के षड्ंत्रों पर धीरे-धीरे जो काम शुरू हुआ , उसे डा . केशव राव बलिराम हेडगेवार जैसे लोगों ने महसूस किया । कांग्ेस के साथ मिलकर अंग्ेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वालों के साथ खड़े डा . हेडगेवार ने अंग्ेजों की हिनिू विरोधी नीतियों के विरुद्ध कांग्ेस को छोड़ दिया और हिनिू हितों को धयान में रखते हुए 1925 में
राषट्रीय सवयंसेवक संघ की सरापना की ।
भारत की जनता के विरुद्ध अंग्ेजों के षड्ंत्र का परिणाम 1921 में ' खिलाफत आंदोलन ' के रूप में सामने आया । 1922 में महातमा गांधी ने जब खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया , तब देश में मुकसिम सांप्िायिकता का नया रूप सामने आया । खिलाफत आंदोलन के कारण देश के कई हिससों में हिनिू-मुकसिम दंगे हुए । अंग्ेजों ने इन दंगों का अपरोक्ष रूप से समर्थन किया । इसके कारण हिनिू जनसंखया का नरसंहार हुआ और देश के अंदर नए रूप में सामप्िायिकता पैदा हुई । अंग्ेजों द्ारा हिनिुओं को तोड़ने के षड्ंत्र एक अनय उदाहरण 1931 की जनगणना में उस समय भी सामने आया , जब जनसंखया के आंकड़ों के वगथीकरण में ' डिप्ेस किास '
नामक नए शबि का इसतेमाल किया गया । ' डिप्ेस किास ' के तहत देश के उन सभी हिनिुओं को रख दिया गया जो समाज के कमजोर , अशिक्षित , निर्बल और कुलीन वगषों से नहीं जुड़े थे । इसी डिप्ेस किास में शामिल की गई जनता को धीरे-धीरे जातियों में बांटने की जो शुरुआत हुई , उसका एकमात्र मकसद देश की हिनिू
संसकृलत और समाज को खंड-खंड करना था । सवतंत्रता मिलने तक कांग्ेस के नेहरू-गांधी सरीखी नेता एक षड्ंत्र के तहत जातियों में बंटते जा रहे हिनिू समाज के साथ ही अनय पंथ के लोगों को एकसाथ लेकर चलते रहे । लेकिन सवतंत्रता के बाद जब सत्ा मिलने का प्श्न आया तो हिनिू समाज को जाति और धर्म के विभेद में बांधने का अभियान ही प्ांरभ हो गया । नेहरू-गांधी के अभियान का जिसने भी खुल कर विरोध करने का प्यास किया , उसे किनारे कर दिया गया , वह चाहे डा . बी आर आंबेडकर रहे हों या सरदार बलिभभाई पटेल । यह तो पहले से तय था कि सवतंत्रता के उपरांत देश की सत्ा कांग्ेस को मिलेगी । पर सत्ा हासिल करने के बाद कांग्ेस नेता नेहरू ने देश की हिनिू
जनता को धीरे-धीरे जातियों के आधार पर देखने की जिस तरह शुरुआत की , वह समय के साथ देश के अंदर एक जटिल जाति वयवसरा में बदल गयी ।
यहां पर यह जानना भी जरुरी है कि राषट्रीय एवं हिनिू हितों को धयान रखते हुए 1925 में राषट्रीय सवयंसेवक संघ की सरापना हो चुकी थी । डा . बी . आर . आंबेडकर ने रिपकबिकन पाटथी के माधयम से दलित मतदाताओं को राजनीतिक रूप से एकत्रित करने का सफल प्यास किया एवं राषट्रीय सवयंसेवक संघ के सवयंसेवक सवगथीय दत्ोपंत ठेगडी को सलाह दी कि संघ को भी एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए । सवगथीय दत्ोपंत ठेगडी , डा . आंबेडकर के संपर्क में 1950 से लगातार रहे । सवतंत्रता के बाद शयामा प्साद मुखजथी द्ारा 21 अक्टूबर 1951 को दिलिी में एक नए राजनीतिक दल की सरापना की गई , जिसका नाम जनसंघ रखा गया । कांग्ेस की जाति-धर्म पर केंद्रित तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीति के प्तयुत्र और राषट्रवाद के समर्थन के लिए बनाए गए राजनीतिक दल जनसंघ , सवैकच्क रूप से हिनिू राषट्रवादी संगठन था , जिसका उद्ेशय भारत की ' हिनिू ' सांसकृलतक पहचान को संरक्षित करना और कांग्ेसी प्धानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मुकसिम और पाकिसतान समबनधी तुषटीकरण को रोकना था । एक राजनीतिक दल के रूप में 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में जनसंघ को तीन सीटें प्ापत हुई , जो कि बढ़ते हुए 1957 में 4 सीट , 1962 में 14 सीट तथा 1967 में 35 सीटों तक पहुंच गई । बाद में राजनीतिक दल जनसंघ इसलिए सफल नहीं हो पाया कयोंकि 1967 के बाद इंदिरा गांधी ने जहां अपनी सत्ा को बचाने के लिए वामपंथी दलों से हाथ मिला लिया , वहीं जाति-धर्म पर केंद्रित होती जा रही राजनीति ने जनसंघ की राषट्रवादी राजनीति को आम जनता से दूर कर दिया ।
कांग्ेसी प्धानमंत्री नेहरू के बाद उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने जाति वयवसरा को इस तरह से पुषट किया कि जातिगत आधार पर देश के हर राजय में नए-नए संगठन खड़े होते चले गए ।
tuojh 2025 19