Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मैं जानता हूँ मजस रात मैं मलखने बैठा हूँ उस हसीन कमवता को वह रात बहुत दुःख भरी है मजसे मैं महसूस कर रहा हूँ के वल और के वल मैं महसूस कर रहा हूँ मेरे दोस्त मजस कमवता को मैं मलख रहा हूँ वह कमवता तुम्हारे मलये इतनी बोमझल भी नहीं होगी मक तुम पढ़ न सको लेमकन मेरे दोस्त मजसे मैं मलखना चाहता हूँ मसफा और मसफा तुम्हारे मलए ...... उसमें मेरे और तुम्हारे हर पलों का मजक्र होगा मजक्र होगा हमारे आततायी दुखों का सामथयों द्वारा मदये गये गहरे घावों का , मजसे साथ रहकर ही हमने भरा है , असमय की ताप बहुत झेला है हमने कई-कई थपेड़े सहे है हमने एकसाथ लेमकन इन सबके बावजूद हमारी काया और मजबूत हुई , लड़ाई लड़ने के मलये हम और प्रमतबद्ध हुये तुम तटस्थता का यू ँ ही पररचायक बन कर रहना मेरे दोस्त और मैं मफर-मफर मलखता रहूँगा वहीं सबसे हसीन कमवता वह भी गद्य में मसफा और मसफा तुम्हारे मलए ।।
( 3 ) पहला प्रेम ----------------------------- तुम्हारे कटे हुये होंठ से खून की एक बू ँद मबखर गयी है मेरे होठों के एक छोर पर , तुम खड़ी हो रेमगस्तान के तट पर उड़ाती हुई रेत को तुम क्या सोचती हो क्या तुम्हारे होठों से मगरी हुई खून की वह एक बू ँद जो मेरे होठों पर मगरी थी क्या उतनी ही गमा है ?
( 4 ) उम्मीद अब भी बाकी है ---------------------------------------- गुमशुदा की तलाश अब भी जारी है अखबारों में पोस्टरों पर , कारखानों की ओट में छापेखानों में छापे जा रहे है गुमशुदा के नाम धड़ाधड़ अखबारों में पोस्टर फाड़ मदये जा रहे है लेमकन अखबारों में उनके नामू आज भी छापे जा रहे है शहर में घूमता रहता हूँ मैं रोज़ न जाने मकतने लोग मुझे रोज़ ममलते है यमद ममलता नहीं तो के वल वह साला गुमशुदा मजसकी तलाश कल भी जारी थी और आज भी जारी है उम्मीद अब भी बाकी है
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017