Jan 2025_DA | Page 27

सभी मनुषयों के मधय वसुधैव कुटुमबकम के रूप में अच्ा समबनध बनाए रखने के साथ आदर्श विचारों एवं गूढ़ ज्ञान का आदान प्िान कुमभ का मूल ततव और संदेश है । कुमभ भारत और विशव के जन सामानय को आदिकाल से आधयाकतमक रूप से एक सूत्र में पिरोता रहा है और भविषय में भी कुमभ का यह सवरुप लवद्मान रहेगा । कुमभ का शाकबिक अर्थ कलश है । यहां ‘ कलश ’ का समबनध अमृत कलश से है । जब देवासुर संग्ाम के बाद दोनों पक्ष समुद्र मंथन को राजी हुए थे । मथना था समुद्र तो मथनी और नेति भी उसी हिसाब की चाहिए थी । ऐसे में मंदराचल पर्वत मथनी बना और नागवासुकि उसकी नेति । मंथन से चौदह रत्नों की प्ाकपत
हुई जिनहें परसपर बांट लिया गया , परनतु जब धनवनतरि ने अमृत कलश देवताओं को दे दिया तो फिर युद्ध की कसरलत उतपन्न हो गई । तब भगवान विषणु ने सवयं मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत-पान कराने की बात कही और अमृत कलश का दायितव इंद्र-पुत्र जयंत को सौपा । अमृत-कलश को प्ापत कर जब जयंत दानवों से अमृत की रक्षा हेतु भाग रहे थे तभी इसी क्रम में अमृत की बूंदे पृथवी पर चार सरानों पर गिरी- हरिद्ार , नासिक , उज्ैन और प्यागराज । चूंकि विषणु की आज्ञा से सूर्य , चनद्र , शनि एवं बृहसपलत भी अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और विभिन्न राशियों ( सिंह , कुमभ एवं मेष ) में विचरण के कारण यह सभी कुमभ
पर्व के द्ोतक बन गए । इस प्कार ग्हों एवं राशियों की सहभागिता के कारण कुमभ पर्व जयोलतर का पर्व भी बन गया ।
जयंत को अमृत कलश को सवग्ष ले जाने में बारह दिन का समय लगा था । माना जाता है कि देवताओं का एक दिन पृथवी के एक वर्ष के बराबर होता है । यही कारण है कि कालानतर में वर्णित सरानों पर ही ग्ह-राशियों के विशेष संयोग पर 12 वरषों में कुमभ मेले का आयोजन होने लगा । जयोलतर गणना के क्रम में कुमभ का आयोजन चार प्कार से माना गया है । बृहसपलत के कुमभ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्लवषट होने पर हरिद्ार में गंगा-तट पर कुमभ पर्व का आयोजन होता है । बृहसपलत के मेष राशि चक्र
tuojh 2025 27