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भारतीय गणतंत् की हीरक जयंती

राजनीतिक और राषट्रीय एकता की अवधारणा समप्िाय निरपेक्ष है और राजय संवैधानिक दृकषट से किसी विशेष समप्िाय के साथ जुड़ा हुआ नहीं है और न ही वह जान-बूझकर उसकी अभिवृद्धि या उसमें हसतक्षेप करेगा ।
असपृशयता अपराध घोषित
डा . आंबेडकर संविधान की मसौदा समिति के अधयक्ष थे । अनुसूचित जाति के सभी लोगों के लिए यह कितने सममान की बात थी कि जिन पुरानी रूलढ़वादी वयवसराओं के कारण जिस बालक ने इतना अपमान और तिरसकार सहा था , वह सवयं कानून और वयवसरा बनाने वालों का अधयक्ष बन चुका था । डा . आंबेडकर के सभी वरिषि सहयोगियों ने यह निर्णय लिया कि असपृशयता को अपराध घोषित करने वाला कानून बनना चाहिए ।
29 अप्ैि , 1947 को सरदार बलिभ भाई पटेल असपृशयता विरोधी प्सताव को लेकर संविधान सभा में खड़े हुए । भारतीय इतिहास के कलुषित अधयाय को समापत करने वाला यह प्सताव जब संविधान सभा में रखा गया तो सर्वसममलत से शीघ्र ही पारित हो गया । लौह पौरुष के द्ारा लाया गया यह प्सताव इस बात का प्तीक था कि देश भर के सवर्ण लोगों को तदनरूप अपनी मानसिकता बनानी चाहिए । सारी दुनिया के लिए यह एक आननििायक समाचार था । विशव भर के समाचार पत्रों ने उसके ऊपर अपने अग्िेख लिखे । महातमा फुले , डा . आंबेडकर , वीर सावरकर , श्द्धाननि , सवामी दयाननि , गांधी जी , सवामी अ्टूताननि जैसे सैंकड़ों लोगों के अथक पररश्म के कारण ही यह दिन देखने को मिला था और असपृशयता अपराध घोषित हो चुकी थी । उस ऐतिहासिक घोषणा में कहा गया था कि किसी भी रूप में छुआ्टूत समापत है और छुआ्टूत के कारण किसी पर अयोगयता थोपना ि्डनीय अपराध होगा ।
इस कानून के बनते ही सरदार पटेल जैसे लौह पुरूष की ऊंचाई कुछ और बढ़ गयी । हजारों वर्ष के पशचात भारतीय इतिहास के
सामाजिक अधयाय का वह काला अक्षर सदैव के लिए मिट गया । एक बार पुनः मानवीय जीवन-मूलय विजयी हुए तथा हिनिू संसकृलत की जीवनतता सर्वविदित हो गई । हिनिू समाज अपनी समसत बुराइयों को दूर करने के लिए संघर्ष करता रहा है और करता रहेगा , यह आतमलवशवास और अधिक दृढ़ हो गया । हिनिू समाज का क्षयिषणु मेरुि्ड पुनः सवसर होकर शककत समपन्न हो गया । समाज के दलित तथा असपृशय कहे जाने वाले हिनिू मानवता की पवित्र गंगा में पुनः वापस आ गए थे । प्सताव का सरदार पटेल द्ारा प्सतुतीकरण अपने आप में इस बात का प्माण था कि उनके हृदय में दलित वर्ग के लिए मानवीय संवेदना पूरी शककत के साथ जागृत हो गयी थी । इस संदर्भ में समपूण्ष हिनिू समाज ने बलिभभाई को कोटिशः बधाईयां भी दीं और मानवीय इतिहास में उनका नाम अमर हो गया ।
भेदभाव समापत
संविधान के अनुच्ेि-14 में यह उपबनध किया गया कि भारत राजय क्षेत्र में किसी वयककत को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण में राजय द्ारा वंचित नहीं किया जाएगा । अनुच्ेि-15 में और भी कड़ा उपबनध लाया गया , जिसके अनुसार , राजय , किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग , जनमसरान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा । अनुच्ेि-17 द्ारा-असपृशयता का अनत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है । असपृशयता से उसकी लनयवोगयता को लागू करना अपराध होगा , जो विधि के अनुसार ि्डनीय होगा ।
संविधान द्ारा अधिकार देने से कया होगा ?
संविधान की धाराओं के निर्माण करने मात्र से समाज के कमजोर वर्ग को अधिकार नहीं मिल जाते । समाज के अनिर कितनी नैतिकता उन अधिकारों को उनहें देने की है , यह बात प्मुख है । डा . आंबेडकर कहते हैं कि संवैधानिक
प्श्न सव्षप्रम अधिकार के प्श्न नहीं , वरन शककत के प्श्न होते हैं । किसी देश के वासतलवक संविधान का अकसततव उस देश में लवद्मान शककत की वासतलवक कसरलत में ही होता है । अतः राजनीतिक संविधानों का मूलय और सरालयतव केवल तभी होता है , जबकि वह शककत की उन शतषों को सही-सही ढंग से प्कट करते हैं जो किसी समाज में लवद्मान होती हैं ।
संविधान की इकाई ग्राम या ग्राम पंचायत नहीं वरन वयसकत
डा . आंबेडकर ने देहात के सरान पर वयककत को संविधान की इकाई बनाया । उनहोंने ऐसा कयों किया ? उनहोंने कहा कि संविधान प्तयेक वयककत को उसके अधिकार देगा और उसका कर्तवय भी निर्धारित करेगा । डा . आंबेडकर
कहते हैं कि जो लोग भारतीय ग्ाम वयवसरा की प्शंसा करते हैं , उसके लिए कुछ कारण उनके पास अवशय हैं I परनतु एक मुखय कारण चालस्ष मैटकाफ महाशय की यह प्शंसा है , जो उनहोंने ग्ाम-पंचायतों की खुले दिल से की है । चालस्ष मैटकाफ का कहना है कि ग्ाम-पंचायतें छोटे-छोटे गणराजय थे , अपने में ही समपूण्ष और बाह् समबनधों से सर्वथा अक्षु्ण थे । उसके मत के अनुसार अपने-अपने में ही छोटे-छोटे राजय बनी हुई ग्ाम पंचायतों के कारण ही भारतीय जनता को सववोपरि संरक्षण मिला है ।
40 tuojh 2025