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भारत के समाज का आठ भागो में वगथीकरण किया गया लेकिन उसका आधार सामाजिक ना होकर वयावसायिक था । हां , उसने चा्डाि वर्ग के बारे में जरूर लिखा है , लेकिन यह चा्डाि भी भारत के समाज में पूजयनीय नहीं रहा कया ?। धर्मानि कौशांबी लिखते है की मातंग ऋषि चा्डाि थे , जिसकी पूजा सभी करते थे । यही मातंग ऋषि शबरी के गुरु भी थे । मातंग के द्ारा ऋगवेि का काफ़ी सारा हिससा गायन किया गया । वैदिक परमपरा के प्रम ग्ंर के लेखक ऋषि महीदास थे , जिनहें इस वयवसरा में शूद्र माना जाता है । वीर सावरकर ने भी जातीय श्ेषिता के विचार को नकारा था । शवपाक चा्डाि की संतान मातंग है , उनसे परासर है , उनसे वेद वयास और वेद वयास से पांडव और कौरव वंश है । अब बताए कौन उच्च और कौन नीच है ।
डा . भीम राव आंबेडकर ने “ हू वर द शूद्रा ” पुसतक में बताया है कि शुद्र सूर्यवंश के क्षत्रिय थे । इसी पुसतक में वह कहते हैं कि सभी भिन्न-भिन्न जातियों के मधय गोत्र एक ही पाए जाते हैं । डा . आंबेडकर लिखते हैं कि सामाजिक रूप से जातियां भिन्न थी , परनतु वंश की दृकषट से सभी एक ही है । महर्षि वालमीलक कृत रामायण के अर्य कांड चौदहवें सर्ग के 9,10,11,29 के शिोक को पढ़ने पर ज्ञात होता है कि हम सभी कशयप ऋषि की संतान हैं । कशयप ऋषि
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