Jan 2024_DA | Page 47

जयािा से जयािा लोग गरीबि होते जाएंगे । इस त्क्फ ्के अनुसार वैश्वीकरण आर्मा्क और सामरर्क रूप से क्मतावान शषकतयों ्की ऐसी वास्तविकता है , जो विश्‍व राजनीति , सभयताओं और संस्ककृतियों ्को अपनी आर्मा्क जरूरतों ्के हिसाबि से सदूचना और संचार-काषनत ्के आधुदन्क माधयमों ्का आवरण ले्कर नियंदत्त ्करती है । लुभावनी श्िा्ली में प्र्कट होने वाली इस
परिघटना ने उपभोग ्की इचछाएं पैदा ्की , द्कनतु पिवे ्के पीछे भयान्क विवशता , कूरता , उपभोगवादी मदूलयों ्की आकाम्कता , अमेरर्की्करण , सांस्ककृदत्क बिहुलता ्का विनाश छिपा हुआ है ।
दलित-विमर्श में भी वैश्वीकरण ्के सनिभमा में दो तरह ्के विचार मिलते हैं । चिन्तकों ्की ए्क धारा यह मानती है द्क वैश्वीकरण ्की प्रदकया में दलित अपनी परिवेश से मुषकत पा स्कते हैं और उन्के लिए नए अवसर उपल्ध हो स्कते हैं , जिससे अवमाननापदूणमा जीवन से मुषकत स्भ् हो स्कती है । पिछली सदियों में मनु्य और समाज ्को और वय्षस्त बिनाने
्के दावे ्के साथ आई विभिन्न विचार धाराएं जबि दलित समसया ्का पदूणमा समाधान नहीं दे स्कीं , उन्के प्रश्न बिार-बिार हाशिए पर छोड़ दिए गए , तबि परिवेश से मुषकत ्के लिए दलित बिुदद्जीवियों ने नए तरी्के अषखतयार द्कए , ताद्क उन्की
लड़ाई अबि पीछे न छूटे । चर्चित दलित चिन्तक गोपाल गुरू ने ठी्क रेखांद्कत द्कया है द्क “ भदूमणडली्करण ए्क ऐसे विचार और वय्हार ्का नाम है जो अपनी सार्वभौदम्कता ्के जरिए वयषकतयों और समुदायों ्को उन्की पारिवेदश्कता ्का अदतकमण ्करने ्का आश्‍वासन देता है । वयषकत और समुदाय ्के तौर पर दलित अपनी पारिवेदश्कता ्को तोड़ने ्के लिए सबिसे जयािा व्याकुल हैं ।“ चिन्तकों ्की यह धारा ज्योतिबा फुले ्की तटस्ता ्की महत््पदूणमा थीसिस ्को अपनाते हुए वैश्वीकरण ्की प्रदकया ्के प्रति तटस् रवैया रख्कर दलित समुदाय ्के लिए अवसर ढूंढ लेना चाहती है । गेल ऑम्ेट , नरेनद्र जाधव , जी . अलोसिस , चनद्रभान ्कुमार , शरण ्कुमार लिम्बाले जैसे चर्चित नाम वैश्वीकरण ्की प्रदकया ्का लाभ उठाने ्के पक्धर हैं ।
जातिवाद ्के द््कास ्के सामादज्क- सांस्ककृदत्क ्कार्कों ्के साथ-साथ आर्मा्क ्कार्कों पर भी दृष्ट रखने वाले चिन्तकों ्की िदूसरी धारा ्की सप्ट मानयता है द्क वैश्वीकरण ्की इस प्रदकया में दलितों ्के लिए अवसर पदूरी तरह समाप्‍त हो जाएंगे , कयोंद्क हाशिए पर रहने वालों ्को यह प्रदकया और भी हाशिए पर ध्केल रही है । ्कई विचार्कों ्का मत है द्क वैश्वीकरण ्का यह दावा द्क वह हाशिए ्को ्केनद्र दे रही है , मात् छलावा है । इन चिन्तकों ्का ्कहना है द्क वैश्वीकरण ्के माधयम से फल-फूल रहे पदूंजीवाद , बिाजारवाद , उपभोकता्ाद , अराजनीदत्करण , अमेरर्की्करण , अलो्कताषनत््की्करण , रा्ट्र-राजयों ्के क्य , सांस्ककृदत्क बिहुलता ्के ह्ास , बिाजार ्केषनद्रत समरूपी्करण ्के बिीच में से दलित समसया ्का सफल समाधान ढूंढना स्भ् नहीं है ।
परिवेश से मुषकत ्की आ्कांक्ा ने ्कई दलित बिुदद्जीवियों ्को वैश्वीकरण ्की ओर अत्यधिक आ्कदरमात द्कया है । आज भी जयािातर दलित समुदाय भारत ्के गांव में बिसता है । ग्ामीण जीवन में जिस तरह ्के जातिगत शोषण और अवमानना भरा जीवन दलित समुदाय ने झेला है , उससे मुषकत ्के लिए ्कई दलित विषय्क चिन्तक उस शहर ्की ओर आ्कदरमात होते हैं ,
tuojh 2024 47