िासहसययक सिमिक : कसिता
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
िासहसययक सिमिक : कसिता
िािांक पाण्डेय की कसिताएँ
( 1 ) िपने ----------------- सपने हम में से उन सभी को देखने चामहये मजन्होंने सुराख की चाह रखी है कयोंमक सपने अचानक हथेमलयों पर उग नहीं आते , उसके मलये बुनने होते है कई-कई सपने जलना होता है आग की भरियों में तपाना होता है अपने आप को सपने उन्हें देखने चामहये जो इस दौर में भी अपने को बारीक सुरमक्षत रख पाये है माँ तो रोज़ देखती है सपने मपता भी कभी-कभार देख लेते है सपने बहन-भाई तो रोज़ देखते है नये-नये सपने लेमकन क्या सपने वे नहीं देखते है जो दंगों के भेंट चढ़ जाते होंगे और उसके बाद उनके पूरे के पूरे सपने अधूरे रह जाते होंगे इस देश में गनी ममयाँ के भी कु छ तो सपने जरूर रहे होंगे जैसे ठीक गाँधी और नेहरू के सपने थे आमखर उनके पूवाज भी तो यहीं पर मवभाजन के बाद बसे थे उन्होंने भी इस देश के मलये अपना लहू बहाया था , लेमकन उनका हुआ क्या ? मकन राष्ट्रवामदयों के वह मशकार हो गये मेरी माँ कहती है
मक- " गनी भाई गौरक्षकों के ही मशकार हुये थे " जैसे पहले इसी देश में अख़लाक , जुनैद भी मार मदये गये और उसके बाद उनके सारे सपने उन्हीं तक जज़् हो गये जुनैद तो पंद्रह बरस का नवयुवक था उसके सपने तो और भी ज्यादा अंकु ररत थे वह इसी देश में औरों की तरह मसपाही बन सकता था प्रोफे सर बन सकता था राजनीमतज्ञ बन सकता था और यमद तराजू सही हो तो तो वह इसी देश का प्रधानमंत्री और राष्ट्रपमत भी बन सकता था लेमकन राष्ट्रवामदयों ने उसके सपने को भी कि में काफी गहरे तक दफनाया लेमकन उम्मीदों का कई-कई क्रम टूट जाने के बावजूद मफर भी सपने नहीं टूटने चामहये इसमलये सपने हम में से सभी को देखने चामहये ।।
( 2 ) सिर्क तुम्हारे सलए ----------------------- आज की रात मैं मलख रहा हूँ सबसे हसीन कमवता वह भी गद्य में मसफा और मसफा तुम्हारे मलए वह कमवता कभी भी सावाजमनक मंचों से नहीं पढ़ी जाएगी , और न ही काव्य गोमष्ठयों में उसका मजक्र होना है
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017