दबिहारी ), होनहार बिच्चे ( शयोराज सिंह बिेचैन ), सिलसिला जारी है ( रंजना जायसवाल ), सीधा प्रसारण ( अनिता भारती ) जैसी ्कई सम्कालीन ्कहानियों में ऐसी ही अनय पररषस्दतयों ्का वर्णन मिलता है ।
्कई सम्कालीन दलित विषय्क रचना्कारों ्को यह लग रहा है द्क हर बिार ्की तरह इस बिार भी वैश्वीकरण , आधुदन्कता और उत्तर आधुदन्कता जैसे श्ि हाशिए ्के समाज ्के लिए मात् श्ि ही हैं । वसतुतः आज ्के दलित विषय्क रचना्कार ्के जीवनानुभव , वह पदूणमातः राजनीदत्क चेतना स्पन्न हों या न हों , सामानयतः वैश्वीकरण ्के दावों ्को अस्वीकार ्कर रहे हैं । दलित विषय्क साहितय में आज भी दलित
जीवनानुभवों ्की अभिवयषकत ही महत््पदूणमा बिनी हुई है , द्कनतु ्कई सम्कालीन रचना्कार उन प्रश्नों पर अलग से विचार रखते दिखाई दे रहे हैं , जो परोक् रूप से दलित जीवन ्को और भी द््कट पररषस्दतयों में ध्केल रही हैं । इन पररषस्दतयों ्के बिारे में वैश्वीकरण ्के पक्धर बिुदद्जीवियों ्का यह त्क्फ है द्क संस्ककृतियों और सभयताओं ्के न्ट होने ्का हौव्ा खड़ा द्कया जा रहा है , ताद्क बड़े निगमों द्ारा उपल्ध अवसरों से दलितों ्को वंचित द्कया जा स्के और दलित प्रश्न ्को फिर से पीछे ध्केला जा स्के । अंग्ेजी भाषा और शिक्ा ्को महिमामषणडत ्कर ्कुछ दलित बिुदद्जीवी दलित समुदायों ्को वैश्वीकरण द्ारा उपल्ध बिाजार ्के अनु्कूल
चु्के हैं द्क वैश्वीकरण से उपजी पररषस्दतयों ्का दचत्ण दलित विषय्क साहितय में दिखाई दे रहा है , द्कनतु आनिोलनों से प्रेरणा लेने वाले इस साहितय में पररषस्दतयों ्का और भी बिारी्क दचत्ण स्भ् हो स्केगा अगर दलित विचार्क और राजनेता वैश्वीकरण पर अपनी दृष्ट और भी परर््ककृत ्कर लेते हैं । दलित आनिोलन में वैश्वीकरण ्के प्रश्न ्के प्रति सप्ट राय ्के अभाव ने दलित विषय्क साहितय ्की धार ्को भी प्रभावित द्कया है । इधर , दलित-विमर्श में यह दिखाई दे रहा है द्क जिन चिन्तकों ्का यह मानना है द्क वैश्वीकरण हाशिए ्का और भी हाशिया्करण ्कर देगा , वह राजनीदत्क प्रदकया से वैश्वीकरण ्के गदूढ़ सम्बनध ्का गहन
कई समकालीन दलित विषयक रचनाकारों को यह लग रहा है कि हर बार की तरह इस बार भी वैश्ीकरण , आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता जैसे शब्द हाशिए के समाज के लिए मात् शब्द ही हैं । वस्ुिः आज के दलित विषयक रचनाकार के जीवनानुभव , वह पूर्णतः राजनीतिक चेतना सम्पन्न हों या न हों , सामान्िः वैश्ीकरण के दावों को अस्ीकार कर रहे हैं ।
बिना लेना चाह रहे हैं । द्कनतु विमर्श से इतर दलित विषय्क रचनाधर्मिता परिवेश से मुषकत ्के सहज मागषों पर जाने ्की जगह पदूरी वय्स्ा ्को दुरुसत ्करना चाह रही है । ्कई दलित विषय्क रचनाओं में यह अभिवयषकत दिखाई दे रही है द्क पहले से ही पर्परा में मौजदूि बिहुत सारे लेखन ्को अस्वीकार द्कया जाता रहा है , उस पर वैश्वीकरण द्ारा पललद्त सांस्ककृदत्क समरूपता भाषाओं और संस्ककृतियों ्को क्दत पहुंचा ्कर सांस्ककृदत्क अतीत ्को ही न्ट ्कर स्कती है ।
भारत में दलित विषय्क साहितय ्के द््कास ्का सबिसे प्रमुख ्कारण राजनीदत्क चेतना ही रही है । दलित विषय्क साहित्यकार सिर्फ दलित विषय्क साहितय ्की बिात नहीं ्करते हैं , दलित आनिोलन ्की भी बिात ्करते हैं । हम यह देख
विश्लेषण ्करने ्की ओर प्रवृत्त हुए हैं । वैश्वीकरण ्के आलोच्क दलित रचना्कारों ्का मानना है द्क वैश्वीकरण ्के पैरो्कार राजनीति ्को ले्कर बिहुत सचेत हैं ।
्कंवल भारती चिनता वयकत ्करते हैं द्क वैश्वीकरण से उपजी पररषस्दतयों ्के बिीच दलित राजनीति वैचारर्क धरातल पर अपने नजदी्क दिखने वाली शषकतयों ्की तुलना में प्रतिगामी शषकतयों ्के साथ समझौता ्करते दिख रही है । डा . आंबिेड्कर ्की पदूरी राजनीति धादममा्क सा्प्रदादय्कता ्के खिलाफ थी , द्कनतु पिछले दो दश्कों ्के द््कास ्को देख ्कर ्कोई नहीं ्कह स्कता द्क आज ्के ्कई दलित नेता उन शषकतयों ्का विरोध ्करेंगे , जिन्के खिलाफ डा . आंबिेड्कर ने अपनी आवाज बिुलनि ्की थी । दलित विषय्क साहितय ्का सामानय चररत् अबि
tuojh 2024 49