जहाँ श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यास‘ राग |
आँखों में धूल झोंककर चुनाव का नाटक रचा जाता |
दरबारी’ में वैद्यजी के माध्यम से स्वातंत्र्योतर काल में |
है । नेता मकस प्रकार से चुनाव लड़ते है और जीतते है, |
पैदा हुए नेताओंका प्रमतमनमध एवं यथाथा मचत्र खींचा |
कै सी- कै सी चाले चलते है । एक दूसरे को नीचा |
है, वही ँडॉ. गुरचरि मसंह ने अपने उपन्यास‘ नागपवा’ |
मदखाने के मलए वह कु छ भी कर सकते है । उनके |
में बड़े भैया के माध्यम से वतामान राजनीमतज्ञों के |
चहरों पर अनेक मुखौटे है । ऊपर से सीधे- सरल |
कु मत्सत चेहरे का मचत्र खींचा है । वैद्यजी और बड़े |
जनता के महतैर्षी लगने वाले ये नेता अन्दर से मकतने |
भैया की राजनीमत भारत की आधुमनक राजनीमत का |
काइयां तथा मगरे हुए होते है इसका मचत्रि‘ नागपवा’ |
प्रमतमनमधत्व करती है । युग की राजनीमतक पररमस्थमत |
उपन्यास में गुरचरि मसंह ने बड़ी सहजता से मकया है |
को प्रभावी ढंग से मचमत्रत करने में दोनों लेखकों को |
।‘ नेताजी जानते है गांधीजी के आदशों का, उनके |
गजब की सफलता ममली है । |
मवचारों का मुखौटा पहनकर ही वे अपनी पाटी के |
मलए वोट बटोर सकते हैं । उन्हें बड़ी ख़ुशी होती है | |
प्रजातंत्र का मूल स्वर है- सरकार जनता की,
जनता द्वारा तथा जनता के मलए । अथाात् शासन और
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जब वह देखते है सभी नेता गांधीजी के मुखौटे को
पहनने के मलए उतावले हैं । प्रत्येक नेता के घर में गाँधी
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प्रशासन में जनता की भागेदारी और इसका माध्यम है |
है ।’ 9 |
चुनाव । श्रीलाल शुक्ल ने कॉलेज, कोआपरेमटव | |
यूमनयन तथा ग्राम पंचायत तीनों में होने वाले चुनाव |
बड़े भैया नेता है, देश के मवत्तमंत्री है । उनमें |
मदखा कर बता मदया है मक अव्वल तो चुनाव होते ही |
सामदाम दंड भेद के सारे चोंचले अपना मसर उठाये |
नहीं, जहाँ तक संभव है उन्हें टाला जाता है । प्रजातंत्र |
सत्ता की रक्षा के मलए सचेत है । उनकी शतरंजी चाल |
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. |
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |