महाकुंभ
जातिभेद के स्ान पर हिन्दू दर्शन का
साक्षात्ार
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सरा , विशवास , सौहार्द एवं संसकृलतयों के मिलन का पर्व है “ कुमभ ”। ज्ञान , चेतना और उसका परसपर मंथन कुमभ मेले का वह आयाम है जो आदि काल से ही हिनिू धर्माविकमबयों की जागृत चेतना को बिना किसी आमनत्रण के खींच कर ले आता है । यहां जाति-पांति का कोई प्श्न नहीं होता है । दलित , वंचित , आदिवासी , अगड़ा-पिछड़े जैसे प्श्न नहीं होते हैं । महाकुंभ हिनिू धर्म-संसकृलत की उस चेतना को रेखांकित करता है , जहां सब एक हैं , जहां सब हिनिू हैं , जहां सिर्फ आसरा है । कुमभ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृकषटकोण से नहीं शुरू हुआ था , अपितु इसका इतिहास समय के प्वाह से साथ
सवयं ही बनता चला गया । वैसे भी धार्मिक परमपराएं हमेशा आसरा एवं विशवास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर । यह कहा जा सकता है कि कुमभ जैसा विशालतम् मेला संसकृलतयों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है । अबकी बार महाकुंभ 13 जनवरी से प्ारमभ होकर 26 फरवरी तक चलेगा ।
किसी उतसव के आयोजन में वयापक जनसमपक्क अभियान , प्ोन्नयन गतिविधियां और अतिथियों को आमंत्रण प्ेलरत किए जाने की आवशयकता होती है , जबकि कुमभ विशव में एक ऐसा पर्व है , जहां कोई आमंत्रण अपेक्षित नहीं होता है तथापि करोड़ों तीर्थयात्री इस पवित्र पर्व को मनाने के लिए सवयं एकत्र होते हैं ।
प्ारलमक स्ान कर्म के अतिरिकत पर्व का सामाजिक पक्ष विभिन्न यज्ञों का अनुषिान , वेद मंत्रों का उच्चारण , प्वचन , नृतय , भककत भाव के गीतों , आधयाकतमक कथानकों पर आधारित कार्यक्रमों , प्ार्थनाओं , धार्मिक सभाओं के चारों ओर घूमता हैं , जहां प्लसद्ध संतों एवं साधुओं के द्ारा विभिन्न सिद्धांतों पर वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श करते हुए मानक सवरूप प्िान किया जाता है । पर्व पर गरीबों एवं वंचितों को अन्न एवं वसत्र के दान का भी महतव है । विभिन्न पवषों पर तीर्थयात्रियों एवं श्द्धािुओं के द्ारा संतों को आधयाकतमक भाव के साथ गाय एवं सवण्ष दान भी किया जाता है ।
मानव मात्र का कलयाण , समपूण्ष विशव में
26 tuojh 2025