Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 144

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
9,11,12,14,15,17,19,26,27 ) अनुपलब्ध है । यह ग्रंथ उक्त सोसाइटी के पुस्तकालय में मचरकाल तक अप्रकामशत रहा । इस ग्रंथ के प्रकाशनाथा कई बार मवमभन्न मवद्वानों के अथक प्रयास मवफल रहे । अन्ततः 1940 ई . में एमशयामटक सोसाइटी , कलकत्ता के सुनीमत कु मार चटजी और पंमडत बबुआ जी ममश्र के संपादन में इस ग्रंथ का प्रकाशन संभव हो पाया , वह भी मचरकाल से वहाँ से लुप्त है । इस कारि , इस ग्रंथ के पुनमु ाद्रि के मलए , मैमथली अकादमी प्रकाशन ( पटना ) संस्थान की स्थापना के प्रथम वर्षा ( 1956 ई .) के कायाक्रम में स्वीकृ त हुआ और इसके संपादन का काया पटना मवश्वमवद्यालय के मैमथली मवभागाध्यक्ष , प्रो . आनन्द ममश्र को मदया गया , मजन्होंने इस ग्रंथ का गहन अध्ययन मकया था । अन्ततः इस ग्रंथ ( मैमथली भार्षा में व्याख्या समहत मूल ग्रंथ ) का प्रकाशन , मैमथली अकादमी द्वारा संपादक और व्याख्याकार प्रो . आनन्द ममश्र ( मैमथली मवभागाध्यक्ष , पटना मवश्वमवद्यालय ) एवं श्री गोमवन्द झा ( उपमनदेशक , राज-भार्षा मवभाग , मबहार सरकार , पटना ) के संपादन में , 1980 ई . में , मकया गया । व्याख्या करते समय लौमकक और शास्त्रीय दोनों साधनों का उपयोग मकया गया- लौमकक साधन का उपयोग कम तथा शास्त्रीय साधन , यथा- पुराि , स्मृमत , धमा-शास्त्र , नाट्य- शास्त्र , संगीत-शास्त्र आमद , का उपयोग अपेक्षाकृ त अमधक ।
मममथलांचल के प्रकाण्ड मवद्वान ज्योमतरीश्वर ठाकु र की प्रमसदध कृ मत विारत्नाकर मैमथली सामहत्य की प्रथम और संपूिा आयाभार्षा सामहत्य की अन्यतम गद्य कृ मत मानी जाती है । गद्य-मवधा के क्षेत्र में पदापिा करने वाले आमदकालीन सामहत्यकार ज्योमतरीश्वर ठाकु र की गिना महन्दी के ख्यामत-लब्ध सामहत्यकार के रुप में की जाती है । इसमलए सामहत्य जगत में समदयों से आती परंपरा को अमवमछन्न कर गद्य भार्षा
शैली की नवीन पररपाटी मनममात की , जो परवती आयाभार्षा सामहत्य के मलए मागादशाक बना । इन्होंने अपने मौमलक मचन्तन के द्वारा सामहत्य जगत में गद्य- मवधा की आधारमशला ‘ विारत्नाकर ’ ( 1324 ) के रुप में रखने का युगान्तरकारी सफल प्रयास मकया । इनके द्वारा मलखा गया ‘ विारत्नाकर ’ का गद्य भले ही पररस्कृ त न हो , पर इसे गद्य-लेखन परंपरा का सुरुमचपूिा सुन्दर अमभनव प्रयास अवश्य माना जा सकता है । विारत्नाकर मैमथली भार्षा का आद्य गद्य ग्रंथ है । यह आधुमनक उत्तर-भारत के आयाभार्षा का सवाप्रथम और सवाश्रेष्ठ गद्य-ग्रंथ माना जाता है । विारत्नाकर मध्ययुगीन उत्तर भारत के सामामजक और सांस्कृ मतक अध्ययन हेतु अमूल्य मनमध तो है ही , भार्षा के मवकास के अध्ययन हेतु भी इसका असाधारि महत्व है । प्रमसद्ध भार्षा वैज्ञामनक डा . सुनीमत कु मार चटजी ने विारत्नाकर का रचनाकाल चौदहवीं शताब्दी का पूवााद्ध माना है ।
‘ विारत्नाकर ’ के संबंध में इमतहासज्ञ बच्चन मसंह ‘ महन्दी सामहत्य का दूसरा इमतहास ’ में मलखते हैं मक इसमें मैमथली के प्राचीन रुप का पता चलता है , तत्कामलन सामामजक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है । सबसे बड़ी बात है मक इसमें न तो अपभ्रंश का व्याकरमिक ढ़ाँचा है और न कृ मतम शब्दावली ।
विारत्नाकर के संपादक और व्याख्याकार प्रो . आनंद ममश्र और श्री गोमवन्द झा के अनुसार विारत्नाकर एक मवमचत्र प्रकार का ग्रन्थ है । विारत्नाकर में राजा हररमसंहदेव को के मन्द्रत कर तत्कालीन नगरीय जनजीवन के सामामजक , सांस्कृ मतक और शास्त्रीय पररवेश का अदभुत विान मकया गया है । विारत्नाकर आठ कल्लोल में मवभक्त है-नगर विान , नामयका विान , आस्थान विान , ऋतु विान , प्रयािक विान , भट्टामद विान , श्मशान विान । आठवाँ कल्लोल अधूरा है । इस ग्रंथ में अनेक मवर्षयों
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017