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भारतीय गणतंत् की हीरक जयंती

पर बेहतर संशोधन प्सतालवत करने की ईमानदारी और साहस न दिखाया होता तो वह अपना कर्तवय-पालन न करने और मिथयालभमान की दोषी होती । यदि यह एक गलती थी तो मुझे खुशी है कि प्ारूप समिति ने ऐसी गलतियों को सवीकार करने में संकोच नहीं किया और उनहें ठीक करने के लिए कदम उठाए ।
यह देखकर मुझे प्सन्नता होती है कि प्ारूप समिति द्ारा किए गए कार्य की प्शंसा करने में एक अकेले सदसय को छोड़कर संविधान सभा के सभी सदसय एकमत थे । मुझे विशवास है कि अपने श्म की इतनी सहज और उदार प्शंसा से प्ारूप समिति को प्सन्नता होगी । सभा के सदसयों और प्ारूप समिति के मेरे सहयोगियों द्ारा मुकत कंठ से मेरी जो प्शंसा की गई है , उससे मैं इतना अभिभूत हो गया हूं कि अपनी कृतज्ञता वयकत करने के लिए मेरे पास पर्यापत शबि नहीं हैं । संविधान सभा में आने के पीछे मेरा उद्ेशय अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा करने से अधिक कुछ नहीं था ।
मुझे दूर तक यह कलपना नहीं थी कि मुझे अधिक उत्रदायितवपूर्ण कार्य सौंपा जाएगा । इसीलिए , उस समय मुझे घोर आशचय्ष हुआ , जब सभा ने मुझे प्ारूप समिति के लिए चुन लिया । जब प्ारूप समिति ने मुझे उसका अधयक्ष निर्वाचित किया तो मेरे लिए यह आशचय्ष से भी परे था । प्ारूप समिति में मेरे मित्र सर अलिालि कृषणासवामी अययर जैसे मुझसे भी बड़े , श्ेषितर और अधिक कुशल वयककत थे । मुझ पर इतना विशवास रखने , मुझे अपना माधयम बनाने एवं देश की सेवा का अवसर देने के लिए मैं संविधान सभा और प्ारूप समिति का अनुगृहीत हूं ।
जो श्ेय मुझे दिया गया है , वासतव में उसका हकदार मैं नहीं हूं । वह श्ेय संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार सर बी . एन . राव को जाता है , जिनहोंने प्ारूप समिति के विचारार्थ संविधान का एक सच्चा प्ारूप तैयार किया । श्ेय का कुछ भाग प्ारूप समिति के सदसयों को भी जाना चाहिए जिनहोंने , जैसे मैंने कहा , 141 बैठकों में भाग लिया और नए िलॉमू्षिे बनाने में जिनकी दक्षता तथा विभिन्न दृकषटकोणों को सवीकार
करके उनहें समाहित करने की सामथ्रय के बिना संविधान-निर्माण का कार्य सफलता की सीढिमयां नहीं चढ़ सकता था ।
श्ेय का एक बड़ा भाग संविधान के मुखय रिाफटसमैन एस . एन . मुखजथी को जाना चाहिए । जटिलतम प्सतावों को सरलतम व सपषटतम कानूनी भाषा में रखने की उनकी सामथय्ष और उनकी कड़ी मेहनत का जोड़ मिलना मुकशकि है । वह सभा के लिए एक संपदा रहे हैं । उनकी सहायता के बिना संविधान को अंतिम रूप देने में सभा को कई वर्ष और लग जाते । मुझे मुखजथी के अधीन कार्यरत कर्मचारियों का उलिेख करना नहीं भूलना चाहिए , कयोंकि मैं जानता हूं कि
उनहोंने कितनी बड़ी मेहनत की है और कितना समय , कभी-कभी तो आधी रात से भी अधिक समय दिया है । मैं उन सभी के प्यासों और सहयोग के लिए उनहें धनयवाद देना चाहता हूं ।
यदि यह संविधान सभा भानुमति का कुनबा होती , एक बिना सीमेंट वाला कच्चा फुटपाथ , जिसमें एक काला पतरर यहां और एक सफेद पतरर वहां लगा होता और उसमें प्तयेक सदसय
या गुट अपनी मनमानी करता तो प्ारूप समिति का कार्य बहुत कठिन हो जाता । तब अवयवसरा के सिवाय कुछ न होता । अवयवसरा की संभावना सभा के भीतर कांग्ेस पाटथी की उपकसरलत से शूनय हो गई , जिसने उसकी कार्रवाईयों में वयवसरा और अनुशासन पैदा कर दिया । यह कांग्ेस पाटथी के अनुशासन का ही परिणाम था कि प्ारूप समिति के प्तयेक अनुच्ेि और संशोधन की नियति के प्लत आशवसत होकर उसे सभा में प्सतुत कर सकी । इसीलिए सभा में प्ारूप संविधान के सुगमता से पारित हो जाने का सारा श्ेय कांग्ेस पाटथी को जाता है ।
यदि इस संविधान सभा के सभी सदसय पाटथी
अनुशासन के आगे घुटने टेक देते तो उसकी कार्रवाइयां बहुत फीकी होतीं । अपनी संपूर्ण कठोरता में पाटथी अनुशासन सभा को जीहुजूरियों के जमावड़े में बदल देता । सौभागयवश , उसमें विद्रोही थे । वे थे कामत , डा . पी . एस . देशमुख , सिधवा , प्ो . सकसेना और पं . ठाकुरदास भार्गव । इनके साथ मुझे प्ो . के . टी . शाह और पं . हृदयनाथ कुंजरू का भी उलिेख करना चाहिए । उनहोंने
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