सभी मनुषयों के मधय वसुधैव कुटुमबकम के रूप में अच्ा समबनध बनाए रखने के साथ आदर्श विचारों एवं गूढ़ ज्ञान का आदान प्िान कुमभ का मूल ततव और संदेश है । कुमभ भारत और विशव के जन सामानय को आदिकाल से आधयाकतमक रूप से एक सूत्र में पिरोता रहा है और भविषय में भी कुमभ का यह सवरुप लवद्मान रहेगा । कुमभ का शाकबिक अर्थ कलश है । यहां ‘ कलश ’ का समबनध अमृत कलश से है । जब देवासुर संग्ाम के बाद दोनों पक्ष समुद्र मंथन को राजी हुए थे । मथना था समुद्र तो मथनी और नेति भी उसी हिसाब की चाहिए थी । ऐसे में मंदराचल पर्वत मथनी बना और नागवासुकि उसकी नेति । मंथन से चौदह रत्नों की प्ाकपत
हुई जिनहें परसपर बांट लिया गया , परनतु जब धनवनतरि ने अमृत कलश देवताओं को दे दिया तो फिर युद्ध की कसरलत उतपन्न हो गई । तब भगवान विषणु ने सवयं मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत-पान कराने की बात कही और अमृत कलश का दायितव इंद्र-पुत्र जयंत को सौपा । अमृत-कलश को प्ापत कर जब जयंत दानवों से अमृत की रक्षा हेतु भाग रहे थे तभी इसी क्रम में अमृत की बूंदे पृथवी पर चार सरानों पर गिरी- हरिद्ार , नासिक , उज्ैन और प्यागराज । चूंकि विषणु की आज्ञा से सूर्य , चनद्र , शनि एवं बृहसपलत भी अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और विभिन्न राशियों ( सिंह , कुमभ एवं मेष ) में विचरण के कारण यह सभी कुमभ
पर्व के द्ोतक बन गए । इस प्कार ग्हों एवं राशियों की सहभागिता के कारण कुमभ पर्व जयोलतर का पर्व भी बन गया ।
जयंत को अमृत कलश को सवग्ष ले जाने में बारह दिन का समय लगा था । माना जाता है कि देवताओं का एक दिन पृथवी के एक वर्ष के बराबर होता है । यही कारण है कि कालानतर में वर्णित सरानों पर ही ग्ह-राशियों के विशेष संयोग पर 12 वरषों में कुमभ मेले का आयोजन होने लगा । जयोलतर गणना के क्रम में कुमभ का आयोजन चार प्कार से माना गया है । बृहसपलत के कुमभ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्लवषट होने पर हरिद्ार में गंगा-तट पर कुमभ पर्व का आयोजन होता है । बृहसपलत के मेष राशि चक्र
tuojh 2025 27