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भारतीय गणतंत् की हीरक जयंती

लोकतंत् में जातिवाद का कोई स्ान नहीं
वायस ऑफ अमेरिका को दी गई अपनी एक भेंट वार्ता में डा . आंबेडकर ने लोकतांत्रिक वयवसरा के ऊपर प्काश डालते हुए कहा कि कोई भी लोकतंत्र वहां के लोगों के रहने के तौर-तरीकों से निर्माण होता है । लोकतंत्र की जड़ों को उन सामाजिक समबनधों में ढटूंढना चाहिए जो कि उस समाज में वहां के लोगों के सामंजसय पूर्ण जीवन से आपस में निर्माण होते हैं । भारतीय समाज जीवन पूर्ण रूप से जातिवाद पर आधारित है । यदि आप समाज के निम्न वर्ग को शिक्षित कर देंगे तो वह जाति वयवसरा को उखाड़कर फेंक देगा । ऐसे लोगों को शिक्षा देने से जो जाति वयवसरा को उखाड़ कर फेंक देंगे , हम लोकतांत्रिक वयवसराओं को ही मजबूत करेंगे और भारत के लोकतनत्र को सुरक्षित हाथों में पहुंचा देंगे ।
लोकतंत् का वयििारिक सिरूप
डा . आंबेडकर सामयवादी विचारधारा के विरुद्ध थे । उनहें सर्वहारा की तानाशाही के सिद्धानत पर आसरा नहीं थी । अपनी मानयताओंको और अधिक सपषट करते हुए डा . आंबेडकर ने कहा कि लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा करते हुए कहा था कि यह जनता द्ारा जनता के लिए चुनी गई जनता की सरकार है । लोकतंत्र की और भी परिभाषाएं हो सकती है । मैं सवयं लोकतंत्र को एक अलग ढंग से परिभाषित करता हूं अधिक मूर्त रूप में । मैं समझता हूं कि लोकतंत्र ऐसी सरकार है जिसमें जनता के सामाजिक और आर्थिक जीवन में क्राकनतकारी परिवर्तन , रकतहीन तरीके से किए जा सकेंगे । लोकतंत्र की मेरी परिभाषा यही है ।
भगवा धिज को राषट्र-धिज के रूप में सिीकार करने के प्यास
डा . आंबेडकर संविधान सभा की झ्डा समिति के सदसय थे । 3 जुलाई , 1947 को वह बमबई आए और उस समय महाराषट्र के हिनिू
महासभा के कुछ नेता उनके निवास पर मिलने के लिए गए । डा . आंबेडकर ने उनको वचन दिया कि वह भगवा धवज ( गेरूआ ) के समर्थन में अपनी बात अवशय रखेंगे । बशतवे उसके लिए अनय जिममेिार क्षेत्रों के लोगों को भी आनिोिन द्ारा पर्यापत दबाव बनाना चाहिए । 10 जुलाई को हवाई जहाज से जाते समय बहुत से नागरिक तथा हिनिू नेता उनको विदाई देने आए । उस समय उनहोंने डा . आंबेडकर को हवाई जहाज में अपना सरान ग्हण करते समय एक भगवा धवज सममान सहित भेंट किया । डा . आंबेडकर ने उनको वचन दिया कि यदि इस धवज के लिए आनिोिन होगा तो मैं निशचय ही अपना समर्थन दूंगा और प्सन्नता के साथ हंसते हुए उनहोंने वहां खड़े एस . के बोले , अननत राव गदरे तथा अनय साथियों को पूछा कि कया आपने किसी महार के िड़के द्ारा संविधान सभा के ऊपर यह गेरूआ ( भगवा धवज ) फहराने की कलपना की है ? आगे चलकर संविधान सभा ने 22 जुलाई को चक्र सहित तिरंगे झ्डे को राषट्र-धवज के रूप में सवीकार कर लिया । बाद में यह बात जानकारी में आई कि डा . आंबेडकर ने अपनी बात को सभा में रखा था , किनतु बाहर आनिोिन करके गेरूआ धवज को सवीकार करने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया जा सका और इस प्कार डा . आंबेडकर ने तिरंगे झ्डे में ही धर्मचक्र को सरान दिलाया ।
सीमा आयोग को चेतावनी
सीमा आयोग के कार्य और उसकी जिममेिारी के बारे में डा . आंबेडकर ने सावधान करते हुए भारत सरकार को कहा कि यदि मेरी आशंकाए ठीक निकलीं और सीमा आयोग द्ारा तय की जा रही भारत की सीमाएं प्ाकृतिक न हुईं तो फिर यह भविषयवाणी करने के लिए किसी देवदूत की आवशयकता नहीं है कि भारत सरकार को इसका रख-रखाव बहुत महंगा पड़ेगा और इसके कारण से भारत के लोगों की सुरक्षा ही खतरे में पड़ जाएगी । यद्लप पहले से ही पर्यापत विलमब हो चुका है , मैं आशा करता हूं कि रक्षा विभाग इस विषय में और अधिक विलमब नहीं करेगा और अपना दायितव पूर्ण करेगा ।
आरक्ण का विषय आरक्षण के विषय पर संविधान सभा में यह
प्श्न आया कि आरक्षण कब तक ? उस समय सारे देश ने यह बात सवीकार की थी कि समाज के जो लोग सदियों से दबे हुए हैं , उनहें आरक्षण देना चाहिए । डा . आंबेडकर ने इस विषय को सपषट करते हुए कहा कि आरक्षण एक सहारा है और यह सहारा असरायी ही रहेगा । इसलिए हम चाहते हैं कि अपने दलित-लप्ड़े बनधु समाज में शीघ्रातिशीघ्र ऊपर उठें और यह असरायी वयवसरा समापत की जानी चाहिए । डा . आंबेडकर ने चेतावनी दी , ' धयान रखो , आगे आने वाली कोई भी सरकार अपने सवार्थ के कारण इस आरक्षण को समापत करने का साहस नहीं जूता सकेगी और तब यह एक नया संकट देश के सामने उपकसरत हो जाएगा । इसलिए में संविधान के अनिर आरक्षण के प्ावधान की धारा को असरायी सवरूप के साथ ही मानयता देता हूं जो दस वर्ष के अनिर सवतः ही समापत हो जायेगी अर्थात इसको हटाने के लिए कोई प्सताव नहीं लाना पड़ेगा वरन इसको पुनः लागू करने के लिए हर दस वर्ष बाद संसद की अनुमति लेनी पड़ेगी ।
आरक्ण की सीमा 50 प्वतरत से अधिक न हो
संविधान सभा में जब यह प्श्न खड़ा हुआ कि दलित वर्ग तथा अनय उपेक्षित वगषों के लिए नौकरियों में आरक्षण कितना होना चाहिए , उस समय डा . आंबेडकर ने सपषट कहा था कि यह 50 प्लतशत से अधिक नहीं हो सकता । वह मानते थे कि समान अवसर के सिद्धानत को धयान में रखकर ही विशेष अवसर के सिद्धानत को काया्षकनवत किया जा सकता है । डा . आंबेडकर ने चेतावनी देते हुए कहा कि आरक्षण के नाम पर खुली प्लतयोगिता के अवसर समापत मत करो । वह सपषट करते हैं कि मान लीजिए उदाहरण के तौर पर , किसी जाति या समूह के लिए राजय की नौकरियों का 70 प्लतशत आरक्षित हो जाता है और केवल 30 प्लतशत गैर आरक्षित बचता है तो कया कोई यह कह सकेगा कि 30
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