Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 14

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
5 दरारें पड़ गयीं हैं दीवारों पर नयी, महकती, रंग पुती दीवारों पर उसके मन के ररसते जख्मों को देखकर बोलती ही तो नहीं हैं देखती और सुनती तो सब कु छ हैं न ।
6 जहाँ से काटी गयीं थीं पेड की जड़ें... वहीं पर फू ट गयीं नयीं कोंपलें... पेड़ ने भी ले मलया अपना बदला अपने ही तरीके से ।
7 मजंदगी ने उम्रभर अपनी ऊँ गमलयों के बीच फँ सा कर रखा, जलती हुई मसगरेट की तरह । वो कश भरती रही और राख की तरह वक्त की ढेरी पर मगराती रही मुझे ।
8 आज मफर चाँद मनकलेगा आज मफर रहोगे तुम मकसी की मनगाह में आज मफर वक्त मुझे बतायेगा ऐमडयाँ ऊँ ची करने से चाँद को छु आ नहीं जा सकता ।
9 जीवन के धागों में बँधी नाचती हूँ लट्टू सी घूम-घूम कर तलाशती हूँ अपने मलए एक धुरी नाच सकू अपनी मजी अपनी खुशी से ।
10 ख्वाबों का मसर थपथपाते-थपथपाते नींद को अक्सर नींद आ जाती है ख्वाब सारी रात कु नमुनाते रहते हैं नींद हाथ बढ़ा अपने बाजुओं में समेटना चाहती है... ख्वाब हर बार मबदक के खाली मबस्तर पर दूर चले जाते हैं । _______________
किसयिी- श्रीमती िंध्या यादि महंदी प्राध्यामपका- नेशनल महामवद्यालय, बान्द्रा( पमिम), मु ंबई- 400050 संपका-9769640629 ई-मेलsandhya _ chaubey29 @ rediffmail. com
अनूप बाली की कसिताएँ कु छ गुमिुदा आिाज़ें
कु छ गुमशुदा आवाज़ें आज भी कभी-कभी सुनाई पड़ती हैं
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017