Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
क्योंमक
पार्षाि होने के कारि
त म ु में/आदम जामत की मामनंद
मवकमसत नहीं हो सका
ह्रदय सागर
जो द र ू कर पाता
त म ु में समाया
मसफा अपना ही अमस्तत्व
सवाशमक्तमान होने का
अह भ ं ाव।
शायद यही वजह है मक
अपने आसपास
सम च ू ी द म ु नया बसने के बावज द ू
नहीं महस स ू कर सक
त म ु /कभी भी
पंमछयों की चहचहाहट
और
स य ू ा के शैशवकाल स
प्रौढ़ होने तक के अ त ं राल म
समामहत/जीवन क
अलौमकक परमआनन्द
और/शाश्वत सत्य का आत्मबोध।
यह सब
मकसी मवडंबना का
पररचायक नहीं ह
बमल्क/यह ख द ु त म् ु हारे ही
स्थामपत मकए
आदशों और उस ल
ों का प्रमतफल ह
जो, अब
त म् ु हारी मनयमत बन च क
े हैं।
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-ि ब ु ोध श्रीिास्ति,
'माडनक सिला', 10/518,
खलासी लाइन्स,कानप र ु (उप्र)-208001.
मो.09305540745
ई-मेल: [email protected]
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
दीपक कुमार की कसिताए
कसिता-1
भीड़ का कोई चेहरा नही होता
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भीड़ का कोई चेहरा नही होता ।
यह नकाब ओढ़े ,
सैकड़ो की तादात में आते है ।
धमा , जामत, मल ग ं ,ऊंच- नीच क
आवरि धारि मकए हुए ।
शेर की खाल में भेमड़ए बन हुए ।
और
न जाने ,
मकतनों को मौत के घाट उतार जाते हैं ।
मनमामता , दयमह त ं ा , मह स ं क्ता , क्रूरता,
ही इनके औजार है ।
मजनसे मशकार करते है ,
यह मास म ू ों का ।
इनकी अदालत में ,
बच्चें , ब ढ़ ू े ,ममहला सब एक समान है ।
हाँ ,
अगर मन कर जाए इनका ,
तब,
मस्त्रयों की इज्ज़त को
तार-तार करने में यह देर नही लगाते ।
यह धमा के सौदागर भी ह
और तथाकमथत संरक्षक भी ।
और भक्षक भी ,,,
यह आदमखोरों की बस्ती है ।
इनके मलए जान बहुत सस्ती है ।
मकसी को मारना कौन सी बड़ी बात ह
ख़ न ू खराबा करना ही इनका रोजग़ार है ।
यह भीड़ है साहब
और
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017