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Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
5 दरारें पड़ गयीं हैं दीवारों पर नयी , महकती , रंग पुती दीवारों पर उसके मन के ररसते जख्मों को देखकर बोलती ही तो नहीं हैं देखती और सुनती तो सब कु छ हैं न ।
6 जहाँ से काटी गयीं थीं पेड की जड़ें ... वहीं पर फू ट गयीं नयीं कोंपलें ... पेड़ ने भी ले मलया अपना बदला अपने ही तरीके से ।
7 मजंदगी ने उम्रभर अपनी ऊँ गमलयों के बीच फँ सा कर रखा , जलती हुई मसगरेट की तरह । वो कश भरती रही और राख की तरह वक्त की ढेरी पर मगराती रही मुझे ।
8 आज मफर चाँद मनकलेगा आज मफर रहोगे तुम मकसी की मनगाह में आज मफर वक्त मुझे बतायेगा ऐमडयाँ ऊँ ची करने से चाँद को छु आ नहीं जा सकता ।
9 जीवन के धागों में बँधी नाचती हूँ लट्टू सी घूम-घूम कर तलाशती हूँ अपने मलए एक धुरी नाच सकू अपनी मजी अपनी खुशी से ।
10 ख्वाबों का मसर थपथपाते -थपथपाते नींद को अक्सर नींद आ जाती है ख्वाब सारी रात कु नमुनाते रहते हैं नींद हाथ बढ़ा अपने बाजुओं में समेटना चाहती है ... ख्वाब हर बार मबदक के खाली मबस्तर पर दूर चले जाते हैं । _______________
किसयिी- श्रीमती िंध्या यादि महंदी प्राध्यामपका- नेशनल महामवद्यालय , बान्द्रा ( पमिम ), मु ंबई- 400050 संपका -9769640629 ई-मेलsandhya _ chaubey29 @ rediffmail . com
अनूप बाली की कसिताएँ कु छ गुमिुदा आिाज़ें
कु छ गुमशुदा आवाज़ें आज भी कभी-कभी सुनाई पड़ती हैं
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017