता, मवसंगमत, |
8 नागपवा, पृ. 35 |
ईष्ट्याा, प्रपंच, स्वाथा, कु रूपता, भटकाव आमद का |
9 वही, पृ. 70 |
प्रभावशाली ढंग से मचत्रि मकया है । वास्तव में |
10 राग दरबारी, पृ. 30 |
जीवन के नस-नस में व्याप्त इस राजनीमत ने मवमभन्न |
11 नागपवा, पृ. 118 |
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. |
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |