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इन संगठनों के कथित नेताओं का लक्य अपनी जाति का समपूण्ष विकास और कलयाण कभी नहीं रहा और वह केवल कांग्ेस की कठपुतली बनकर सत्ा की मलाई चाटते हुए बस सवलहत में ही लगे रहे । आखिर कया कारण है कि वरषों तक ' गरीबी हटाओ ' का नारा देने के बावजूद देश से गरीबी कयों नहीं समापत हुई ? आखिर कया वजह रही कि संवैधानिक रूप से आरक्षण की सुविधा मिलने के बावजूद आज भी देश का दलित समाज सवयं को अभावग्सत महसूस
परिणामसवरुप देश के हर राजय में यानी उत्र से दक्षिण तक और पूरब से पकशचम तक के राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले राजनेता , राजनीतिक दल एवं संगठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने देश और जनता का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी । कांग्ेस जब सत्ा में नहीं रही , उस दौरान भी-वह चाहे 1977 से 1980 का कालखंड रहा हो या फिर 1989 से 1999 का कालखंड उसने कठपुतली के तरह केंद्र सरकार
2014 के बाद देश की राजनीति में और जनता के दिमाग में किस तरह परिवर्तन की लहर दौड़ना शुरू हुई ? 2004 से 2014 तक देश की सत्ा में अपने मुकसिम , वामपंथी और जातिगत आधार पर राजनीति में पैर ज़माने वाले नेताओं के सहारे कांग्ेस ने केवल सत्ा का सुख नहीं भोगा , बकलक जनहितों के नाम पर देश की जनता के संसाधनों की जमकर लूट करने में कसर बाकी नहीं छोड़ी । भ्रषटाचार के तमाम मामलों के बीच 2001 में गुजरात
करता है ? वह कौन से कारण रहे कि दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नेता सामने आए , वह अपने समाज का समपूण्ष विकास करने में असफल सिद्ध हुए ?
ऐसे तमाम प्श्नों का उत्र बहुत सपषट है । सवतंत्रता के बाद से कांग्ेस ने खुद को सत्ा के केंद्र में रखने के लिए देश की हिनिू जनता को जहां जाति भेद में बांटने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी , वहीं धर्म के आधार जनता को बांट कर कांग्ेस मुकसिमों और ईसाई समूह की मसीहा भी बन गई । कांग्ेस की हिनिू विरोधी रणनीति में भारतीय संसकृलत के सुपरिचित एवं कट्टर विरोधी वामदलों ने अपना भरपूर साथ दिया ।
को चलाया । भाजपा सरकार को छोड़कर जो भी सत्ा में आया , उसने जाति और धर्म की राजनीति में बदलाव के लिए कोई कदम नहीं उठाए और जैसा चल रहा था , उसी राह पर वह भी चल पड़े । 1999 में भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेयी के सरकार का जब समय था तो उस समय राजनीति की दिशा बदलने के प्यास तो शुरू हुए , पर कांग्ेस द्ारा विकास यानी इण्डया शाइनिंग का विरोध इस तरह से किया गया कि जनता भ्रमित हो गई । परिणामसवरूप अटल सरकार के विकास समबनधी प्यास भी जनता में कोई खास उममीि नहीं जगा पाए ।
अब यहां समझना वाला बिंदु यह भी है कि
की सत्ा हासिल करने के बाद जनता के बीच जाति-धर्म की बेड़ियों को तोड़कर जब नरेंद्र मोदी जी ने काम शुरू किया , तो उनका मात्र लक्य विकास और समाज की समग् प्गति था । 2014 तक गुजरात की सत्ा में रहकर उनहोंने अपने विकास के लक्य को हासिल करने के लिए दिन-रात मेहनत की और गुजरात में विकास के जिस मलॉडल की सफल नींव डाली , उसका डंका देश के अनय राजयों से लेकर विदेश में रहने वाली जनता ने भी सुना । विकास के इस मलॉडल ने जहां गुजरात को देश का सबसे अधिक सफल और विकसित राजय बना दिया , वहीं विकास की दौड़ में भारतीय राजनीति
20 tuojh 2025