झूठी गवाही देकर मुझे फंसाया तो मुझे दु : ख होता है , मुझे भी यह काम किसी और के साथ नहीं करना चाहिए । जैसा मैं , वैसा अनय का यही अर्थ होता है । इसी के साथ बुद्ध की समाज की अवधारणा जुड़ी है । वही इसे पूजय बाबा साहब डा . आंबेडकर कहते है कि समाज का निर्माण समता एवं बंधुतव भाव के निर्माण के आधार पर ही होता है । समाज को और परिभाषित करते हुए गिनसवर्ग कहते हैं कि समाज केवल कुछ
वयककतयों का किसी बाहरी आपलत् से भयभीत होकर साथ होना मात्र नहीं है । बाढ से पीडित होकर गांव का गांव खड़ा होता है तो वह भी समाज नहीं है । समाज के लिए जहां वयककत एकत्रित होते हैं , वहां उनमें पारसपरिक समबनध अनिवार्य रूप से होने चाहिए । इसी समाज को अगर समझा जाए तो समाज संसकृत के दो शबिों सम् और अज से मिलकर बना है । सम् का अर्थ इकट्ा एवं अज का अर्थ एक साथ रहना ।
इस प्कार एक साथ रहने वाले समूह को समाज कहते है अर्थात समाज बनधु भाव पर एकत्रित एक आदर्श कसरलत है ।
इन सभी जीवन के उच्च आिशषों के बावजूद भारत में तमाम प्कार की सामाजिक कुरीतियों का प्वेश हिनिू समाज के भीतर हुआ । भारत में जिस जाति को राषट्रीयता के साथ जोड़ कर देखा जाता रहा था , उसे कासट के साथ जोड़ दिया गया । अंग्ेजों ने वयवसायों को जातिगत मान कर उनका सूचीकरण किया अनयरा कोई किसी भी काम को कर सकता था । ऋगवेि के नवम मंडल 112 सूकत में वर्णन आता है कि मैं सतोत ( कवि ) हूं , मेरा बेटा वैद् है , मेरी बेटी कंडों को इकट्ा कर जौ भुजने का काम करती है । अब अंग्ेजों की माने तो एक ही परिवार में तीन जाति हमे दिख जाती है । लेकिन वासतव में कया ऐसा था ? नारद ऋषि तो दासी के पुत्र थे । इलेशू वैदिक ऋषि हैं , जिनके बारे में तो डा . आंबेडकर भी लिखते हैं । सुदास जैसा राजा , जिसे शुद्र माना जाता है जिसका राजयालभरेक वशिषि के द्ारा संपन्न कराया जाता है । चंद्रगुपत , हर्षवर्धन आदि सभी शुद्र राजा थे कई इतिहासकारों ने शुद्र राजाओ की भी सूची बनाई है । इस सबके बावजूद हमारी समाज रचना को मुकसिम आक्रांताओं से लेकर अंग्ेजी शासकों ने सभी ने भ्रषट करने का भरसक प्यास किया । लेकिन इस हिनिू समाज के भीतर इन कुरीतियों के विरुद्ध हिनिू समाज में लोग खड़े भी हुए । समपूण्ष भारत में उत्र में पूर्व हो या पकशचम हो दक्षिण हो अथवा पठारी भूमि हो , सभी सरानों पर संतों महंतों ने भारत के मूल “ दैशिक ” चिंतन को भारत के जन मानस में पहुंचाने का काम किया । उत्र भारत में रामानंद जी , गुरु नानक जी , रविदास , कबीर , घासीदास , वही उत्र पूर्व में शंकर देव , सरला दास , मधय भारत में नामदेव , एकनाथ तो दक्षिण में त्रिवलिुवर आदि ने कशमीर की बिथीिी कंदराओं में भी अभिनव गुपत भारत के ज्ञान परंपरा को बता रहे थे । आज फिर पुनः हम सबको जाति छोड़ देश जोड़ के विचार को आतमसात करना होगा । �
tuojh 2025 25