Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 233

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725 हनन करने वाली भ्रसे व्यवस्था को लेखक न मह स ं क कायों की लीलाभ म ू म बन गई है, जहाँ साध्य ‘नागपवा’ उपन्यास में रे खांमकत करने की कोमशश की महत्त्वप ि ू ा है, साधन भले कोई भी हो । ‘राग दरबारी’ है ।” 3 उपन्यास के एक पात्र रुप्पन के शब्दों में- “देखो दादा, स्वातंत्र्योत्तर भारत में च न ु ाव के हलचल क यह तो पोलमटक्स है । इसमें बड़ा- बड़ा कमीनापन साथ ही राष्ट्रीय जीवन में एक नया अध्याय प्रारम्भ चलता है. ... द श् ु मन को जैसे भी हो, मचत्त करना हुआ । मजन नेताओ ं ने त्याग, बमलदान, तपस्या स चामहए ।” 5 इसी राजनीमत की दा व ं पेंच को एक अन्य स्वत त्र ं ता प्राप्त की थी, स्वत त्र ं ता पिात् उनमें से कुछ उपेमक्षत हुए और कुछ ऐसे लोग स्वयं ही नेता बन बैठे मजन्होंने स्वतंत्रता प्रामप्त के मलए कोई त्याग नहीं मकया था । फलतः राष्ट्र नैमतक ्टमसे से उन्नमत के स्थान पर अवनमत ही करने लगा । ‘मकस