भासषक-सिमिक / Language Discourse
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
भासषक-सिमिक / Language Discourse
िंप क भाषा के रूप में भारत में अंग्रेजी िे असधक िक्षम है सहंदी
रसश्म रानी , पीएच . डी . ( भाषा प्रौद्योसगकी ) भार्षा प्रौद्योमगकी मवभाग , भार्षा मवद्यापीठ
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय महंदी मवश्वमवद्यालय , वध ा ( महाराष्ट्र )
मकसी भी भार्षा को संपका भार्षा का दजाा ममलना बहुत बड़ी बात होती है क्योंमक संपका भार्षा जोड़ने का काया करती है । परस्पर संपका बनाए रखने के मलए संपका भार्षा का होना बहुत आवश्यक है । एक व्यमक्त को दूसरे भार्षा समुदाय के व्यमक्त से , एक प्रांत को दूसरे प्रांत से , एक देश को दूसरे देश से संपका स्थामपत करने के मलए मजस भार्षा का प्रयोग मकया जाता है वही संपका भार्षा कहलाती है । संपका भार्षा मातृभार्षा से अलग भार्षा होती है जो हमें अपने भार्षा समुदाय से मभन्न भार्षा समुदाय से संपका स्थामपत करने में मदद करती है । मजस प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी को संपका भार्षा का दज ा प्राप्त है उसी प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर भारत में महंदी को संपका भार्षा का दजाा मदया गया है । बोधगम्यता को भार्षा-बोली के मनधाारि का आधार माना जाए तो महंदी को संपूिा उत्तर भारत की संपका भार्षा माना जा सकता है । दमक्षि भारत में भले ही महंदी को लेकर मवरोध की मस्थमत बनी रहती है तत्पिात भी कु छ हद तक महंदी संपका भार्षा का काया कर रही है । हालाँमक अंग्रेजी भी एक संपका भार्षा के रूप में काया कर रही है । मकं तु एक आम मशमक्षत भारतीय यमद पूरे देश की यात्रा पर मनकलता है तो संपका भार्षा के रूप में महंदी ही उसकी लाठी बनती है ।
इसीमलए सही मायने में महंदी ही भारत की संपका भार्षा है अंग्रेजी ने तो भ्रम की मस्थमत उत्पन्न कर रखी है । अंग्रेजी मसफा पढ़े मलखे उच्च वगा के मलए संपका भार्षा का काया कर सकती है । कु छ लोगों के द्वारा फै लाया गया ये मायाजाल से मुमक्त महंदी के भले के मलए बहुत आवश्यक है ।
स्वतंत्रता प्रामप्त के दौरान भी महंदी मभन्न भार्षा-भार्षी लोगों के बीच संपका स्थामपत करने का साधन रही और उसने देशवामसयों को एकता के सूत्र में मपरोया । महंदी के इसी महत्त्व के कारि महामा गाँधी ने कहा था- “ प्रांतीय भार्षा या भार्षाओँ के बदले में नहीं बमल्क उनके अलावा एक प्रांत से दूसरे प्रांत का संबंध जोड़ने के मलए सवामान्य भार्षा की आवश्यकता है और ऐसी भार्षा तो एकमात्र महंदी या महन्दुस्तानी ही हो सकती है ।”
कोई भार्षा तभी तक चहुंमुखी मवकास कर पाती है जब तक उसका संपका आम जनता से रहता है । जीमवत भार्षा मनरंतर मवकास की ओर अग्रसर रहती है । महंदी अपने उद्भव काल से ही मवमभन्न प्रदेशों की संपका भार्षा रही है । डॉ . राममवलास शमाा के अनुसार अकबर के महल में बोलचाल की भार्षा महंदी ही थी । अंग्रेजी शासन स्थामपत हो जाने के बाद अंग्रेज़ अफसर भारत की आम जनता से संपका साधने के मलए महंदी भार्षा सीखते थे । महंदी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांमतकाररयों का प्रमुख हमथयार भी थी ।
मध्य देश की महंदी जो दसवीं सदी के आसपास एक सीममत क्षेत्र सूरसेन प्रदेश ( मथुरा के आस पास ) में बोली जाती थी वह मवकमसत होते-होते इतनी सक्षम हो गई की भारत के मवमभन्न प्रदेशों की संपका भार्षा के रूप में सहर्षा स्वीकार कर ली गई ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017