Jan 2025_DA | Page 41

भारतीय जनता ने कितनी ही क्राकनतयों और परिवर्तनों को सहन किया है , इन सब के मधय ग्ाम पंचायतों ने ही उनहें सबसे अधिक सुख , प्सन्नता और सवतंत्रता प्िान की है । इसमें कोई संदेह नहीं कि जहां बहुत सी दूसरी चीजें नषट हो गईं , वहां ग्ाम-पंचायतें आज तक बनी हुई हैं ।
डा . आंबेडकर एक प्श्न करते हैं , ' राषट्र पर या समाज पर विपलत् के समय ग्ाम तथा ग्ाम-पंचायतें अपनी समसत शककत के साथ प्लतकार करने के लिये उठकर खड़ी कयों नहीं हो सकीं ? राषट्र की समसयाओं से उनहोंने अपने आप को निरपेक्ष कयों बनाया ? शत्रुओं की छोटी सी सेना से भी वह संघर्ष कयों नहीं कर सकी ? सवयं ही उत्र भी देते हैं- राषट्र के प्लत दायितव बोध के अभाव के कारण ऐसा हुआ
है ।' डा . आंबेडकर चाहते थे कि इस देश का कोई भी वयककत राषट्र और समाज के प्लत अपने दायितव बोध से मुकत नहीं हो सकता । इसलिए संविधान ने ग्ाम को इकाई न मानकर प्तयेक वयककत के अधिकार और उसके कर्तवय का विचार किया है । जिससे कि कभी भी राषट्रीय संकट के समय सारा राषट्र एकजुट खड़ा होकर उस संकट का सामना कर सके और उसे दूर कर सके । देश की सुरक्षा करना उसका संवैधानिक दायितव है । वह राषट्र के ऊपर आये संकटों से निरपेक्ष नहीं रह सकता ।
चुनाव आयोग की सिायत्ता
यदि लोकतनत्र को सवसर रूप में विकसित
करना है तो निषपक्ष चुनाव उसकी पहली सीढ़ी है । निषपक्ष चुनावों के लिए चुनाव आयोग को किसी भी प्कार के दबाव से मुकत करना अनिवार्य हैं । ' चुनाव आयोग के गठन की प्लक्रया तथा इसके कार्य करने के ऊपर नियंत्रण के संबंध में अनेक सुझाव आ चुके थे । परनतु डा . आंबेडकर के बार-बार जोर देने पर ही चुनाव आयोग एक सवायत् निकाय के तौर पर कायम हुआ ताकि देश में सवतंत्र और निषपक्ष चुनाव हो सकें ।
संविधान तो अचछा है किनतु वयसकत भी अचछा चाहिए
डा . आंबेडकर का कहना था कि संविधान तो अच्ा है परनतु वयककत भी ठीक चाहिए । सवारथी , सत्ािोलुप लोग कितने भी अच्े संविधान को तोड़-मरोड़कर अपने अनुककूि बनाने का प्यत्न कर सकते हैं । इसलिए यह दायितव देश की जनता का है कि वह कैसे लोगों को चुनकर भेजती है । वयककतयों के बिकने का एक उदाहरण देते हुए डा . आंबेडकर कहते हैं कि एक उदाहरण देता हूं जिसका मेरे ऊपर बहुत प्भाव पड़ा । जब मैंने यह इतिहास पढ़ा कि सकाटलै्ड तथा इंगिैंड का विलय किस प्कार हुआ , मेरे आशचय्ष की सीमा नहीं थी कि भ्रषटाचार और खरीदफरोखत का ऐसा खेल हुआ कि सकालटश संसद की मंजूरी ले ली गई और सारी की सारी सकालटश संसद खरीद ली गई । डा . आंबेडकर कहते हैं कि जनप्लतलनलधयों के इस प्कार से बिकने से देश की प्भुसत्ा तथा लोकतनत्र दोनों ही समापत हो जायेंगे । मुझे विशवास है कि मेरे देश के नागरिक अपना चरित्र उज्वि और देशभककत पूर्ण ही रखेंगे और ऐसे कलंकित उदाहरणों से संविधान और राषट्र का अपमान नहीं करेंगे । संविधान सभी पररकसरलतयों में देश को एक बनाए रखने में समर्थ है । किसी भी संविधान को समपूण्ष नहीं कहा जा सकता । जो संविधान मसौदा समिति ने तैयार किया है , वह इस देश में शुरूआत के तौर पर काफी
अच्ा है । मेरा विचार है कि यह कामचलाऊ और लचीला है । यह शांति और युद्ध के समय देश को इकट्ा बनाए रखने में समर्थ है यदि नए संविधान से कुछ गलत काम होंगे तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि हमारा संविधान बुरा है । हमें कहना पड़ेगा कि इनसान ही दुषट था ।
वैदिक , शैव , सिख , जैन , बौद्ध आदि सभी हिन्दू हैं
संविधान सभा में इस विषय पर काफी लमबी बहस चली कि हिनिू कौन ? उस समय डा . आंबेडकर ने निर्भयता के साथ बहस का जबाव देते हुए कहा कि इस देश में जो भी मत-समप्िाय पैदा हुए हैं , वह सभी हिनिू हैं । डा . आंबेडकर ने हिनिू कोड बिल के लिए हिनिू शबि की वयापक वयाखया की । उनहोंने कहा- ईसाई , मुसलमान , पारसी तथा यहूदी लोगों को छोड़कर शेष सभी लोग हिनिू हैं तथा उनके ऊपर हिनिू कोड बिल लागू होगा । इस प्कार वैदिक , शैव , वैषणव , सिख , जैन , बौद्ध , वनवासी क्षेत्रों में रहने वाली सभी जनजातियां हिनिू ही कहलाई जाएंगी । डा . आंबेडकर कहते हैं कि भारत में वैदिक , बौद्ध , जैन , सिख आदि धर्म पंथ उतपन्न हुए । उनहोंने अपने लिए सवतनत्र कानून अथवा धर्मशासत्र की रचना नहीं की । कानून की नई संहिता नहीं बनाई । न बुद्ध ने , न महावीर ने । विद्ान सिकख सदसय सरदार हुकुम सिंह की तरफ ( जो बाद में लोकसभा के अधयक्ष भी बने ) देखकर चुनौती के रूप में डा . आंबेडकर ने कहा ' मेरी जानकारी के अनुसार सिकखों के दस गुरूओं ने भी कोई नई संहिता या समृलत तैयार नहीं की है । 1830 के बाद प्ीवी काउंसिल द्ारा भारत का संविधान तैयार करने तक सिखों को कानून की दृकषट से हिनिू ही माना जाता रहा है । संविधान के अनुच्ेि-25 ने और नई बात कया की है ? प्ीवी काउंसिल की वयाखया को ही अपनाया है । डा . आंबेडकर की अकाट् युककतयों का प्लतवाद करने के लिए अंतरिम संसद में एक भी सदसय की हिममत नहीं हुई । उलटे सरदार हुकुम सिंह ने कहा कि कानून की दृकषट से निससंिेह यही कसरलत है ।
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