प्लतशत को खुली प्लतयोगिता के लिए रखना अवसर की समानता के प्रम सिद्धानत के अनुरूप होगा ? मेरे मतानुसार ऐसा नहीं होगा । इसलिए नौकरियों में आरक्षण अलपसंखया में ही होना चाहिए ।
अतीत की भदूलों से शिक्ा लें
25 नवंबर 1949 का दिन बड़ा ऐतिहासिक दिन था । भारतीय संविधान के मुखय शिलपी डा . आंबेडकर आज संविधान के ऊपर अपना अंतिम भाषण देने जा रहे थे । तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका सवागत हुआ । संविधान के निर्माण में सहयोग देने वाले सभी महानुभावों का नाम लेकर उनहें सादर धनयवाद दिया । अनत में एक मार्मिक , हृदय सपशथी तथा देशभककत से ओत-प्ोत भाषण देते हुए उनहोंने कहा- ' अपने इतिहास के ऊपर एक दृकषट डालने पर कया दिखाई पड़ता है , यह धयान देने की बात है । एक बात जो मुझ को बहुत अधिक कषट देती है वह यह है कि पहले भी कई बार इस देश ने अपनी सवतनत्रता को देशभककत के अभाव तथा विशवासघात के कारण खोया है । मोहममि बिन कासिम द्ारा सिनध पर आक्रमण के समय राजा दाहिर के कुछ लोगों ने बिन कासिम से पैसा ले लिया और राजा की ओर से िड़ने से मना कर दिया । वह जयचनि ही था जो मोहममि गौरी को पृथवीराज से िड़ने के लिए बुलाकर लाया था और सवयं तथा सोलंकी राजाओं ने मोहममि गौरी को सहयोग देने का वचन भी दिया था । शिवाजी महाराज जब हिनिुओं की सवतनत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे तब कई राजपूत राजे तथा अनय लोग उनके विरोध में मुगलों का साथ दे रहे थे । जब सिखों का अंग्ेजों से संघर्ष चल रहा था तब उनका सेनापति ही शानत होकर बैठ गया । 1857 में जब देश के एक बड़े हिससे ने सवतनत्रता का संघर्ष छेड़ दिया था , उस समय सिकख शाकनत से बैठे सब कुछ देखते रहे । कया इतिहास अपने आप को पुनः दोहराएगा ? आज हमें यह बात सवीकार करनी चाहिए कि आज देश भर में अनेक जातियां , वर्ग एवं
दल बन गए हैं । वह एक दूसरे के विरोध में भी खड़े दिखते हैं । हम लोग तय करें कि अपने दलगत अथवा वर्णगत हितों को देश के हितों के ऊपर नहीं रखेंगे अनयरा हमारी सवतनत्रता फिर खतरे में पड़ सकती है । आज हम संकलप करें कि रकत की अकनतम बूंद तक देश की सवतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष करते रहेंगे ।
26 जनवरी , 1950 को गवर्नर जनरल के गवर्नमेंट हाउस में पूर्वाह्न 10.30 पर निम्न घोषणा की गई- ' भारत की जनता ने इस बात को धयान में रखते हुए कि हमने भारत को प्भुसत्ा समपन्न लोकतांत्रिक गणराजय बनाना है , 26 नवमबर , 1949 को भारत का संविधान अपनाया , उसे कानून बनाया और अपने आपको दिया । 26 जनवरी , 1950 का दिन उकत संविधान को प्ारमभ करने का दिन लनकशचत किया गया है । अतः अब एतद् द्ारा उदघोलरत किया जाता है कि आज 26 जनवरी , 1950 से भारत एक प्भुसत्ा समपन्न , लोकतांत्रिक गणराजय होगा ।'
हमको यह बात भली प्कार समझ में आनी चाहिए कि यद्लप डा . आंबेडकर दलित वर्ग के थे परनतु उनहोंने केवल दलितों की ही चिनता नहीं की , वरन भारत के सभी लोगों का अपना संविधान बनाकर उनको दिया । संविधान सभा में सरदार पटेल , जवाहर लाल नेहरू सरीखे दिगगज लोग मौजूद थे । उनकी बातों का सभा
में बहुत महतव होता था और वह अपने दमदार प्भाव से सभा के बहुमत को अपनी ओर मोड़ सकते थे । डा . आंबेडकर ने सभी को सुना और सभी को संतुषट करने का प्यत्न भी किया । संविधान में अनेक ऐसे प्ावधान हैं , जिनसे शायद उनकी सहमति नहीं होगी फिर भी संविधान में उनको सरान दिया । कई सरानों पर उनहोंने दूसरों की बातों को अधिक महतव दिया लेकिन जो महान दायितव उनहें सौंपा था , कितनी भी विपरीत पररकसरलतयां आयी , परनतु उनहोंने न उसको छोड़ा और न उससे बेईमानी की ।
अपनी-अपनी चलाने के लिए साम-दाम- ि्ड-भेद की नीति का प्योग नहीं किया और जब अपनी बात सवीकार नहीं की गई तब कभी तयागपत्र देकर बाहर जाने की न कोशिश की और न धमकी दी । उनहोंने कहा- ' हिनिुओं को जब वेदों की आवशयकता थी , उनहोंने महर्षि वेद वयास को बुलाया जो सवर्ण नहीं थे , जब हिनिुओं को महाकावय ( रामायण ) चाहिए था , उनहोंने वालमीलक को लगाया जो कि अ्टूत थे और आज हिनिुओं को संविधान की आवशयकता थी , उनहोंने मुझे लगा दिया ।' यद्लप उनहोंने असपृशयता का घोर कषट सहा था किनतु संविधान बनाते समय जातिगत संकीर्णता का भाव उनको सपश्ष भी नहीं कर सका ।
( डा कृषण गोपाल की पुसतक बाबा साहब : वयककत और विचार से साभार )
tuojh 2025 43