Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
9,11,12,14,15,17,19,26,27) अनुपलब्ध है । यह ग्रंथ उक्त सोसाइटी के पुस्तकालय में मचरकाल तक अप्रकामशत रहा । इस ग्रंथ के प्रकाशनाथा कई बार मवमभन्न मवद्वानों के अथक प्रयास मवफल रहे । अन्ततः 1940 ई. में एमशयामटक सोसाइटी, कलकत्ता के सुनीमत कु मार चटजी और पंमडत बबुआ जी ममश्र के संपादन में इस ग्रंथ का प्रकाशन संभव हो पाया, वह भी मचरकाल से वहाँ से लुप्त है । इस कारि, इस ग्रंथ के पुनमु ाद्रि के मलए, मैमथली अकादमी प्रकाशन( पटना) संस्थान की स्थापना के प्रथम वर्षा( 1956 ई.) के कायाक्रम में स्वीकृ त हुआ और इसके संपादन का काया पटना मवश्वमवद्यालय के मैमथली मवभागाध्यक्ष, प्रो. आनन्द ममश्र को मदया गया, मजन्होंने इस ग्रंथ का गहन अध्ययन मकया था । अन्ततः इस ग्रंथ( मैमथली भार्षा में व्याख्या समहत मूल ग्रंथ) का प्रकाशन, मैमथली अकादमी द्वारा संपादक और व्याख्याकार प्रो. आनन्द ममश्र( मैमथली मवभागाध्यक्ष, पटना मवश्वमवद्यालय) एवं श्री गोमवन्द झा( उपमनदेशक, राज-भार्षा मवभाग, मबहार सरकार, पटना) के संपादन में, 1980 ई. में, मकया गया । व्याख्या करते समय लौमकक और शास्त्रीय दोनों साधनों का उपयोग मकया गया- लौमकक साधन का उपयोग कम तथा शास्त्रीय साधन, यथा- पुराि, स्मृमत, धमा-शास्त्र, नाट्य- शास्त्र, संगीत-शास्त्र आमद, का उपयोग अपेक्षाकृ त अमधक ।
मममथलांचल के प्रकाण्ड मवद्वान ज्योमतरीश्वर ठाकु र की प्रमसदध कृ मत विारत्नाकर मैमथली सामहत्य की प्रथम और संपूिा आयाभार्षा सामहत्य की अन्यतम गद्य कृ मत मानी जाती है । गद्य-मवधा के क्षेत्र में पदापिा करने वाले आमदकालीन सामहत्यकार ज्योमतरीश्वर ठाकु र की गिना महन्दी के ख्यामत-लब्ध सामहत्यकार के रुप में की जाती है । इसमलए सामहत्य जगत में समदयों से आती परंपरा को अमवमछन्न कर गद्य भार्षा
शैली की नवीन पररपाटी मनममात की, जो परवती आयाभार्षा सामहत्य के मलए मागादशाक बना । इन्होंने अपने मौमलक मचन्तन के द्वारा सामहत्य जगत में गद्य- मवधा की आधारमशला‘ विारत्नाकर’( 1324) के रुप में रखने का युगान्तरकारी सफल प्रयास मकया । इनके द्वारा मलखा गया‘ विारत्नाकर’ का गद्य भले ही पररस्कृ त न हो, पर इसे गद्य-लेखन परंपरा का सुरुमचपूिा सुन्दर अमभनव प्रयास अवश्य माना जा सकता है । विारत्नाकर मैमथली भार्षा का आद्य गद्य ग्रंथ है । यह आधुमनक उत्तर-भारत के आयाभार्षा का सवाप्रथम और सवाश्रेष्ठ गद्य-ग्रंथ माना जाता है । विारत्नाकर मध्ययुगीन उत्तर भारत के सामामजक और सांस्कृ मतक अध्ययन हेतु अमूल्य मनमध तो है ही, भार्षा के मवकास के अध्ययन हेतु भी इसका असाधारि महत्व है । प्रमसद्ध भार्षा वैज्ञामनक डा. सुनीमत कु मार चटजी ने विारत्नाकर का रचनाकाल चौदहवीं शताब्दी का पूवााद्ध माना है ।
‘ विारत्नाकर’ के संबंध में इमतहासज्ञ बच्चन मसंह‘ महन्दी सामहत्य का दूसरा इमतहास’ में मलखते हैं मक इसमें मैमथली के प्राचीन रुप का पता चलता है, तत्कामलन सामामजक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है । सबसे बड़ी बात है मक इसमें न तो अपभ्रंश का व्याकरमिक ढ़ाँचा है और न कृ मतम शब्दावली ।
विारत्नाकर के संपादक और व्याख्याकार प्रो. आनंद ममश्र और श्री गोमवन्द झा के अनुसार विारत्नाकर एक मवमचत्र प्रकार का ग्रन्थ है । विारत्नाकर में राजा हररमसंहदेव को के मन्द्रत कर तत्कालीन नगरीय जनजीवन के सामामजक, सांस्कृ मतक और शास्त्रीय पररवेश का अदभुत विान मकया गया है । विारत्नाकर आठ कल्लोल में मवभक्त है-नगर विान, नामयका विान, आस्थान विान, ऋतु विान, प्रयािक विान, भट्टामद विान, श्मशान विान । आठवाँ कल्लोल अधूरा है । इस ग्रंथ में अनेक मवर्षयों
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017