जो बिंदु उठाए , उनमें से अधिकांश विचारातमक थे ।
यह बात कि मैं उनके सुझावों को मानने के लिए तैयार नहीं था , उनके सुझावों की महत्ा को कम नहीं करती और न सभा की कार्रवाइयों को जानदार बनाने में उनके योगदान को कम आंकती है । मैं उनका कृतज्ञ हूं । उनके बिना मुझे संविधान के मूल सिद्धांतों की वयाखया करने का अवसर न मिला होता , जो संविधान को यंत्रवत् पारित करा लेने से अधिक महतवपूर्ण था ।
और अंत में , राषट्रपति महोदय , जिस तरह आपने सभा की कार्रवाई का संचालन किया है ,
उसके लिए मैं आपको धनयवाद देता हूं । आपने जो सौजनय और समझ सभा के सदसयों के प्लत दर्शाई है वे उन लोगों द्ारा कभी भुलाई नहीं जा सकती , जिनहोंने इस सभा की कार्रवाईयों में भाग लिया है । ऐसे अवसर आए थे , जब प्ारूप समिति के संशोधन ऐसे आधारों पर असवीकृत किए जाने थे , जो विशुद्ध रूप से तकनीकी प्कृति के थे । मेरे लिए वे क्षण बहुत आकुलता से भरे थे ,
इसलिए मैं विशेष रूप से आपका आभारी हूं कि आपने संविधान-निर्माण के कार्य में यांत्रिक विधिवादी रवैया अपनाने की अनुमति नहीं दी ।
संविधान का जितना बचाव किया जा सकता था , वह मेरे मित्रों सर अलिालि कृषणासवामी अययर और टी . टी . कृषणमाचारी द्ारा किया जा चुका है , इसलिए मैं संविधान की खूबियों पर बात नहीं करूंगा । कयोंकि मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना अच्ा हो , वह बुरा साबित हो सकता है , यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों ।
एक संविधान चाहे जितना बुरा हो , वह अच्ा साबित हो सकता है , यदि उसका पालन करने वाले लोग अच्े हों । संविधान की प्भावशीलता पूरी तरह उसकी प्कृति पर निर्भर नहीं है । संविधान केवल राजय के अंगों - जैसे विधायिका , कार्यपालिका और नयायपालिका - का प्ावधान कर सकता है । राजय के इन अंगों का प्चालन जिन ततवों पर निर्भर है , वे हैं जनता और उनकी आकांक्षाओं तथा राजनीति को संतुषट करने के उपकरण के रूप में उनके द्ारा गठित राजनीतिक दल ।
यह कौन कह सकता है कि भारत की जनता और उनके दल किस तरह का आचरण करेंगे ? अपने उद्ेशयों की पूर्ति के लिए कया वे संवैधानिक तरीके इसतेमाल करेंगे या उनके लिए क्रांतिकारी तरीके अपनाएंगे ? यदि वे क्रांतिकारी तरीके अपनाते हैं तो संविधान चाहे जितना अच्ा हो , यह बात कहने के लिए किसी जयोलतरी की आवशयकता नहीं कि वह असफल रहेगा । इसलिए जनता और उनके राजनीतिक दलों की संभावित भूमिका को धयान में रखे बिना संविधान पर कोई राय वयकत करना उपयोगी नहीं है ।
संविधान की निंदा मुखय रूप से दो दलों द्ारा की जा रही है - कमयुलनसट पाटथी और सोशलिसट पाटथी । वे संविधान की निंदा कयों करते हैं ? कया इसलिए कि वह वासतव में एक बुरा संविधान है ? मैं कहूंगा , नहीं । कमयुलनसट पाटथी सर्वहारा की तानाशाही के सिद्धांत पर आधारित संविधान चाहती है । वह संविधान की निंदा इसलिए करते हैं कि वह संसदीय लोकतंत्र
पर आधारित है । सोशलिसट दो बातें चाहते हैं । पहली तो वे चाहते हैं कि संविधान यह वयवसरा करे कि जब वे सत्ा में आएं तो उनहें इस बात की आजादी हो कि वे मुआवजे का भुगतान किए बिना समसत निजी संपलत् का राषट्रीयकरण या सामाजिकरण कर सकें । सोशलिसट जो दूसरी चीज चाहते हैं , वह यह है कि संविधान में दिए गए मूलभत अधिकार असीमित होने चाहिए , ताकि यदि उनकी पाटथी सत्ा में आने में असफल रहती है तो उनहें इस बात की आजादी हो कि वे न केवल राजय की निंदा कर सकें , बकलक उसे उखाड़ फेंकें ।
मुखय रूप से ये ही वह आधार हैं , जिन पर संविधान की निंदा की जा रही है । मैं यह नहीं कहता कि संसदीय प्जातंत्र राजनीतिक प्जातंत्र का एकमात्र आदर्श सवरूप है । मैं यह नहीं कहता कि मुआवजे का भुगतान किए बिना निजी संपलत् अधिगृहीत न करने का सिद्धांत इतना पवित्र है कि उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता । मैं यह भी नहीं कहता कि मौलिक अधिकार कभी असीमित नहीं हो सकते और उन पर लगाई गई सीमाएं कभी हटाई नहीं जा सकतीं । मैं जो कहता हूं , वह यह है कि संविधान में अंतनिर्हित सिद्धांत वर्तमान पीढ़ी के विचार हैं । यदि आप इसे अतयुककत समझें तो मैं कहूंगा कि वे संविधान सभा के सदसयों के विचार हैं । उनहें संविधान में शामिल करने के लिए प्ारूप समिति को कयों दोष दिया जाए ? मैं तो कहता हूं कि संविधान सभा के सदसयों को भी कयों दोष दिया जाए ? इस संबंध में महान अमेरिकी राजनेता जेफरसन ने बहुत सारगर्भित विचार वयकत किए हैं , कोई भी संविधान-निर्माता जिनकी अनदेखी नहीं कर सकते । एक सरान पर उनहोंने कहा है -
हम प्तयेक पीढ़ी को एक लनकशचत राषट्र मान सकते हैं , जिसे बहुमत की मंशा के द्ारा सवयं को प्लतबंधित करने का अधिकार है ; परंतु जिस तरह उसे किसी अनय देश के नागरिकों को प्लतबंधित करने का अधिकार नहीं है , ठीक उसी तरह भावी पीढिमयों को बांधने का अधिकार भी नहीं है । एक अनय सरान पर उनहोंने कहा है
tuojh 2025 47