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चिंतन

की मनु नामक पत्नी से रिाह्मण , क्षत्रिय , वैशय और शूद्रों का जनम हुआ है । इसलिए सभी का गोत्र कशयप ऋषि से जुड़ा है । इसी प्कार से ऋगवेि के 10वें मंडल के 90वें सूकत के 11,12,13,14,15 सूकत में विराट पुरुष के शरीर से वणषों की उतपलत की बात की गई है । इसी में विराट पुरुष के चरणों से पृथवी और शूद्र दोनों का जनम हुआ है । अब इसमें चरण पूजनीय है और शुद्र पूजनीय कैसे नहीं है ? इसका अर्थ है कि समाज की रचना समयकता के मूल विचार पर टिका है जिसे हम सामाजिक समरसता कहते है ।
वैदिक ऋषि “ समानी व आककूलत : समाना ह्रदयानि व :। समानमसतु वो मनो यथा व : सुसहासति ” की बात करता है । इसका अर्थ है कि हमारा उद्ेशय एक हो , हमारी भावना सुसंगत हो , हमारे विचार एकत्रित हो , जैसे इस विशव के , रिह्मांड के विभिन्न पहलुओं और क्रियाकलापों में तारतमयता और एकता है इसी प्कार । वही दूसरे ही पल वही ऋषि कहता है “ संगच्धवं संवदधवं सं वो मनांसि जानताम् । देवा भागं यथा पूववे सजानाना उपासते ”। इसका अर्थ कितना श्ेषि है । हम सब सदैव एक साथ चले , हम सब सदैव एक साथ बोले , हम सभी का मन एक जैसा हो । हमारे विचार समान हों , हम मिलकर रहें । हम सभी ज्ञानी बनें , विद्ान बनें । जिस प्कार हमारे पूर्वज अपनी धन-संपदा का आपसी सहमति ओर परसपर समानता के आधार पर वितरण किया करते थे , उसी तरह हम अपने पूर्वजों के समान आचरण करें ।
यह भारत का विचार है , यह सनातन हिनिू का विचार है । इसी श्ृंखला में हम देखे तो गुरु नानक देव महाराज कहते है “ जानहू जोती ना पुछहूं जाति ”। इसका अर्थ है कि हम हमारे और अनयों के भीतर उस जयोलत अर्थात आतम को देखे , ना की उसकी जाति को । इसी बात को संत रविदास ने भी कहा है कि रैदास इक ही बूंद सो , सब ही भयों विसतार । मुरखि है तो करत है बरन अवरन विचार ।। इसका अर्थ है कि एक ही बूंद से सारे जगत का विसतार हुआ है , वह मूर्ख ही होता है जो किसी वर्ण और
अवर्ण के विचार की चर्चा करता है । इसी सारे विचार को हम अपने प्ाचीनतम ज्ञान , साहितय में पाते है । हमारे समाज की संकलपना सबको मिलने की है , ना की किसी को भिन्न करने की । हिनिू नानतव में विशवास करता है जिसका अर्थ सभी को उनकी विशेषताओं के साथ सवीकार करना ।
इसलिए जब समाज को लेकर प्भु राम से प्श्न होता तो वह कहते है कि समाज का निर्माण
वयककत-वयककत के भीतर परसपर “ एक होने ” के भाव एवं समता , बंधुतव के विचार पर ही होता है । इसी प्कार से महातमा बुद्ध कहते है कि जिस कारण मुझे दु : ख होता है , पीडा पहुंचती है , उसी कारण दूसरों को भी दु : ख होता है , किसी ने मुझे गाली दी तो मुझे दु : ख होता है । इसीलिए मुझे भी किसी को गाली नहीं देनी चाहिए । किसी ने मेरे घर पर चोरी की तो मुझे दु : ख होता है , तो मुझे भी कहीं चोरी नहीं करनी चाहिए । किसी ने
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