Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 165

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
“ िमकालीन स्त्री कहानीकारों की कहासनयों में असभव्यक्त स्त्री-पुरुष िम्बन्द्ध”
राम िुभाष ममफल महंदी द्वारा 2016 में, पूवोत्तर पवातीय
मवश्वमवद्यालय मशलांग, मेघालय से जन्म उत्तर प्रदेश मनवास- मदल्ली
फोने न.- 8586876430
‘ मकतना बडा ा़झूठ’ में यह मनरसता देखी जा सकती है । मकरन ढाई महीने की छु रट्टयों के बाद घर वापस लौटने के बारे में सोचकर बहुत खुश है, लेमकन यह खुशी अपने बच्चों या मवश्व( पमत) से ममलने की नहीं है, अमपतु मैक्स से ममलने की है । घर पहुँचते ही वह मैक्स को फोन लगाती है, उसे पता चलता है की मैक्स ने मववाह कर मलया है । मकरन के पैरों तले से जमीन मखसक जाती है ।“ मकरन ने साड़ी के अंचल से पीठ और बाँहे ढँक ली, एकाएक उसने चाहा मक वह चीखकर रो पड़े, वैसे ही जैसे पमत की अथी उठते हुए देख सद्यः मवधवा रो उठती है, पर इस समय उसने दांत
आधुमनक समय में ररश्तों में पररवतान देखा जा रहा ।
वैसे तो सभी ररश्ते पररवमतात मदख रहे हैं परन्तु सब से
ज्यादा स्त्री-पुरुर्ष के संबंध में पररवतान लमक्षत होता हैं ।
स्त्री-पुरुर्ष का सम्बन्ध पमत-पत्नी, मपता-बेटी, भाई-
बहन आमद मकसी भी प्रकार का हो सकता है, लेमकन
सबसे अमधक मजस सम्बन्ध में बदलाव नजर आ रहा
है वह है पमत-पत्नी का सम्बन्ध । इनके संबंधों की
गुत्थी उलझती जा रही है । मजसे आज के दम्पमत
सुलझा नहीं पा रहे हैं । इस उलझी हुई गुत्थी के कई
कारि हो सकते हैं जैसे अनमेल मववाह, आमथाक
दबाव, सामामजक दबाव, दाम्पत्य में स्नेह की कमी,
ऊब, घुटन, पािात्य संस्कृ मत का प्रभाव, अंधा
आधुमनकीकरि आमद कु छ ऐसी मस्थमतयाँ हैं मजनको
लोग समझ नहीं पा रहे हैं । उन्हें यह समझ में नहीं आ
रहा है मक हमारे सम्बन्धों में चूक कहाँ हो रही है ।
“ दाम्पत्य संबंधों की तुमशायों, अलगाव और ररक्तता
की चरम पररिमत दाम्पत्य संबंधों के मबल्कु ल टूट
जाने में ही होती है । पमत-पत्नी संबंध का यह अलगाव
कभी-कभी कानूनी रूप ले लेता है, तो कभी मबना
कसकर भींच मलए और पीछे वृक्षों, फू लों और घास
को देखती रही । ्टश्य रह-रहकर धु
ंधला जाता है ।” 2
मैक्स से मकरन को मकसी प्रकार का प्रेम नहीं है, वह
तो के वल उसके स्पशा से वंमचत रह जाएगी । मकसी भी
बंधन में बंधने के बाद उससे स्वतंत्र होना बहुत ही
कमठन काम होता है । मकरन और मवश्व के वल इस
सम्बन्ध को ढोते नजर आतें हैं । मवश्व जब मकरन से
पूछता है मक क्या मैं सदा तुम्हारे जीवन की पररमध से
बाहर रहूँगा? तब मकरन का यह जवाब पूरे संबंध के
अथा, नीरसता को व्यक्त कर देता है वह कहती है मक-
“ पररमध पर तो नहीं हो । मवश्व से बांध दी गई थी ।” 3 न
मवश्व के पास कोई चारा है इस सम्बन्ध से मनजात पाने
का और न ही मकरन के पास, दोनो ही इस सम्बन्ध को
ढोने के मलए मववश हैं । अंततः“ वह अपनी जगह
बैठी-बैठी मवश्व की ओर देखती रही, मफर एकाएक ही
उठकर उसने मवश्व का हाथ पकड़ मलया और मंद स्वर
में कहा, आइए, अब मबस्तर पर चलें ।” 4
मकसी कानूनी कायावाही और औपचाररकता से भी
आमथाक दबाव ने संबंधों के बीच तनाव पैदा करने में
दोनो पूिातः संबंध-मवच्छेद कर लेता है ।” 1 आधुमनक
मुख्य भूममका मनभाई है । आमथाक दबाव के चलते
जीवन प्रिाली की एक समस्या यह है मक पमत-पत्नी
आज स्त्री-पुरुर्ष दोनो को ही नौकरी करनी पड़ रही है ।
के बीच संबंधों में ऊब, घुटन, मनरसता, अके लापन
दो वक्त की रोटी जुटाने के मलए मध्यवगीय पररवार
आ गया है । पमत-पत्नी में अब प्रेम नहीं रहा है, वह
को बहुत मशक्कत करनी पड़ रही है । उर्षा मप्रयंवदा
के वल ररश्ते को ढो रहे हैं । उर्षा मप्रयंवदा की कहानी
की कहानी‘ स्वीकृ मत’ इसी आमथाक दबाव के चलते
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017