२) भारतेंदु युगीन सहंदी नािकों का स्िरुप:- भारतेंदु पूवा युगीन नाटकों में सन 1700 के आसपास मलखा गया महाराज मवश्वनाथ मसंह कृ त‘ आनंद रघुनन्दन’ नामक नाटक भारतेंदु युग के पूवा नाटकों में मगना है । भारतेंदु के मपता गोपालचंद्र उपनाम मगररधर दास द्वारा रमचत नहुर्ष सन 1857 महंदी का प्रथम आधुमनक नाटक माना जाता है । इसके बाद शीतलाप्रसाद मत्रपाठी रमचत जानकी मंगल 1868 आमद नाटकों ने भारतेंदु युग पूवा महत्त्वपूिा कृ मतयों स्थान मनभाया हैं ।
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725
वास्तव में भाव ही हमारे जीवनगि एवं सामामजक मूल्य है । मंच पर इन्ही प्रमतफमलत होते देखकर हमें एक प्रकार का आनंद ममलता है । हमारे समामजक भाव की तृमप्त होती है ।” इसमलए नाटक हमारे यथाथा जीवन से जोड़ा गया है । वह सामामजक मूल्यों की परख अपने अमभनय के माध्यम से मदखाते हैं । कमवता, मनबंध आमद में भी कल्पना के अमतररक्त तथा मवर्षय एवं अमभव्यमक्त की व्यापकता के मलए कम अवसर होने के कारि जीवन-मूल्यों का मौका नाटक की तुलना में कम रहता हैं । जबमक नाटक में मूल्यामभव्यमक्त की जीवंत एवं अपेक्षाकृ त व्यापक प्रमक्रया उपमस्थत करता हैं ।
२) भारतेंदु युगीन सहंदी नािकों का स्िरुप:- भारतेंदु पूवा युगीन नाटकों में सन 1700 के आसपास मलखा गया महाराज मवश्वनाथ मसंह कृ त‘ आनंद रघुनन्दन’ नामक नाटक भारतेंदु युग के पूवा नाटकों में मगना है । भारतेंदु के मपता गोपालचंद्र उपनाम मगररधर दास द्वारा रमचत नहुर्ष सन 1857 महंदी का प्रथम आधुमनक नाटक माना जाता है । इसके बाद शीतलाप्रसाद मत्रपाठी रमचत जानकी मंगल 1868 आमद नाटकों ने भारतेंदु युग पूवा महत्त्वपूिा कृ मतयों स्थान मनभाया हैं ।
जब से भारतेंदु युग का आरम्भ हुआ तब से इस युग के प्रमसद्ध नाटककार स्वयं भारतेंदु ही रहे हैं । भारतेंदु द्वारा अनुमदत तथा मौमलक कृ त सत्रह नाटक हैं मजसमें सवाप्रथम‘ मवधाशंकर’ बांनला से रूपांतररत नामक
नाटक सन 1868 में मलखा गया । उसी वर्षा‘ रत्नावली’ संस्कृ त से अनुमदत पाखण्ड मवडंबन( 1872), धनंजय मवजय( 1873), कपूर मंजरी( 1875), श्री चंद्रावली नामटका( 1873), मवघटन मवर्षमौधम नाटक( 1876), भारत दुदाशा( 1880), नीलदेवी गीतीरुपक( 1881), अँधेरी नगरी प्रहसन नाटक( 1881), सती प्रताप( 1883), प्रेमयोमगनी नामटका( 1875) आमद कृ मतयाँ हैं । इस युग में प्रेम प्रधान रोमानी नाटक भी मलखे गये मजसमें श्री मनवासदास कृ त, रिधीर प्रेम मोमहनी, मकशोरी लाल गोस्वामी कृ त प्रिमयनी पररिय, शालीग्राम शुक्ल कृ त‘ मयंक मंजरी’, लावण्यवती सुदशान, गोकु लनाथ शमाा कृ त‘ पुष्ट्पवती’ आमद नाटक प्रमुख हैं । वास्तव में इन सभी नाटकों का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जनजागृमत तथा राष्ट्रीय भावना उत्पन्न करना था । भारतीय संस्कृ मत तथा अतीत के गौरव को पुनर जागृत करने एवं भारतीयता की रक्षा करने की मदशा में भी भारतेंदु युगीन नाटकों का महत्त्वपूिा योगदान रहा है । इसमलए नाटक मवधा आज भी प्रासंमगक है । इसमलए भरतमुमन अपने रससुत्र में कहते है मक –“ मवभावानुभावनयमभचारीसंयोगाद्ररसमनघ मत” नाटकों का उद्देश्य सामामजको को रसानुभूमत कराना ही नाटक का उद्देश्य माना गया हैं । रस की मनष्ट्पमत मवभावों, अनुभावों, संचारीभावों और संयोग के द्वारा होती है । इस मत पर मवमवध मवद्वानों ने अपने-अपने मत
Vol. 3, issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017