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महाकुंभ

में प्लवषट होने तथा सूर्य और चनद्र के मकर राशि में आने पर अमावसया के दिन प्यागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुमभ पर्व का आयोजन होता है । बृहसपलत एवं सूर्य के सिंह राशि में प्लवषट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुमभ पर्व का आयोजन होता है । बृहसपलत के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्लवषट होने पर उज्ैन में शिप्ा तट पर कुमभ पर्व का आयोजन होता है ।
धार्मिकता एवं ग्ह-दशा के साथ-साथ कुमभ पर्व को तत्वमीमांसा की कसौटी पर भी कसा जा सकता है , जिससे कुमभ की उपयोगिता सिद्ध होती है । कुमभ पर्व का विशिेरण करने पर ज्ञात होता है कि यह पर्व प्कृति एवं जीव तत्व में सामंजसय सरालपत कर उनमें जीवनदायी शककतयों को समाविषट करता है । प्कृति ही जीवन एवं मृतयु का आधार है , ऐसे में प्कृति से सामंजसय अति-आवशयक हो जाता है । कहा भी गया है " यद् लप्डे तद् रिह्मा्डे " अर्थात् जो शरीर में है , वही रिह्मा्ड में है , इस लिए रिह्मा्ड की शककतयों के साथ लप्ड ( शरीर ) कैसे सामंजसय सरालपत करे , उसे जीवनदायी शककतयां कैसे मिले ? इसी रहसय का पर्व है कुमभ । विभिन्न मतों-अभिमतों-मतानतरों के वयावहारिक मंथन का पर्व है- ' कुमभ ', और इस मंथन से निकलने वाला ज्ञान-अमृत ही कुमभ- पर्व का प्साद है ।
महाकुंभ मेला , एक ऐसा पवित्र समागम है जो हर बारह वरषों में होता है । यह लाखों लोगों का एक जनसमूह ही नहीं है । यह एक आधयाकतमक यात्रा है , जो मानव अकसततव के मूल में उतरती है । प्ाचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में उकलिलखत , महाकुंभ मेला एक गहन आंतरिक अर्थ रखता है , जो आतमबोध , शुद्धीकरण और आधयाकतमक प्बोधन की शाशवत खोज की प्तीकातमक यात्रा के रूप में अभिवयकत होता है ।
कुमभ मेला अनुभव के केंद्र में पवित्र नदियों , विशेष रूप से गंगा , यमुना और सरसवती में एक पवित्र डुबकी लेने का अनुषिालनक कार्य है । यह कार्य एक परमपरा से अधिक है-यह एक
आधयाकतमक शुद्धीकरण है , शरीर और आतमा का प्तीकातमक निर्मलीकरण है । तीर्थयात्री मानते हैं कि इन पवित्र जल में स्ान से न केवल शारीरिक अशुद्धियां दूर होती हैं बकलक मन को भी शुद्ध करता है और ईशवर के साथ आधयाकतमक संबंध को नवीनीकृत करता है ।
कुमभ मेला एक अलद्तीय महापर्व है , जहां विभिन्न संसकृलतयां , भाषाओं और परमपराओं के धागे सहजता से आपस में मिलते हैं । यह विविधता में एकता के सिद्धांत का प्माण है । तीर्थयात्री , अपनी पृषिभूमि की परवाह किए
बिना , आधयाकतमकता के इस उतसव में एक साथ आते हैं , जो समाज की सीमाओं से परे भाईचारे की भावना को बढ़ावा देती हैं । इस विविधतापूर्ण संसार में , कुमभ मेला इस विचार का जीवंत प्तीक है कि हमारी सांसकृलतक भिन्नताओं से युकत एवं आधयाकतमकता की खोज में लगे हुए मनुषय को एक सूत्र में पिरोता है । यह आतमाओं का संगम एवं एक ऐसा जमावड़ा है , जहां लाखों श्द्धािुओं की सामूहिक ऊर्जा सार्वभौमिक सतय और प्बोधन की खोज में संिनि होती है ।
वैशवीकरण के युग में , महाकुंभ मेला एक
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