Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 166

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
पमत-पत्नी में एक अनकहा तनाव पैदा करती नजर आती है । जपा , अपने पमत सत्य के साथ रहने के सपने देख रही थी , वह नौकरी नहीं करना चाहती है । अब वह सत्य के साथ भारत में एक छोटा सा घर ले कर रहेगी लेमकन सत्य , जपा से मबना पूछे हेमशंकर द्वारा मदए गये नौकरी के ऑफर को जपा के मलए स्वीकार कर लेता है । यह बात जपा को अच्छी नहीं लगती । इस बात को लेकर जपा और सत्य के बीच खींचा- तानी होती है मक वह अनजान शहर में अके ले कै से रहेगी । सत्य कहता है मक- “ हम मजस मस्थमत में हैं , उसमें पन्द्रह सौ डालर का ऑफर अस्वीकार नहीं कर सकतें ।” 5 इस पर जपा झल्ला जाती है और सत्य पर चीख पड़ती है वह कहती है- “ यही होगा न मक आपके नए घर में मखड़मकयाँ कु छ सस्ती लग जाएंगी , या गुसलखाने में टाइल्स , कहते-कहते उसका गला मभंच गया ।” 6 पर इन सब बातों का कोई लाभ नहीं हुआ । अंततः जपा को हार मानकर दूसरे शहर में अके ले नौकरी करने के मलए जाना ही पड़ता है ।
ब्लेड-सा तीखा और तेज , संवाद की सभी संभावनाओं पर फाटक बंद करता हुआ । उसका जवाब , परस्पर सम्प्रेर्षि पर तेजाब की एक बू ँद-सा फै ल जाता ।” 7
आधुमनक जीवन प्रिाली के चलते दाम्पत्य जीवन में संबंधों की ऊष्ट्मा , प्रेम , संवेदनाएँ समाप्त होती जा रही हैं । पमत-पत्नी संबंधों को के वल मनभा रहे हैं । उसमें एक प्रकार की मववशता मदख रही है । वतामान समय में हर तरफ आगे बढ़ने की ‘ रेस ’ चल रही है । सब इस रेस में आगे रहना चाहते हैं मजसके कारि भी सम्बन्ध में एक अलग टकराहट देखी जा रही है । ‘ रेस ’ तथा ‘ माई नेम इश ताता ’ कहामनयों में संबंधों की टकराहट को देखा जा सकता है । ‘ माई नेम इश ताता ’ कहानी में सूयाबाला ने स्वाथा , अवसरवाद और प्रदशानमप्रयता के चलते स्त्री-पुरुर्ष के बीच आने वाले तनाव के भेद को खोला है । इस कहानी में सूयाबाला ने शौनक और नीना के जीवन के खोखलेपन को मदखाया है । एक मध्यवगीय दम्पमत की अमभलार्षा मात्र ‘ ताता ’ को एक अच्छे स्कू ल में प्रवेश करवा देना नहीं है अमपतु एक ऐसे स्कू ल में प्रवेश करवाना है मजसे वह लोगों को बता सके मक ‘ मेरी बेटी ऐसे बड़े स्कू ल में पढ़ती ’ है । नीना ताता को स्कू ल में दामखले के मलए ले जाती है , लेमकन छोटी सी ताता अध्यामपका के सवालों का जवाब नहीं दे पाती है । इससे नीना को बहुत हताशा होती है । उसे लगता है मक एक बार मफर वह अपने ऑमफस के लोंगो से हार गयी । शौनक के यह कहने पर मक ‘ मैं ’ होता तो ’... वह मतलममला जाती है और तमतमा कर बोलती है- “ मैं पूछती हूँ क्यों नहीं होते , क्यों नहीं हुआ करते ऐसे मौकों पर ? मुझे सब मालूम है । हमेशा ऐसे मौकों पर ऑमफस की इमरजेंसी मीमटंग , वका शाँप आमद के नाम पर झूठ-सच बोल , अपना मपंड छु ड़ाकर मुझे आगे कर देते हो , मजससे बाद में जरा ऊँ च-नीच हो तो तुम अकड़कर अपना सुरमक्षत वाक्य बोल
ममता कामलया की कहनी ‘ लैला-मजनू ँ ’ ऐसे दम्पमत की कहानी है । मजनके मववाह के शुरुआती मदनो में प्रेम बहुत होता है पर समय के साथ-साथ उनके बीच में खट-पट होने लगती है । वास्तव में समय के साथ-साथ पररमस्थमतयाँ भी बदलती रहती हैं । परेशानी तब आती है जब हम सब कु छ पहले की तरह ही पाना चाहते हैं । अपने और अपने जीवनसाथी में कोई बदलाव नहीं चाहते हैं , उस समय सम्बन्ध में अपने आप ही कड़वाहट भरने लगती ह ै । यह कहानी शोभा और पंकज की है । शोभा और पंकज में काफी प्रेम होता है । लेमकन समय के साथ-साथ दोनो में ऊब , कड़वाहट , सम्बन्ध में घुटन सी हो गयी है । उनके दाम्पत्य जीवन के बारे में लेमखका के शब्द कु छ इस प्रकार हैं- “ आजकल जब भी वे अके ले होते , मकचमकचाहट भरी बहस में पड़ जाते । शोभा जो कु छ भी कहती , पंकज उसका एक पैन्तरेबाज जवाब देता , दोधारे सको ......... मैं होता तो ।” 8 नीना और शौनक के बीच Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017