Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 237

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
को लेकर नैमतकता की दुहाई देते है तो गयादीन व्यंगात्मक स्वर में कहता है मक- “ नैमतकता का नाम न लो मास्टर साहब । मकसी ने सुन मलया तो चलान कर देगा ।” 16 इसी प्रकार ‘ नागपवा ’ उपन्यास में डी . सी . पी . वम ा का नैमतक पतन मदखाया जाता है । वास्तव में वम ाजी एक ऐसे समाज में रह रहे है मजसमें भ्रसे पुमलस तथा भ्रसे राजनीमत की सड़ांध है जो एक ईमानदार पुमलस अमधकारी को भी भ्रसे हो जाने के मलए मववश करता है । वमााजी ने पुमलस में रहते हुए लोगों को हज़ारों बनाते देखा है , पदोमन्नत पाते तथा सम्मामनत होते देखा है । उपन्यासकार गुरचरि मसंह इस वगा पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं- “ पैसे भी न मारे तो पुमलस की नौकरी का क्या लाभ ?” 17
राजनीमतक दलों की गुटबंमदयों की चपेट में देश के सवािंगीि मवकास की जड़ों पर जो कठोर-घात मकया है उसकी सशक्त अमभव्यमक्त आलोच्य उपन्यासों में इस तीव्रता से हुई है मक पाठक मतलममला उठता है . राजनीमत प्रपंचों के मशकार भारतवासी की मज़न्दगी में जो धुन लगा जा रहा है , वह एक ननन सत्य बनकर ‘ राग दरबारी ’ तथा ‘ नागपवा ’ उपन्यासों में उभरा है ।
िन्द्दभक
1 संपा . प्रेम जनमेजय , श्रीलाल शुक्ल : मवचार मवश्लेर्षि एवं जीवन , पृ . 30
2 डॉ . चंद्रकांत वांमदवडेकर , उपन्यास : मस्थमत और गमत , पृ . 296
मनष्ट्कर्षातः राजनीमत व्यमक्त और समाज के
3 संपा . डॉ . अनुपम माथुर , गुरचरि मसंह : स्मृमत ,
मलए वतामान पररप्रेक्ष्य में मनत्य का भोजन जैसी ही हो
आख्यान और मवमशा , पृ . 83
गई है । पररवार में , स्कू ल , कॉलेज , मवमभन्न
कायाालयों , मंमदर , ममस्जद सभी में राजनीमत का
मशकं जा इतना जकड़ा हुआ है मक उससे मुमक्त की बात
सोंची ही नहीं जा सकती । इस ्टमसे से श्रीलाल शुक्ल
और डॉ . मसंह ने अपने उपन्यासों ‘ रागदरबारी ’ और
4 मानचंद खंडेला , भारतीय राजनीमत मसद्धांत और
व्यवहार , पृ . 26
5 राग दरबारी , पृ . 145
6 वही , पृ . 38
7 सुधीर प्रसाद पांडेय , उपन्यासों में महानगरीय
अवबोध , पृ . 207
‘ नागपवा ’ में वतामान राजनीमत की मवद्रूपता , मवसंगमत ,
8 नागपवा , पृ . 35
ईष्ट्याा , प्रपंच , स्वाथा , कु रूपता , भटकाव आमद का
9 वही , पृ . 70
प्रभावशाली ढंग से मचत्रि मकया है । वास्तव में
10 राग दरबारी , पृ . 30
जीवन के नस-नस में व्याप्त इस राजनीमत ने मवमभन्न
11 नागपवा , पृ . 118
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017