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संविधान वनममाण

और डा . आंबेडकर

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भीम राव आंबेडकर ने 1930 में गोलमेज सममेिन लनिन में जो बात कही थी , वही भारत के संविधान की आधारशिला बनी । उनहोंने लरिटिश सरकार से कहा था कि संभवतः यह भलीभांति अनुभव नहीं किया गया है कि देश के वर्तमान वातावरण में कोई भी संविधान जो अधिसंखय लोगों को सवीकार नहीं है , कारगर सिद्ध नहीं होगा । यदि आप चाहते हैं कि नया संविधान प्भावकारी हो , तो उसका मूलाधार जनता की सहमति हो , न कि तर्क की आककसमकता ।' लरिटिश सरकार ने इस बात को सवीकार किया और भारतीय जनता को यह अनुमति दी गई कि वह अपना संविधान अपने प्लतलनलधयों से निर्माण कराए और फिर उसी प्लक्रया में संविधान सभा का निर्माण हुआ ।
संविधान निर्माण की प्वरिया
कैबिनेट मिशन के सुझाव पर देशभर में संविधान सभा के लिए चुनाव , जुलाई 1946 में हुए और 296 सदसय चुनकर आए I इनका चुनाव प्ानतों की विधान सभाओं ने एकल संक्रमणीय ( Single Transferable ) मतदान के द्ारा किया । सामानयतया इन चुने हुए लोगों को 4 भागों में बांटा जा सकता था ।
कांग्रेस के सदसय
सवतनत्र सदसय , जिनका सामाजिक जीवन में महतवपूर्ण सरान था । उनकों प्ानतों की विधान सभाओं में कांग्ेसी सदसयों ने चुना था ।
सवतनत्र सदसय , जिनको कांग्ेस तथा मुसलमानों के अतिरिकत सदसयों ने चुनकर
भेजा ।
वह सदसय , जिनहें प्ानतीय विधान सभाओं के मुकसिम लीगी सदसयों ने चुनकर भेजा था । भारत के विभाजन के पशचात् उनमें से बहुत से सदसय पाकिसतान चले गए I जो यहां रह गए , वह संविधान सभा के सदसय बने रहे ।
दिसंबर 1946 को संविधान-सभा का अधिवेशन डा . सच्चिदाननि सिनहा की अधयक्षता में प्ारमभ हुआ और 11 दिसमबर को डा . राजेनद्र प्साद को संविधान सभा का सर्वसममलत से सरायी अधयक्ष चुना गया । डा . आंबेडकर बंगाल की एक सीट से चुनकर आए थे I परनतु विभाजन के पशचात वह क्षेत्र पूवथी पाकिसतान अर्थात बांगिािेश में चला गया और इस प्कार डा . अमबेडकर की संविधान सभा की सदसयता ही समापत हो गई । उसी समय डा . एम . आर . जयकर
ने बमबई की अपनी सीट से तयाग-पत्र दे दिया और वहां से डा . आंबेडकर को चुनकर भेजने की योजना बनाई गई । अनततोगतवा कांग्ेस के समर्थन से डा . आंबेडकर पुनः संविधान सभा के सदसय चुने गए I यह कार्य सरदार पटेल , गांधी जी तथा नेहरू आदि की सहमति से ही समभव हो सका था ।
17 दिसमबर , 1946 , को डलॉ . अमबेडकर का संविधान सभा ( Constituent Assembly ) में भाषण हुआ । यह एक ऐतिहासिक भाषण था । यह ठीक है कि उन दिनों यह लनकशचत लग रहा था कि देश का बंटवारा होकर पाकिसतान बनेगा , फिर भी डा . आंबेडकर ने देश की सांसकृलतक एकता पर ही जोर दिया । उनहोंने यह भी सपषट कर दिया कि दुनियां की कोई भी सत्ा इस राषट्र की एकातमता को खण्डत नहीं कर सकती और
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