Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 143

स्त्री- सिमिक / Feminist Discourse
ज्योसतरीश्वर िाकु र का िणकरयनाकरः स्त्री के पररप्रेक्ष्य िे
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725

स्त्री- सिमिक / Feminist Discourse

ज्योसतरीश्वर िाकु र का िणकरयनाकरः स्त्री के पररप्रेक्ष्य िे

सप्रयंका कु मारी , िोधाथी
मैमथल सामहत्य के इमतहास में ज्योमतरीश्वर ठाकु र के युग को स्विायुग कहा गया है । ये मैमथली के प्रमसद्ध लेखक और संस्कृ त के प्रकाण्ड कमव होने के साथ कु शल संगीत-शास्त्रज्ञ भी थे । इन्होने संस्कृ त में पंचशायक ( कामशास्त्र ) और धूत्तासमागम ( प्रहसन ), मैमथली में विारत्नाकर ( गद्य ) की रचना की । इनकी उत्कृ से काव्य रचना धूत्तासमागम के प्रियन के मलए , उन्हें ‘ कमवशेखराचाया ’ और ‘ अमभनव-भरत ’ की उपामध से मवभूमर्षत मकया गया था । अथा , समृमद्ध , संस्कृ मत और मवद्या की ्टमसे से मैमथल सामहत्य का वह युग अत्यन्त समृद्ध था । उस युग में मममथला मशक्षा ओर धमा का ज्ञानपीठ माना जाता था । अत : प्रचुर संख्या में छात्रगि और ज्ञानमपपासु ज्ञानाजान के मलए वहाँ पधारते थे । इनके कालक्रम में ही प्रमसद्ध मवद्वानों की प्रमसद्ध कृ मतयाँ यथा-चण्डेश्वर ठाकु र का वृहत ग्रन्थ ‘ स्मृमत-सागर ’, लक्ष्मीधर का धमाशास्त्र संबद्ध वृहत ग्रन्थ ‘ स्मृमत-कल्पतरु ’, हररनाथ का ‘ स्मृमत- सार ’ आमद प्रभृत मैमथल सामहत्य की रचनाएँ रची गयी ।
इस अमवस्मरिीय योगदान को आया भार्षा-सामहत्य समहत महन्दी भार्षा-सामहत्य और महन्दी-भार्षी सदैव ऋिी रहेंगे । प्रमसदध इमतहासज्ञ डा . नगेन्द्र अपने ग्रन्थ ‘ महन्दी भार्षा-सामहत्य का इमतहास ’ में मलखते हैं मक महन्दी गद्य के मवकास में राउलवेल के पिात विारत्नाकर का योगदान कम नही कहा जा सकता ........। ये कृ मतयाँ गद्य धारा के प्रवाह की अखंडता को मसद्ध करती हैं ।
गद्य भार्षा के इस युगान्तरकारी प्रिेता के जीवनवृत पर मवद्वानों में मतवैमवध्य हैं । प्रमसद्ध मैमथल मवद्वान नगेन्द्र नाथ के अनुसार , ज्योमतरीश्वर ठाकु र मवद्यापमत के प्रमपतामह थे । पर अन्य मवद्वानों ने इसे अस्वीकार मकया है । प्रमसद्ध मैमथल मवद्वान रमानाथ झा , ज्योमतरीश्वर ठाकु र का जन्म 1348 के आस पास मानते हैं । इनके मपतामह का नाम रामेश्वर ठाकु र और मपता का नाम धीरेश्वर ठाकु र था । धूत्तासमागम ( पृ . सं - 1320 ) में इन्होनें जो अपना जीवन पररचय मदया है-
‘ महािािनश्रेणीसिखरग्रामयपल्लीजन्द्मभूसमना । ’
इसके अनुसार इनका जन्म मममथलांचल ( नेपाल ) के श्रीमत्पल्ली नामक ग्राम के पमलबाड़ िाह्मि कु ल में 1290 ई . में हुआ था । इनके वंश का उपनाम ठाकु र था । ये मशव के अनन्य उपासक थे । ये मममथला के कनााटवंश शासक हररमसंहदेव ( सन्1298-1324ई .) के दरबारी कमव थे । इनकी मृत्यु 1350 ई . में हुई थी ।
पद , भार्षा-सामहत्य की एक ऐसी मवधा है , मजसमें सामहत्य की समस्त मवधाओं पर रचना कर पाना संभव नही था । पर गद्य के उत्थान के साथ ही भार्षा-सामहत्य में मवधाओं के अनेक मागा प्रशस्त्र हुए , मजसपर मनरन्तर अग्रसर होती महन्दी भार्षा एवं सामहत्य आज मवकास और समृदमध के मशखर को स्पशा कर रही है । मैमथली भार्षा-सामहत्य के मवद्वान के
िणकरयनाकर कमवशेखराचाया
ज्योमतरीश्वर
ठाकु र
कृ त
‘ विारत्नाकर ’ की हस्तमलमखत मूल प्रमत बंगाल के
एमशयामटक सोसाइटी ( सरकारी हस्तमलमखत संग्रह ) में
सुरमक्षत है । यह ग्रंथ 77 तार के पत्ते ( 38x15 सें . मी .)
पर मतरहुता मलमप में 1509 ई . में मलखा गया था ,
मजसमें
से
17
पत्ते
( 1-
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017