वैकशवक तीर्थयात्रा में विकसित हो गया है । दुनिया भर के तीर्थयात्री और आधयाकतमक साधक भौगोलिक और सांसकृलतक सीमाओं को पार कर पवित्र सरिों की यात्रा करते हैं । महाकुंभ एक ऐसा केंद्र बन जाता है , जहां विविध दृकषटकोण एकत्र होकर विचारों के आदान-प्िान और वैकशवक आधयाकतमक समरसता को बढ़ावा देने वाला वातावरण बनाते हैं । महाकुंभ मेले में वैकशवक भागीदारी इसके सार्वभौमिक आकर्षण को रेखांकित करती है । यह इस मानयता का प्तीक है कि पृथक मागषों के अनुयायी होने के
बावजूद लोगों में एक सामूहिक अभिलाषा होती है , जो प्तयेक वयककत की आधयाकतमक यात्रा को अग्सर करती है । इस अवसर पर विभिन्न राषट्रों के आगंतुकों का संगम इसे आधयाकतमकता के वैकशवक उतसव में बदल देता है ।
परमपरा-कुमभ मेला के मूल को 8वी शताबिी के महान दार्शनिक शंकर से जोड़ती है , जिनहोंने वाद विवाद एवं विवेचना हेतु विद्ान संनयासीगण की नियमित सभा संकसरत की । प्यागराज में कुमभ मेला को ज्ञान एवं प्काश के स्रोत के रूप में सभी कुमभ पववो में वयापक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है । सूर्य जो ज्ञान का प्तीक है , इस तयोहार में उदित होता है । शासत्रीय रूप से यह माना जाता है कि रिह्मा जी ने पवित्रतम नदी गंगा , यमुना और अदृशय सरसवती के संगम पर दशाशवमेघ घाट पर अशवमेघ यज्ञ किया था और सृकषट का सृजन किया था ।
कुमभ में साधु-संतों के अखाड़े सामाजिक- वयवसरा , एकता , संसकृलत तथा नैतिकता का प्तीक है । समाज में आधयाकतमक मूलयों की सरापना करना ही अखाड़ों का मुखय उद्ेशय है । अखाड़ा मठों की सबसे बड़ी जिममेिारी सामाजिक जीवन में नैतिक मूलयों की सरापना करना है , इसीलिए धर्म गुरुओं के चयन के समय यह धयान रखा जाता है कि उनका जीवन सदाचार , संयम , परोपकार , कर्मठता , दूरदर्शिता तथा धर्ममय हो । भारतीय संसकृलत एवं एकता इन अखाड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका है । अलग- अलग संगठनों में विभकत होते हुए भी अखाडे़ एकता के प्तीक हैं । नागा संनयासी अखाड़ा मठों का एक विशिषट प्कार है । प्तयेक नागा संनयासी किसी न किसी अखाड़े से समबकनधत रहते हैं । यह संनयासी जहां एक ओर शासत्र पारंगत होते हैं , वहीं दूसरी ओर शसत्र चलाने का भी इनहें अनुभव होता है ।
वर्तमान में अखाड़ों को उनके इषट-देव के आधार पर तीन श्ेलणयों में विभाजित किया जा सकता है , जिसमेंशैव अखाडा , इस श्ेणी के इषट भगवान शिव हैं । यह शिव के विभिन्न सवरूपों की आराधना अपनी-अपनी मानयताओं के आधार पर करते हैं । वैषणव अखाडा , इस
श्ेणी के इषट भगवान विषणु हैं । यह विषणु के विभिन्न सवरूपों की आराधना अपनी-अपनी मानयताओं के आधार पर करते हैं । उदासीन अखाड़ा , सिकख समप्िाय के आदि गुरु श्ी नानकदेव के पुत्र श्ी चंद्रदेव जी को उदासीन मत का प्वर्तक माना जाता है । इस पनर के अनुयाई मुखयतः प्णव अथवा ‘ ॐ ’ की उपासना करते हैं ।
अखाड़ों की वयवसरा एवं संचालन हेतु पांच लोगों की एक समिति होती है जो रिह्मा , विषणु , शिव , गणेश व शककत का प्लतलनलधतव करती है । अखाड़ों में संखया के हिसाब से सबसे बड़ा जूना अखाड़ा है इसके बाद निरञ्जनी और ततपशचात् महानिर्वाणी अखाड़ा है । उनके अधयक्ष श्ी महंत तथा अखाड़ों के प्मुख आचार्य महाम्डेिेशवर के रुप में जाने जाते हैं । महाम्डिेशवर ही अखाड़े में आने वाले साधुओं को गुरु मनत्र भी देते हैं । पेशवाई या शाही स्ान के समय में निकलने वाले जुलूस में आचार्य , महाम्डिेशवर और श्ीमहंत रथों पर आरूढ़ होते हैं , उनके सचिव हाथी पर , घुड़सवार नागा अपने घोड़ों पर तथा अनय साधु पैदल आगे रहते हैं । शाही ठाट-बाट के साथ अपनी कला प्िश्षन करते हुए साधु-सनत अपने लाव-लशकर के साथ अपने-अपने गनतवय को पहुंचते हैं ।
अखाड़ों में आपसी सामंजसय बनाने एवं आंतरिक विवादों को सुलझाने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया है । अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् ही आपस में परामर्श कर पेशवाई के जुलूस और शाही स्ान के लिए तिथियों और समय का निर्धारण मेला आयोजन समिति , आयुकत , जिलाधिकारी , मेलाधिकारी के साथ मिलकर करता है । इन अखाड़ों को बहुत ही श्द्धा-भाव से देखा जाता है । सनातन धर्म की पताका हाथ में लिए यह अखाड़े धर्म का आलोक चहुंओर फैला रहे हैं । इनके प्लत आम जन-मानस में श्द्धा का भाव शाही स्ान के अवसर पर देखा जा सकता है , जब वह जुलूस मार्ग के दोनों ओर इनके दर्शनार्थ एकत्र होते हैं तथा अतयंत श्द्धा से इनकी चरण- रज लेने का प्यास करते हैं । �
tuojh 2025 29