Jan 2025_DA | Page 18

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के नेताओं ने जिस तरह मंदिर-मंदिर चककर लगाए , सवयं को शिव भकत से लेकर तमाम देवी-देवताओं का भकत साबित करने के प्यास किए , उसे कांग्ेस की उस नयी रणनीति के रूप में देखा जा सकता है , जिसमें जाति के नाम पर वोट हासिल करने के लिए डा . आंबेडकर , आरक्षण और संविधान का प्योग किया गया ।
कांग्ेस पाटथी को जिस कालखंड में पैदा किया गया था , उस समय देश परतंत्र था और अंग्ेज इस देश की पावन भूमि को रौंदते हुए अपनी सत्ा के माधयम से देश को लूटने में लगे थे । ततकािीन दौर में देश के हिनिू समाज ने जब अंग्ेजों की सत्ा और देश विरोधी कायषों का विरोध शुरू किया तो बड़ी सफाई के साथ ,
निकला कि कांग्ेस के अंदर ' नरम ' और गरम ' नाम से दो दल बन गए । 1907 में टुकड़ों में बंटी कांग्ेस में गरम दल का नेतृतव बाल गंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल ने किया , जोकि पूर्ण सवराज की मांग उठाकर संघर्ष छेड़ना चाहते थे , जबकि नरम दल का नेतृतव करने वाले गोपाल कृषण गोखले ,
कांग्ेस के नेता अपने आप को जाति-धर्म से दूर रखकर , जनेऊ धारण करने का सवांग रचते हुए मंदिर-मंदिर पहुंच कर खुद को हिनिू बताते रहे । इस सनिभ्ष में धयान देने लायक बात यह भी है कि जो नेता खुद को हिनिुओं का करीबी बताते हुए थक नहीं रहे थे , वही नेता केरल में गौकशी के समर्थन में होने वाले प्िश्षनों और गौमांस खाने के लिए सड़कों पर झुंड लगाकर खड़े वामपंथियों के साथ भी मौजूद थे ।
कांग्ेस , वामपंथियों और मुकसिमों की चुनावी और सत्ा समबनधी रणनीति पर अगर धयान दिया जाए तो कहना गलत नहीं होगा कि वरषों से एक षड्ंत्र के रूप में देश की हिनिू जनता को बांटा गया और उसका उपयोग सत्ा हथियाने के लिए किया गयाI धयान दीजिए , वर्तमान
ततकािीन दौर के चंद कुलीन वगषों के लोगों को साथ में लेकर 28 दिसंबर 1885 को अखिल भारतीय कांग्ेस नामक एक संगठन खड़ा किया गया । अंग्ेज शासकों के हितों और उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति की लिए बनाए गए कांग्ेस संगठन में ए . ओ . ह्ूम की जहां महतवपूर्ण भूमिका रही , वही संगठन में दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा को शामिल करके देश की हिनिू जनता को साधने का काम किया गया ।
प्ारंभिक दौर में कांग्ेस जहां अंग्ेज हितों के लिए काम करती रही , वही जब कांग्ेस संगठन में सदसयों की संखया डेढ़ करोड़ से ऊपर पहुंच गई तो संगठन को चलाने वाले पर प्श्न भी उठने लगे कि आखिर खुल कर अंग्ेजों के विरोध में कयों नहीं उतरा जा रहा है ? नतीजा यह
फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी जैसे लोग अंग्ेजों की सत्ा के अधीन रहकर ही देश में सिर्फ सवशासन की वयवसरा चाहते थे । वरषों तक नरम-गरम दलों के बीच झूलती रही कांग्ेस , प्रम विशव युद्ध ल्ड़ने के बाद 1916 की लखनऊ में हुई बैठक में फिर एकजुट तो हो गई , पर कांग्ेस की हालत और अपने हितों को समझते हुए अंग्ेजों ने एक नई रणनीति पर काम आरमभ कर दिया ।
अंग्ेज शासकों को ज्ञात था कि अगर भारत की हिनिू जनता एकमत होकर संगठित हो गई तो उनहें देश छोड़ना ही होगा , इसीलिए ततकािीन अंग्ेज शासकों ने देश की जनता को जाति और धर्म के नाम पर तोड़ने के प्यास आरंभ कर दिए । भारत की जनता की एकजुटता को तोड़ने
18 tuojh 2025