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भारतीय गणतंत् की हीरक जयंती

एक दिन ऐसा अवशय आएगा , जब मुकसिम समाज भी यही विचार करेगा कि हमारे लिए सबसे अच्ा विकलप संगठित भारत ही है । डा . आंबेडकर का यह विशवास था कि यद्लप देश में अनेक जाति , मत , संप्िाय , भाषा आदि हैं , परनतु यह कोई भी बात राषट्र की एकातमता और अख्डता में बाधक नहीं बनेगी ।
इस बात को उनहोंने बार-बार अनेक प्संगों पर उ‌दघालटत किया कि अनुसूचित जातियों के सभी घटक समाज के अनय समूहों के साथ मिलकर राषट्र की एकातमता और सवतनत्रता की पूर्ण रूप से चिनता करें । ऐसा ही विचार उनहोंने 1949 के अंत में एक भाषण में वयकत किया । इस भाषण का शीर्षक था- ' कनट्री मसट बी पिेसड एबव कमयुलनटी ' ( Country Must Be Placed Above Community )।
संविधान प्ारूप-समिति के अधयक्
15 अगसत 1947 को सवतनत्रता प्ापत करने के पशचात भारत की संविधान सभा ने एक प्ारूप समिति का गठन किया गया I 29 अगसत 1947 को डा . आंबेडकर को उसका अधयक्ष बनाया गया । समिति के अनय सदसय थे सर्वश्ी बी . एल . लमत्र , एम . जी . आययंगार , ए . के . अययर , के . एम . मुंशी , एन . एम . राव , सैययि सादुलिा तथा सर बी . एन . राव । यह बड़े सौभागय का विषय था कि एक दलित , योगय वयककत , डा . आंबेडकर को संविधान जैसे महतवपूर्ण दसतावेज की निर्माण समिति का अधयक्ष बनाया गया । संविधान सभा ने भारत के संविधान को बनाने के कार्य के लिए उस वयककत को चुना जो उस जाति से आया था , जो सैकड़ों वर्ष के अपने सामाजिक अधिकारों से वंचित थी । डा . आंबेडकर को आननि और आशचय्ष दोनों हुए । डा . आंबेडकर अपनी संपूर्ण लवद्त्ा तथा क्षमताओं के साथ भारत के नए संविधान के निर्माण कार्य में जुट गए I अपने सवासथय की चिनता किए बिना वह दिन-रात कार्य में लगे रहे । आखिर उनहें संविधान का निर्माता कयों कहा गया ? इसके लिये टी . टी . कृषणामाचारी ने 5 नवमबर 1948 को संविधान
सभा में कहा- ' सदन इस बात से परिचित है कि आपके द्ारा मनोनीत सात सदसयों में से एक ने तयागपत्र दे दिया और उनके सरान पर दूसरा वयककत रखा गया । एक की मृतयु हो गई और उनका सरान भरा नहीं गया । एक सदसय अमेरिका चले गए तथा एक सदसय राजय के मामलों में वयसत हो गए I एक या दो सदसय दिलिी से दूर थे तथा उनका सवासथय भी ठीक नहीं था । अतः अनत में संविधान का प्ारूप तैयार करने का सारा भार डा . आंबेडकर के ऊपर ही आ गिरा । लनकशचत रूप से हम सब उनके प्लत बड़े आभारी हैं कि डलॉ . साहब ने इस कार्य को जिस ढंग से समपन्न किया वह निससंिेह प्शंसनीय है ।
26 नवमबर , 1949 को संविधान सभा के समापन भाषण में सभा के अधयक्ष डा . राजेनद्र प्साद ने कहा- ' अधयक्ष पद पर बैठकर रोजाना की कार्यवाही को देखते हुए मैंने यह अनुभव किया है कि प्ारूप समिति के सदसयों में विशेषकर अधयक्ष डा . आंबेडकर ने अपने खराब सवासथय के बावजूद भी जिस उतसाह तथा भककत के साथ काम किया उसे और कोई नहीं कर सकता था । जब हमने उनहें प्ारूप समिति में रखा और उसका अधयक्ष बनाया , तब इस निर्णय से अच्ा कोई और निर्णय नहीं हो सकता था । उनहोंने अपने चुनाव को नयायोचित ही नहीं ठहराया बकलक उस काम में चार चांद भी लगा दिये । इस प्कार सवतंत्र भारत के संविधान शिलपी डा . आंबेडकर ने अपनी बुद्धि , प्लतभा और योगयता की हर कीमत चुकाकर देश को एक नया संविधान भेंट कर दिया । संसार में ऐसी मानसिक ऊंचाई और शाशवत प्लतभा के धनी कर्मठ महापुरूष कभी-कभी ही अवतरित होते हैं ।
विदेशी संविधानों की यथा नकल ठीक नहीं
जो लोग लरिटिश संसरानों को अपने देश में जयों का तयों ही अंगीकार करने की कोशिश कर रहे हैं , उनको सावधान करते हुए डा . आंबेडकर ने कहा कि विदेशी संविधान लेते समय हमें
प्लतभा और सिद्धानत के सरान पर सवभाव और चरित्र का अधययन करना हो होगा । यह एक ऐसा सच है , जिसे याद करना उन लोगों के लिए लाभकारी होगा , जिनहोंने पराए देशों में लरिटिश संसरानों को शत-प्लतशत जयों का तयों अंगीकार करने की सिफारिश की है । ऐसा प्योग खतरे से खाली नहीं हो सकता । संविधानों की नकल करना तो आसान है परनतु सवभाव की नहीं और यदि ऐसा हो जाए कि उधार लिए हुए संविधान और सवभाव की संगति न बैठे तो इस असंगति के भयंकर दुषपरिणाम निकल सकते हैं ।
संविधान निर्माण के समय संविधान सभा द्ारा यह सवीकार किया गया था कि अपना नवीन संविधान कोई तटसर दसतावेज नहीं है , वरन यह समाज वयवसरा के रूपानतरण हेतु एक सक्रिय ; यहां तक कि क्राकनतकारी घोषणा- पत्र है ।
सामाजिक लोकतनत् का लक्य
संविधान मूलतः सामाजिक लोकतनत्र के लक्य को लेकर चलता है जिसका अर्थ , जैसा कि डा . आंबेडकर ने विशिेलरत किया है- ' यह एक जीवन पद्धति है , जो सवतनत्रता , समानता और भ्रातृतव को जीवन के आदर्श के रूप में
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