चिंतन
जात-पात की करो विदाई हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई
डा . प्िेश कुमार fi
छले कुछ दिनों से भारत की राजनीति में जाति पर एक विमर्श बहुत तेजी से चल रहा है । इस विमर्श में दो पक्ष बड़ी तेजी से उभर कर आए है । एक पक्ष “ संगठित हिंदू-सशकत भारत ” के विचार पर केंद्रित धयेय को लिए समाज में जनजागरण कर रहा है । वही दूसरा जाति को केवल राजनीतिक लाभ के लिए प्योग कर सरकार और सत्ा प्ाकपत में समाज को बांटने में लगा है । इस बात को बिलकुि भी नकार नहीं सकते कि भारत में जाति नहीं है । विशेषकर हिनिू समाज के भीतर जाति है । इस जाति के कारण समाज में एक वर्ग के साथ उतपीड़न , उपेक्षा एवं असपृशयता भी रही है और वर्तमान में भी इसका अकसततव कुछ हद तक है । लेकिन भारत की विराट सनातन हिनिू संसकृलत में कहीं भी जाति और इस आधार पर होने वाले उतपीड़न का वर्णन नहीं मिलता है । इसी का परिणाम है कि असपृशयता का वर्णन हमें विदेशी विद्ानों के लेखों , यात्रा वृत्ांत आदि में नहीं मिलते है । अगर यह सब होता तो मुकसिम आक्रांताओं के आने से पूर्व इसका वर्णन विदेशी लेखकों के द्ारा लनकशचत ही किया गया होता , लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
ग्ीक इतिहासकार मेगसरनीज जैसे यात्री द्ारा
22 tuojh 2025