Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
मक वह ग म ु श द ु ा
म झ ु े ममलेगा मकसी चौराहे पर
घ म ू ता हुआ ,
अपने पररवार के साथ
दोस्तों के साथ।।
नाम-ििांक पाण्डेय
पता-बी-2/280 ए-4-बी
लेन नं- 14 रमवन्द्रप र ु ी कालोनी,
भदैनी,वारािसी(221005).
मो.नं- 8090819694
ईमेल[email protected]
..............................................................
श्रीमती िंध्या यादि की कसिताए
अंति की हूक
1
मचमड़या चीं चीं करती ह
मचमड़या ने स न ु ी है आवाज
जडों को ममट्टी का साथ छोड़ने की
मचमड़या परे शान है तब से अपने घोंसले के मलए
उसमें हैं उसके बच्च
मजनके प ख
अभी मनकले नहीं ह
मगरते हुए धोंसलों में भरती है मतनकों का पैबंद
नहीं जानती आगे क्या होगा ?
मचमड़या लगाती ह
अनमगनत चक्कर वहीं आस पास
बच्चे बेपरवाह जड़ों के उखड़ने की बात स
माँ जल्दी लौट आती है दाना लेकर
मबताती है अपना वक्त उनके साथ
बच्चे ख श
हैं , बहुत ख श
मचमड़या देखती है बार-बार जड़ों को
मचमड़या बार-बार मनहारती है बंद पलकों स
आसमानी आसमान को
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
शायद कोई रहता है वहाँ ?
मचमड़या मचखती है बहुत खामोशी स
नहीं भर सकती वो जडों में ममट्टी
नहीं बना सकती वो द स ू रा नीड़
मचमड़या मौन ह
मचमड़या म क
नहीं ।
2
मेरी छाती से आग उधार ले कर
ख द ु को दहकाता है रोज स र ू ज
टँग कर आसमानी आसमान म
ख द ु पर मकतना इतराता है स र ू ज ।
3
चोटी खींच मेरी ,
मसर पर मारकर चपत
अक्सर कहता था
वो म झ ु े "पगली"
जी चाहता था कभी-कभी ,
म ि ु ी में भरकर कालर उसका
प छ
ू ँ -
"क्यों कहता है रे म झ ु को पगली"
नहीं प छ
ा ,
नहीं प छ
पायी ,
होमशयारी म झ ु े न रास आयी ,
पगली रहकर ही तो,
मैं उसकी पस द ं बन पायी ।
4
तेरी य ँ ू ही मलखी हुई
कमवता का एक पीला पन्ना
आज भी सँभाल रखा ह
प र ु ानी डायरी में - छुपाकर
सोंधी सी महक आती है !
ठीक वैसी ही
जैसी आती होगी शायद तेरे बदन से ।
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017