Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
महंदी भामर्षयों की संख्या व महंदी भार्षा का सामथ्या महंदी को राष्ट्र व संपका भार्षा का दजाा देने के मलए उपयुक्त है मकं तु महंदीतर प्रदेश का महंदी के प्रमत मवरोध महंदी को संपका भार्षा का दजाा देने का मवरोध करता आ रहा है । उन्हें अपनी भार्षा न्यून होती नज़र आने लगती है जो सत्य नहीं है । मवश्व में अंग्रेजी के ज्ञान का महत्व सब जानते हैं मकं तु महंदी को स्वीकार करने का आशय अंग्रेजी का मवरोध करना मबल्कु ल नहीं है । भारत में बोली जाने वाली अन्य भार्षाओँ की अपेक्षा महंदी का फलक इतना बड़ा है मक मदन-प्रमतमदन महंदी बोलने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ती जा रही है । भारत की अन्य मकसी भार्षा की अपेक्षा महंदी में ये योनयता अमधक है मक वो दो समुदायों की बात समझ व समझा पाए ।
महंदी के बढ़ते प्रयोग का अंदाजा प्रस्तुत आंकड़ों पर नज़र डालकर लगा सकते हैं जो ये बताते हैं मक मकस प्रकार महंदी ने संपका भार्षा के रूप में अपनी जड़ें जमाई हैं-
वर्षा 2001 की जनगिना के अनुसार भारत के लगभग ४१ . ३ % लोगों द्वारा महंदी भार्षा का प्रयोग मकया जाता है । times of india अख़बार के 19 जून 2014 के अंक के अनुसार 1971 से मातृभार्षा के रूप में महंदी बोलने वाले लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है । कु ल जनसंख्या में महंदी बोलने वालों की संख्या 1971 में 36.99 % थी जो 1981 में बढ़कर 38.74 % और 1991 में 39.29 % हो गई ।
महंदी को जनभार्षा और संपका भार्षा बनाने में इलेक्रॉमनक संचार माध्यमों का बहुत बड़ा योगदान रहा है । महंदी मफल्मों और मफ़ल्मी गीतों ने महंदी को लोकमप्रय बनाने में महती भूममका मनभाई है । अमहंदी भार्षी राज्यों में महंदी मफल्में और गीत्त बहुत लोकमप्रय हैं । प्राचीन समय की बात की जाए तो महंदी सामहत्यकारों ने भी महंदी को प्रचाररत करने में मुख्य
भूममका मनभाई है । महंदी के प्रारंमभक उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री ऐसे उपन्यासकार रहे हैं मजनके उपन्यासों को पढ़ने के मलए लोग महंदी सीखते थे । उनके कु छ उपन्यास जैसे चंद्रकांता , चंद्रकांता संतमत तो पूरे भारत में लोकमप्रय हुए । महंदी को संपका भार्षा बनाने में महंदी सामहत्यकारों का भी मुख्य योगदान रहा है । दमक्षि भारतीय महंदी सामहत्यकार भी महंदी को दमक्षि में मज़बूत मस्थमत प्रदान करने के काया में लगे हुए हैं । श्री आररगपुमड रमेश चौधरी , श्री बालशौरर रेड्डी , के नारायि , डॉ . एन चंद्रशेखरन नायर , डॉ . रामन नायर , डॉ . पी आदेश्वर राव , डॉ . रामन नायर , आनंद शंकर माधवन , जी . सीतारामय्या , मप . नारायि “ नरन ” आमद प्रमुख दमक्षि भारतीय महंदी सामहत्यकार हैं । इन सामहत्यकारों ने अपनी मातृभार्षा के साथ-साथ महंदी लेखन के क्षेत्र में भी नाम कमाया । इनकी महंदी रचनाएं भी महंदी को दमक्षि भारत से जोड़ने में महत्वपूिा भूममका मनभा रही हैं ।
दमक्षि भारत में महंदी को भले ही मवरोध का सामना करना पड़े मकं तु सच्चाई यही है मक यमद एक उत्तर भारतीय को दमक्षि भारत में जाना पड़े तो उसे महंदी का ही सहारा ममलेगा । अंग्रेजी कम “ पढ़े मलखे भारतीयों के मलए संपका भार्षा का काया नहीं कर सकती । आचाया हजारीप्रसाद मद्ववेदी ने कहा था मक “ महंदी इसमलए बड़ी नहीं है मक हममें से कु छ इस भार्षा में कहानी या कमवता मलख लेते हैं या सभा मंचों पर बोल लेते हैं । वह इसमलए बड़ी है मक कोमट-कोमट जनता के हृदय और ममस्तष्ट्क की भूख ममटाने में यह भार्षा इस देश का सबसे बड़ा साधन हो सकती है । यमद देश में आधुमनक ज्ञान-मवज्ञान को हमें जन- साधारि तक पहुँचाना है तो इसी भार्षा का सहारा लेकर हम काम कर सकते हैं ।”
भारतीय संमवधान के अनुच्छेद 343 ( 1 ) के अनुसार देवनागरी मलमप में मलमखत महंदी को भारत संघ की
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017