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सवीकार करती है । सवतनत्रता , समानता और भ्रातृतव के आिशषों को एक त्रयी के अनतग्षत पृथक-पृथक विषय के रूप में नहीं लेना है । वह इस अर्थ में त्रयी की एकता का निर्माण करते हैं कि एक को दूसरे से पृथक करना लोकतनत्र के उद्ेशय को ही परासत करना है । सवतनत्रता को समानता से पृथक नहीं किया जा सकता , समानता को सवतनत्रता से पृथक नहीं किया जा सकता तथा समानता को भ्रातृतव से पृथक किया जा सकता है । समानता के बिना , सवतनत्रता बहुजन पर थोड़े से लोग की प्धानता पैदा करेगी । भ्रातृतव के बिना , सवतनत्रता और समानता वसतुओं की एक प्ाकृतिक धारा नहीं बन सकती ।
समान नागरिक कानदून के समर्थक
डा . आंबेडकर इस देश में सभी नागरिकों के लिये समान नागरिक कानून के समर्थक थे । उनका मानना था कि देश के सभी नागरिक एक ही कानून के अनिर लाया जाना चाहिए । उनकी इस बात का समर्थन करते हुये प्लसद्ध लेखक मुज्िर हुसैन ने अपने लेख में लिखा- ' संविधान के अनुच्ेि-44 में बाबा साहब डा . आंबेडकर ने सपषट रूप से कहा है कि समय
आने पर सरकार समसत नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता तैयार करेगी और उसे लागू करेगी ।
डा . आंबेडकर की धारण थी कि यद्लप देश के अनिर विविधताएं हैं , परनतु भाषा , प्ानत , समप्िाय आदि सभी को धयान में रखकर इस देश की एकता और अख्डता के लिये यह बहुत आवशयक है कि देश के सभी नागरिक किसी समान कानून की परिधि में आते हों । संविधान के सामने सभी समान है Iअतः सभी के दायितव और कर्तवय भी समान होने चाहिये । एक समान नयाय वयवसरा के अनतग्षत सभी को लाया जा सकता है । अपने-अपने समप्िाय के अनुरूप पूजा आदि करना भिन्न बात है । समान नागरिक कानून तथा विविध मतों को मानने वालों में विरोध नहीं होना चाहिये । अनेक मुकसिम तथा ईसाई राषट्रों ने भी अपने यहां आवशयकतानुसार धार्मिक कानूनों में परिवर्तन किए हैं । समान नागरिक कानून राषट्र की एकता के लिए आगे चलकर सहयोगी ही सिद्ध होगा ।
डा . आंबेडकर सारे भारत के लिये एक सांझी दीवानी संहिता ( Common Civil Code ) लागू करने के लिए प्यत्नशील थे । इसी समबनध में श्ी के . एम . मुंशी लिखते हैं कि ' राजकुमारी अमृत कौर , श्ीमती हंसा मेहता और डा . आंबेडकर द्ारा समर्थित प्सताव मसानी ने रखा था कि ऐसी वयवसरा की जाए जिससे भारत के सब नागरिकों पर लागू होने वाली एक सांझी नागरिक संहिता बनाई जा सके । लेकिन यह प्सताव पारित न हो सका । संविधान का 44 वां मार्गदर्शन सूत्र कहता है- ' भारत के समसत राजय क्षेत्र में नागरिकों के लिए राजय एक समान वयवहार संहिता प्ापत करने का प्यास करेगा ।'
डा . आंबेडकर समान वयवहार संहिता को निदेशक ततवों के बजाए संविधान में ही शामिल करना चाहते थे किनतु वह ऐसा नहीं कर पाये कयोंकि मुहममि इसमाइल , महबूब अली बेग , नसीरूद्ीन अहमद तथा हुसैन इमाम आदि सदसयों ने इस समान नागरिक कानून का विरोध किया तथा कांग्ेस मुसलमानों की इस बात का विरोध करने की हिममत नहीं जुटा सकी परनतु
डा . आंबेडकर अपनी बात पर डटे रहे ।
डा . आंबेडकर की इच्ा के अनुरूप सभी भारतीयों के लिये समान नागरिक कानून के विषय पर मुसलमानों का अकारण तथा अनावशयक मजहबी विरोध जारी था । यद्लप प्ो . मुजीब आदि अनेक मुकसिम विद्ानों ने इस कानून के लाए जाने का समर्थन किया । बाबा साहब कहते हैं- ' तुर्किसतान ने कसवटजरलैंड के आधार पर अपने कानून बनाए हैं । मिस्र के कानून फ्ांस के आधार पर बने हैं । ईरान में वयककतगत कानून में बुनियादी बदलाव किए गए हैं । सीरिया , लेबनान , ट्ूनीशिया में भी परिवर्तन हुए हैं । तुकषटकरण की नीति पर चलने वाले सवारथी तथा कमजोर मन वाले केनद्रीय नेतृतव के कारण डा . आंबेडकर इस देश को समान नागरिक कानून नहीं दे सके । उनकी यह धारणा थी कि देश के समसत नागरिक देश के संविधान के सामने समान रूप से उत्रदायी हैं । अपनी- अपनी पूजा पद्धतियों को छोड़कर सभी के ऊपर समान नागरिक कानून लागू करना देश की एकता एवं अख्डता के लिये आवशयक है । इस प्कार हम समझ सकते हैं कि किन दबावों के कारण इच्ा होते हुए डा . आंबेडकर समान नागरिक कानून को लागू नहीं करवा सके ।
राषट्र की एकता
संविधान ने नई समाज वयवसरा का निर्माण करते समय राषट्र की एकता और अख्डता का विशेष धयान रखा है । यह अवधारणा नयाय , सवतनत्रता , समानता तथा भ्रातृतव की अवधारणाओं के अनुरूप निर्मित की गई है । इसके अनुसार सभी वयककतयों , संगठनों और संसराओं के कार्य राषट्र की एकता के हित में होने आवशयक हैं । राषट्र एकता के आदर्श में दोनों ही बातें सकममलित हैं- उस भूमि के प्लत प्ेम जहां वह रहता है और उसमें रहने वाले अनय लोगों के प्लत मान-सममान की भावना । यहां आवशयकता इस बात की है कि समाज किसी भी समप्िाय में अनधलवशवास किए बिना , देशभककत , राषट्रवाद और समप्िाय निरपेक्षवाद की भावनाओं से ओत-प्ोत हो सामाजिक ,
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