को समझना आम आदमी के बूते की बात नहीं । आज |
इलेक्शन, पोस्टरबाजी, नारे, भार्षि इन सभी के पीछे |
राजनीमत और राजनीमतज्ञों का जो मघनौना चेहरा हमारे |
अनैमतक, भ्रसेाचार काम करता है ।’ 12 |
सामने है,‘ नागपवा’ उपन्यास में उसे यथाथापूिा ढंग से |
वैद्यजी और बड़े भैया जैसा व्यमक्त हर युग में |
उभारा गया है । बड़े भैया और उनके अमधकारी छल- |
नेता ही बनकर रहता है । अंग्रेजों का राज्य हो या |
कपट के सहारे प्रधानमंत्री तक अपनी पहुँच बनाएं |
भारतीय लोगों का, इनकी नेतामगरी में कोई फका नहीं |
रखते है और अपने मवरोमधयों का सफाया करते रहते |
पड़ता । अमधकार लालसा और स्वाथा के ये पुतले |
है । वह अपने महत के मलए मकसी भी हद तक जा |
बहाना इस तरह का करते है मक मानो इनका नेतृत्व |
सकते है, मकसी की भी हत्या करवाना वे एक ज़रूरी |
समाज में कल्याि के मलए ही है । ऐसे नेता न कभी |
काम मानते है, उनके मबछाए जाल में फं सकर डी. सी. |
बूढ़े होते है, न बुढ़ापा इन्हें अमधकार से वंमचत बना |
पी. वमाा का जो नैमतक पतन होता है, वह बहुत ही |
सकता है । पुमलस, सरकारी अफसर सबको ये अपने |
स्वाभामवक और मवश्वसनीय लगता है । इसी प्रकार |
हाथ का मखलौना बनाते है । इनकी कथनी और करनी |
‘ राग दरबारी’ उपन्यास के पात्र वैद्यजी दोहरे चररत्र के |
में बड़ा अंतर होता है । |
व्यमक्त हैं । बाह्य रूप से वह बड़े ही शीलवान, | |
चररत्रवान, और प्रजातंत्रवादी व्यमक्त प्रतीत होते है,
परन्तु भीतर से इसके मबलकु ल मवपरीत भ्रसे, महंसक
एवं शोर्षक व्यमक्त हैं ।“ हर बड़े राजनीमतज्ञ की तरह
वे राजनीमत से नफरत करते थे और राजनीमतज्ञों का
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राजनीमतक उपन्यासकार व्यमक्त को मकसी
वाद मवशेर्ष का पक्षधर नहीं बनाते, वे तो पाठक को
समाज में खुली आँखों चलने की सलाह देते है ।
जीवन की नस- नस में व्याप्त राजनीमत को श्रीलाल
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मज़ाक उड़ाते थे ।” 10‘ नागपवा’ उपन्यास में ऐसे मनकृ से
राजनीमतक हथकं डों को कई स्थलों पर दशााया गया
है । उदहारि-‘ राजनीमत में वही मटक सकता है जो
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शुक्ल ने अपने बहुचमचात उपन्यास‘ रागदरबारी’ में
माममाक ढंग से मचमत्रत मकया है । मवमभन्न संस्थाएं
मकस प्रकार राजनीमत के अखाड़े बनते है तथा मवमभन्न
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जड़ों में पानी देने वाले की भी खबर रखें और जड़ों |
राजनीमतक दलों की गुटबंमदयों की चपेट में देश के |
को काटने वालों की भी ।’ 11 दुसरे स्थल पर देमखए
राके श की ममत्र प्रभा का यह कथन‘ पैसा, पाटी,
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सवागीि मवकास की जड़ों पर कठोर- घात मकया जा
रहा है, मजसकी अमभव्यमक्त‘ नागपवा’ और
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‘ रागदरबारी’ दोनों उपन्यासों में बड़ी तीव्रता से हुई है | |
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Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. |
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |