Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 110

२ ) भारतेंदु युगीन सहंदी नािकों का स्िरुप : - भारतेंदु पूवा युगीन नाटकों में सन 1700 के आसपास मलखा गया महाराज मवश्वनाथ मसंह कृ त ‘ आनंद रघुनन्दन ’ नामक नाटक भारतेंदु युग के पूवा नाटकों में मगना है । भारतेंदु के मपता गोपालचंद्र उपनाम मगररधर दास द्वारा रमचत नहुर्ष सन 1857 महंदी का प्रथम आधुमनक नाटक माना जाता है । इसके बाद शीतलाप्रसाद मत्रपाठी रमचत जानकी मंगल 1868 आमद नाटकों ने भारतेंदु युग पूवा महत्त्वपूिा कृ मतयों स्थान मनभाया हैं ।
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
वास्तव में भाव ही हमारे जीवनगि एवं सामामजक मूल्य है । मंच पर इन्ही प्रमतफमलत होते देखकर हमें एक प्रकार का आनंद ममलता है । हमारे समामजक भाव की तृमप्त होती है । ” इसमलए नाटक हमारे यथाथा जीवन से जोड़ा गया है । वह सामामजक मूल्यों की परख अपने अमभनय के माध्यम से मदखाते हैं । कमवता , मनबंध आमद में भी कल्पना के अमतररक्त तथा मवर्षय एवं अमभव्यमक्त की व्यापकता के मलए कम अवसर होने के कारि जीवन-मूल्यों का मौका नाटक की तुलना में कम रहता हैं । जबमक नाटक में मूल्यामभव्यमक्त की जीवंत एवं अपेक्षाकृ त व्यापक प्रमक्रया उपमस्थत करता हैं ।

२ ) भारतेंदु युगीन सहंदी नािकों का स्िरुप : - भारतेंदु पूवा युगीन नाटकों में सन 1700 के आसपास मलखा गया महाराज मवश्वनाथ मसंह कृ त ‘ आनंद रघुनन्दन ’ नामक नाटक भारतेंदु युग के पूवा नाटकों में मगना है । भारतेंदु के मपता गोपालचंद्र उपनाम मगररधर दास द्वारा रमचत नहुर्ष सन 1857 महंदी का प्रथम आधुमनक नाटक माना जाता है । इसके बाद शीतलाप्रसाद मत्रपाठी रमचत जानकी मंगल 1868 आमद नाटकों ने भारतेंदु युग पूवा महत्त्वपूिा कृ मतयों स्थान मनभाया हैं ।

जब से भारतेंदु युग का आरम्भ हुआ तब से इस युग के प्रमसद्ध नाटककार स्वयं भारतेंदु ही रहे हैं । भारतेंदु द्वारा अनुमदत तथा मौमलक कृ त सत्रह नाटक हैं मजसमें सवाप्रथम ‘ मवधाशंकर ’ बांनला से रूपांतररत नामक
नाटक सन 1868 में मलखा गया । उसी वर्षा ‘ रत्नावली ’ संस्कृ त से अनुमदत पाखण्ड मवडंबन ( 1872 ), धनंजय मवजय ( 1873 ), कपूर मंजरी ( 1875 ), श्री चंद्रावली नामटका ( 1873 ), मवघटन मवर्षमौधम नाटक ( 1876 ), भारत दुदाशा ( 1880 ), नीलदेवी गीतीरुपक ( 1881 ), अँधेरी नगरी प्रहसन नाटक ( 1881 ), सती प्रताप ( 1883 ), प्रेमयोमगनी नामटका ( 1875 ) आमद कृ मतयाँ हैं । इस युग में प्रेम प्रधान रोमानी नाटक भी मलखे गये मजसमें श्री मनवासदास कृ त , रिधीर प्रेम मोमहनी , मकशोरी लाल गोस्वामी कृ त प्रिमयनी पररिय , शालीग्राम शुक्ल कृ त ‘ मयंक मंजरी ’, लावण्यवती सुदशान , गोकु लनाथ शमाा कृ त ‘ पुष्ट्पवती ’ आमद नाटक प्रमुख हैं । वास्तव में इन सभी नाटकों का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जनजागृमत तथा राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करना था । भारतीय संस्कृ मत तथा अतीत के गौरव को पुनर जागृत करने एवं भारतीयता की रक्षा करने की मदशा में भी भारतेंदु युगीन नाटकों का महत्त्वपूिा योगदान रहा है । इसमलए नाटक मवधा आज भी प्रासंमगक है । इसमलए भरतमुमन अपने रससुत्र में कहते है मक – “ मवभावानुभावनयमभचारीसंयोगाद्ररसमनघ मत ” नाटकों का उद्देश्य सामामजको को रसानुभूमत कराना ही नाटक का उद्देश्य माना गया हैं । रस की मनष्ट्पमत मवभावों , अनुभावों , संचारीभावों और संयोग के द्वारा होती है । इस मत पर मवमवध मवद्वानों ने अपने-अपने मत
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017